विशुनपुर (बाराबंकी)। जिस उम्र में बच्चों के पीठ पर स्कूली बैग हाथ में पानी की बोतल व शरीर पर यूनिफार्म होनी चाहिए। उसी उम्र में बच्चे पीठ पर गन्दे कूड़े की बोरियो को लिये दिखाई देते हैं।
विशुनपुर कस्बा व उसके आस पास के गाँवों में आपको कुछ बच्चे सरकारी स्कूल की यूनिफार्म पहने पीठ पर कूड़े से भरी बोरिया लिए दिखाई देंगे। इन बच्चों का नाम सरकारी स्कूलो में दर्ज है, लेकिन मजबूरियों के चलते ये बच्चे स्कूल तक न पहुंच कर कूड़े बिनने को मजबूर हैं।
जिस उम्र में भगवानदीन नगर निवासी सलीम के मासूम कन्धों पर स्कूल का बैग होना चाहिए था समय के फेर नें उस उम्र में उसके कन्धों पर कबाड़ की बोरी लाद दी। बाप की मौत और घर की जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा सलीम का मासूम बचपन अब स्कूल या खेल के मैदान की जगह कूड़े के ढेर में भविष्य की उम्मीदें तलाश रहा है।
कैमरे में फोटो खिंचता देख सलीम अपनी बोरी लेकर डर कर भागा लेकिन ढेर में पड़ी खाली शीशियों का मोह सलीम नहीं छोड़ सका। कुछ देर बाद उसी स्थान पर फिर वापस लौट कर आया। काफी पूछने पर सलीम नें बताया, “करीब वर्ष भर पहले अब्बा का इन्तकाल हो चुका है। दो भाइयों में सबसे बड़ा हूं। दूसरा भाई अभी काफी छोटा है।”
रिपोर्टर – अरुण मिश्रा