लखनऊ। अप्रैल की शुरुआत होते ही गाँवों में आग लगने का मौसम शुरू हो जाता है। हर वर्ष हजारों बीघा फसल आग की भेंट चढ़ जाती है। खेतों के ऊपर से गुजरने वाली हाईटेंशन लाइन के कारण सबसे ज्यादा खेतों में आग लगती है। खास बात यह है कि मुआवजे के लिए किसान भटकते रहते हैं लेकिन 90 फीसदी किसानों को मुआवजा नहीं मिल पाता।
जालौन जिले की माधवगढ़ तहसील के करतलापुर गाँव के प्रवीण की मौत उस समय हो गई जब वह खेतों में गेहूं काट रहे थे। अचानक हाईटेंशन लाइन का तार खेत में गिरा और वह उसकी चपेट में आ गए। हादसे को एक वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक उनके परिवार को एक रुपए का मुआवजा नहीं मिला है। यही हाल इसी तहसील के कोटरा गाँव के रहने वाले लालता के परिवार का है। बीते वर्ष उसकी मौत भी खेत में काम करने के दौरान हुई थी।
भारतीय किसान यूनियन के बुंदेलखंड जोन के अध्यक्ष राजवीर सिंह बताते हैं, “अप्रैल माह से गर्मी की शुरुआत हो जाती है। हर वर्ष हजारों बीघा फसल आग लगने से राख हो जाती है, इसका मुख्य कारण है खेतों के ऊपर से हाईटेंशन लाइन का जाना।” उन्होंने बताया कि इस दौरान हवा भी काफी तेज चलती हैं, जिसके कारण तार आपस में टकरा जाते हैं और शार्ट-सर्किट से निकली चिंगारी खेतों की हरी-भरी फसलों को स्वाहा कर देती है।
11 अप्रैल को सिद्धार्थनगर के इटवा तहसील के कई गाँवों में खेत आग की चपेट में आग गए। एक के बाद एक आग ने कई बीघा फसल को राख कर डाला। 9 अप्रैल को बाराबंकी के मोहम्मदपुर खाला के गाँव जुलाहनपुरवा के रहने वाले किसान मंजीत की दो एकड़ फसल आग की चपेट में आकर खाक हो गई थी। इसी तरह जालौन जि़ले के रुदपुरा गाँव में 13 अप्रैल को हाईटेंशन लाइन के तारों के आपस में लड़ने से निकली चिंगारी से लगी आग से 35 बीघा खेत की फसल राख हो गई थी।
मुजफ्फरनगर भाकियू के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक बताते हैं, “खेतों में आग लगने की घटनाओं के पीछे 70 फीसदी हाईटेंशन लाइन का हाथ होता है।
20-20 साल हो जाते हैं पर बिजली विभाग इन तारों की तरफ ध्यान नहीं देता। कमजोर तार ढीले होकर आपस में लड़ते हैं और उससे निकली चिंगारी या गिरे तार किसान को कहीं का नहीं छोड़ते।” वो आगे बताते हैं, “मुआवजे के लिए किसान विद्युत सुरक्षा कार्यालय के चक्कर काटते रहते हैं, पर वर्षों बीत जाते हैं लेकिन मुआवजा नहीं मिलता। शटडाउन किया तो रजिस्टर में लिखा कि नहीं लिखा जैसे कई बहाने बताकर विभाग किसानों को टरकाता रहता है।” उन्होंने बताया कि हादसे के बाद एसडीएम को मामले की जानकारी दी जाती है, इसके आठ दिन बाद लेखपाल आता है जो लाखों के नुकसान को हजारों में लिखकर खानापूर्ति कर देता है। इसके बाद फाइल विद्युत सुरक्षा विभाग के पास चली जाती हैं और किसान मुआवजे का इंतजार करता ही रह जाता है।