एटा। रामसिया चुनाव लड़ रही है। अब से पहले उसने चुनाव लड़ने के बारे में सिर्फ सुना था। चूंकि उसने पढ़ाई-लिखाई नहीं की इसलिए खुद वोट मांगने ज्यादा नहीं जाती। चुनाव पत्नी लड़ रही हैं और पति प्रचार में जुटे हैं।
बीडीसी सदस्य पदों के चौथे चरण में मारहरा, निधौलीकलां ब्लॉक में चुनाव प्रचार में रुचि न लेेने वालीं रामसिया अकेली नहीं हैं, बल्कि कई ऐसी महिला प्रत्याशी हैं, जो चुनाव तो लड़ रहीं हैं मगर प्रचार में नहीं जातीं। कोई चौका-चूल्हे में व्यस्त थी, कोई पशुओं को चारा डाल रही थी तो कोई कपड़ों की सिलाई।
गाँव नगला नथा के वार्ड 73 पर जब गाँव कनेक्शन संवाददाता दोपहर करीब डेढ़ बजे पहुंची तो इस गाँव की रहने वाली क्षेत्र पंचायत सदस्य पद के लिए भाग्य आजमा रहीं रामसिया (48 वर्ष) अपने घर में पशुओं की देखभाल में व्यस्त दिखीं। रामसिया से जब पूछा गया कि चुनाव प्रचार में कब जाती हैं तो वे बोलीं, ”हमें जाइवे की का जरूरत, घर में तै और जातएं, उन्हें ही सब जानत हैं।” इसी गाँव की पूनम देवी भी प्रत्याशी हैं। चुनाव लड़ रहीं हैं, मगर पूरा दिन काम करते गुजर जाता है। चूल्हे पर रोटी बनाते हुए वो कहती हैं, ”चुनाव में घर का काम बढ़ गया है, चुनाव प्रचार अन्य लोग कर रहे हैं।” ऐसी ही कहानी ओमवती की है। वोट मांगने के समय वे घर में बर्तन साफ करते मिलीं। महिला आरक्षित सीटों से लडऩे वाली कई महिलाएं निरक्षर हैं।
गाँव रूसूरतपुर के वार्ड 58 के अंतर्गत गाँव नगला खरगी आता है। यहां पर प्रभा देवी बीडीसी सदस्य पद की प्रत्याशी हैं। यह प्रत्याशी अपने घर में सिलाई की मशीन से कपड़े की सिलाई करते मिलीं। वे कहती हैं, ”उनके पति ही प्रचार करते हैं। एक-दो बार थोड़ी देर के लिए वे भी गई।” वार्ड 30 से उर्मिला देवी हों या वार्ड 71 से सर्वेश कुमारी, सब चुनाव प्रचार से दूर हैं। जब वार्ड 106 से प्रेम सिंह अपनी पत्नी का प्रचार करते दिखे, जबकि चुनाव प्रत्याशी उनकी पत्नी हैं। पूछने पर कि आपकी पत्नी प्रचार पर नही आई तो प्रेम सिंह बोले, ”चुनाव का टाइम है, घर पर भीड़भाड़ है। खाना बनाना, मवेशी भी हैं, उन्हें भी तो देखना है।” वार्ड मारहरा ब्लॉक के वार्ड 13 में सोनवती घर पर झाड़ू लगा रही थीं। वो बोलीं, ”सुबह से अम्मा के साथ घर के सारे काम निपटाए हैं। कम से कम पचास लोगों की रोटी घर में ही बनानी पड़ती है फिर कैसे चुनाव प्रचार में जाएं। हमारी तरफ से वो (पति) जाते हैं।”
नगला नथा गाँव की रहने वाली शिक्षिका राजबाला कहती हैं, ”इस चुनाव की यह सच्चाई लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठाती है कि क्यों न प्रत्याशी को बाध्य किया जाए कि वे मतदाताओं के बीच जाएं ताकि मतदाता यह समझ सकें कि वे जिसको वोट दे रहे हैं वह कितनी योग्य हैं।”
रिपोर्टर – बबिता जैन