डाउन टू अर्थ टीम
देहरादून/नई दिल्ली। उत्तराखंड के जंगलों का सौ दिनों तक धू-धू कर जलना भारत के अन्य जंगलों की सुरक्षा और आग से निपटने की व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करता है। एक और तथ्य की ओर भी इशारा करता है कि जंगल की आग अब केवल प्राकृतिक घटना नहीं रह गई, इंसानों की गलती से लगने वाली आगें भी विध्वंसक हो रही हैं।
उत्तराखंड की इस आग में कहीं स्थानीय लोगों को जान माल की हानि का सामना करना पड़ा तो कहीं कुछ लोगों ने सम्पत्ति बचाने में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
इसी साल दो फ़रवरी को शुरू हुई आग ने उत्तराखंड के 13 ज़िलों को अपनी चपेट में ले लिया। पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोरी, अल्मोड़ा, नैनीताल और उत्तरकाशी के लगभग 1500 गाँव इस आग में खाक हो गए।
साल के इस समय जंगल की आग एक सामान्य सी बात है परन्तु सौ दिन तक अनवरत जलने वाले जंगल की कल्पना मात्र ही भयावह है। सात मई तक उत्तराखंड में आग की करीबन 1828 घटनाओं ने 4015 हेक्टेयर (102 हेक्टेयर वृक्षारोपित) को प्रभावित किया है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि इस आग से वास्तविक नुकसान इकोलॉजी यानि जंगल के पर्यारवरण और जीवन को हुआ है। उत्तराखंड के जंगल विभिन्न जीव-जन्तुओं का घर है, जो प्रभावित हुए। इस प्रजनन के मौसम में आग में पक्षियों के हजारों अंडे नष्ट हो जाते हैं। इस नुकसान को मापा नहीं जा सकता।
सेवानिवृत्त महानिदेशक, वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा, वीके बहुगुणा ने कहा की वानिकी की निधि राजनीति की मार झेल रही है। भीषण गर्मी के अलावा, स्थानीय लोगों और सरकारी एजेंसियों की लापरवाही भी कारण है। स्थानीय लोग अलग-अलग कारणों से आग जलाते हैं, पर समय पर ईधन लोड न हटाने और आग लाइनों की सफाई न होने की वजह से आग अनियंत्रित हो जाती है।
उत्तराखंड में जो भीषण आग इस वर्ष लगी उसे बुझाने में वन विभाग के कर्मचारियों, पुलिस सहित एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा राहत बल), आग अधिकारियों और एसडीआरएफ (राज्य आपदा राहत बल) की कुल 11,773 लोगों की टीम लगी पर उनकी असफलता से लगभग राज्य तबाह हो गया है।
उत्तराखंड में जंगल के मुख्य वन संरक्षक, भवानी प्रकाश गुप्ता ने जानकारी दी कि पानी के 3,000 लीटर की क्षमता वाले दो भारतीय वायु सेना के हेलिकॉप्टरों को भी गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में सेवा में लगाया गया था। उन्होंने कहा कि चार मई तक दोनों हेलिकॉप्टरों से गिराए गये पानी पर 50 लाख रुपये खर्च किया गया।
वन अधिकारियों का कहना है कि धन की कमी होती है। जिला स्तरीय आग योजनाओं का सफल होना काफी हद तक धन पर निर्भर करता है। अपर्याप्त धन होने पर कार्रवाई में योजना असफल हो जाती है।
भारत भर में जंगल की आग के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तराखंड 1,395 जंगल में आग की घटनाओं के साथ देश में अग्रणी है। वहीं दूसरे स्थान पर 1,346 आग के साथ छत्तीसगढ़ और तीसरे पर 1,309 आग के साथ ओडिशा है।
भौगोलिक सूचना प्रणाली और रिमोट सेंसिंग विधा के वैज्ञानिक क़मर क़ुरैशी ने बताया कि पहले के दिनों में जंगली आग ने पर्यावरण के सिस्टम और उसके घटकों को आकार देने में एक विकासवादी भूमिका निभाई है।
लेकिन आज कारण काफी हद तक मानव निर्मित है। लोग पशु के चरने के लिए चरागाह, लकड़ी, और वनोपज इकट्ठा करने के लिए जंगलों को जला रहे हैं। आकस्मिक आग कैंप फायर और सिगरेट के अधजले टुकड़ों के कारण भी उत्पन्न होते है।