बाराबंकी। कुछ साल पहले एक फिल्म आई थी ‘शुद्ध देशी रोमांस’। फिल्म की अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा अक्सर दूसरों की बारात में नजर आती हैं। अच्छी अंग्रेजी बोलने वाली खूबसूरत परिणीति चोपड़ा को बारात में बाकायदा एजेंसी के माध्यम से बुलाया जाता है और उन्हें इसके लिए अच्छे पैसे भी मिलते हैं।
राजस्थान के परिवेश पर बनी इस फिल्म की तरह ही उत्तर प्रदेश के ज़िले बाराबंकी के ग्रामीण इलाकों में भी बाकायदा स्टैज मैनेजमेंट होने लगा है। यहाँ भी अब दुल्हन की सहेलियां खूबसूरत और अंग्रेजी बोलने वाली होती हैं। ये सहेलियां भी पैसे देकर कुछ घंटों के लिए बुलवाई जाती हैं।
पिछले दिनों बाराबंकी जिले के रत्नापुर गाँव की रेनू की शादी हुई। लखनऊ से आई बारात शहरी मिज़ाज वाली थी तो रेनू के जयमाल की भी भव्य तैयारियां की गई। अमूमन दुल्हन के साथ गाँव में उसकी छोटी बहनें और सहेलियां और भाभियां होती हैं। लेकिन रेनू के साथ फूलमाला लेकर चल रही लड़कियां इनमें से कोई नहीं थीं, बल्कि उन्हें बाराबंकी के एक एनजीओ द्वारा उस शाम के लिए रेनू की सहेली बनाकर लाया गया था। एनजीओ का कारण इस नए तरह के स्टेज मेनेजमेंट के प्रोफेशन से कस्बों और शहर की पढ़ी-लिखी लड़कियों को रोज़गार मिल गया है।
जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर सद्दीपुर ब्लॉक के अजगन गाँव में रहने वाली प्रिया सिंह (18 वर्ष) बीए की पढ़ाई कर रही हैं। वह शादी में दुल्हन की सहेली बन कर जाती हैं। अभी तक वह पांच शादी में बतौर दुल्हन की सहेली हिस्सा ले चुकी हैं। ”दुल्हन की शादी में सजना अच्छा लगता है साथ ही कुछ कमाई भी हो जाती है। एक शादी में 500-100 रुपए तक कमा लेते हैं। पिता मजदूरी करते हैं, मैं पढ़ाई कर रही हूं।” प्रिया बताती है।
यही नहीं इन ग्रामीण शादियों में अब जयमाल पर साथ चलने वाली लड़कियों को शादी समारोह कराने वाले लोग उनकी ड्रेस भी बताते हैं। ज़्यादातर उन्हें गाउन या लॉग स्कर्ट पहनकर आने को कहा जाता है क्योंकि लंहगा तो दुलहन पहनती है।
रत्नापुर निवासी रेनू की भाभी प्रीती ने परिवार में लड़कियों के कम होने के कारण दुल्हन का साथ देने के लिए इन लड़कियों से संपर्क किया। प्रीती बताती हैं, ”रेनू की शादी लखनऊ शहर में तय हुई थी। लड़के वालों ने कहा था कि दहेज चाहे कम देना पर जयमाल की व्यवस्था शहरी तरीके से हो। साथ ही जयमाल में दुल्हन और उसके साथ चलने वाली लड़कियां भी सुंदर और अच्छे कपड़ों के साथ हों क्योंकि बारात में बहुत अच्छे (हाईफाई) लोग आएंगे, लगना चाहिए कि शादी गाँव में नहीं की गई।”
वो आगे बताती हैं, ”शहर में होते तो इंतजाम हो जाता पर गाँव में इसकी व्यवस्था करना मुश्किल था पर किसी तरह पता चला कि गैर सरकारी संस्था जहांगीराबाद में एक पार्लर है। यहां की लड़कियां दुल्हन की सहेलियां बनने के लिए उपलब्ध हो जाती हैं। यहां संपर्क किया जिसके बाद लड़के वालों को पता भी नहीं चला और शादी भी हो गई।”
दरअसल ज़िले के इन गाँवों में इस चलन की शुरुआत एक घटना से हुई थी। एनजीओ से मेक-अप का काम सीख कर ख़ुद का पार्लर चलाकर अपने पैरों पर खडीं सोनम बानो बताती हैं, ”गाँव में एक शादी में मेकअप करने गए थे, वहां जब लड़की जयमाल के लिए आने लगी तभी लड़के वालों ने जयमाल के लिए मना कर दिया और कहा कि दुलहन अकेले आए पर जो उनके साथ जो लोग आ रहे वो नहीं आए क्योंकि वो सब अच्छे नहीं लग रहे हैं। दुलहन कि हिम्मत नहीं थी कि वो अकेले स्टेज पर जाए।” वो आगे बताती हैं, ”मेरे साथ पार्लर सींख रहीं लड़कियाँ साथ गई थीं। मैंने सबको जल्दी से तैयार कर दुलहन के साथ भेजा तब जयमाल पड़ा। उसी गाँव में कुछ दिन बाद एक और शादी थी तो कुछ लोग हमारे पास आए और कहने लगे कि हमें चार-पांच लड़कियों की जरूरत है जो दुलहन के साथ चले। इसके बाद से ये कार्य शुरू कर दिया गया।”
गाँव के लोगों को इसकी जरूरत भी है और विरोध भी। जहांगीराबाद ब्लॉक के डोभा गाँव की रहने वाली श्रद्घा (21 वर्ष) बताती हैं, ”मैं 10 शादियों में दुलहन की सहेली बनकर जा चुकी हूं। पहले दुलहन का मेकअप करते हैं, उसके बाद तैयार होते हैं। शादी में घर लौटते देर हो जाती है इसलिए गाँव के लोग विरोध करते हैं। कभी-कभी कहते हैं कि गाँव की नाक कटा दी जबकि माँ-बाप साथ देते हैं।”
तस्वीर- विकीपीडिया/क्रिएटिव कॉमन्स लिसेंस के तहत