कल्पवृक्ष में आया दुर्लभ फूल, सावन में उमड़ रही भक्तों की भीड़

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बाराबंकी। दुनिया के दुर्लभ वृक्षों में शामिल बाराबंकी के किंटूर गांव में स्थित कल्पवृक्ष में आठ साल बाद फूल आया है। सावन में देव वृक्ष के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। भारत में इस तरह के गिनेचुने ही पेड़ हैं। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानियों ने इस वृक्ष की उम्र 5,000 वर्ष से ज्यादा बताई है। स्थानीय लोग इस पारिजात भी कहते हैं।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर कि दूरी पर किंटूर गाँव है। मान्यता है कि इस जगह का नामकरण पाण्डवों की माता कुन्ती के नाम पर हुआ है। यहां पर
पाण्डवों ने मां कुन्ती के साथ अपना अज्ञातवास बिताया था। इसी किंटूर गाँव
में भारत का एकमात्र पारिजात का पेड़ पाया जाता है। कहते हैं कि इस
वृक्ष को छूने मात्र से सारी थकान मिट जाती है। ये काफी बड़ा है। इसका तना काफी मोटा होता है। इसको देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। अफ्रीकी मूल का यह पेड़ अब विलुप्त होने की कगार पर है। कल्पवृक्ष का वानस्पतिक नाम एंडेन्सोनिया डिजिटाटा है। पुराणों में इसे देव वृक्ष भी कहा गया है। बताया जाता है, इसे स्वर्ग से लाकर यहां लगाया गया था।

एनबीआरआई (नेशनल बॉयोटेक्निकल रिसर्चइंस्टीट्यूट) लखनऊ, वन विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से इस वृक्ष कासंरक्षण करके इसको पुनर्जीवन दिया गया
है। नई कोपलें आ रही हैं, जिससे गांव के लोगों, श्रृद्धालुओं के साथ इस पेड़ के संरक्षण में जुटे विभाग भी खुश हैं।

किंटूर के रहने वाले रमानन्द वर्मा (29 वर्ष) बताते हैं, ‘‘पारिजात (कल्पवृक्ष) में दीमक लग रही थी। तहसील दिवस में दो बार शिकायत की तब संरक्षण के लिए कार्य किया गया और परिणाम दिखाई दे रहा है। इटावा के अलावा पारिजात का पेड़ बाराबंकी स्थित रामनगर और ललितपुर में एसएस आवास परिसर में है।”

पिछले कुछ समय विभाग की लापरवाही के कारण वृक्ष को काफी नुकसान हो गया था। बाद में शिकायत मिलने के बाद जिला प्रशासन के प्रयास से एनबीआरआई लखनऊ और वन विभाग के विशेषज्ञों ने मशक्कत शुरू की। जिसके बाद एक बार फिर से पारिजात अब हराभरा होने लगा है।

ग्राम प्रधान रामप्रसाद वर्मा ने बताया, “वन विभाग से शिकायत करने पर दवा डाली गई जिसके परिणामस्वरूप फूल तो आ गये लेकिन पारिजात वृक्ष के ऊपर जो पाइप लाइन लगी थी वह चोक पड़ी हैं।” वहीं भाजपा युवा नेता सैम सोनी और मुकेश ने बताया, “अब हमारे क्षेत्र के ऐतिहासिक देव वृक्ष पारिजात का अस्तित्व दोबारा लौट रहा है। यह लोगों की आस्था और वन विभाग की कड़ी मेहनत का नतीजा है। संरक्षण के कार्य करने के दवा डालने के बाद परिजात में कोपलें निकलने लगी और इस माह परिजात में दो फूल निकले हैं। पेड़ की जड़ में दीमक का प्रकोप खत्म हो रहा है।”

इस वृक्ष कि सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अपनी तरह का इकलौता वृक्ष है, क्योंकि इस वृक्ष पर बीज नहीं लगते है तथा इस वृक्ष कि कलम बोने से भी दूसरा वृक्ष तैयार नहीं होता है। कल्पवृक्ष के फूल केवल रात को खिलते हैं और सुबह होते ही मुरझा जाते हैं। इन फूलों का लक्ष्मी पूजन में विशेष महत्व है पर कल्पवृक्ष वृक्ष के वे ही फूल पूजा में काम लिए जाते है जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते है, वृक्ष से फूल तोड़ने और छूने की मनाही है। वर्तमान समय पूरे पेड़ में एक फूल निकला है।

फूल खिलने की बात सुनकर सैकड़ों लोग रोजाना किंनूर पहुंच रहे हैं। चन्द्रवती (50 वर्ष) दिल्ली से इस पेड़ को देखने के लिए आई वो बताती हैं, “मैंने बचपन से इस पेड़ के बारे में सुना था। कई बार देखने की इच्छा हुई जो आज पूरी हुई।” मन्दिर के पुजारी गोपालदास (66 वर्ष) बताते हैं, ‘‘वर्ष 1997 में सरकार ने इसकी देख-रेख में थोड़ा ध्यान दिया था तब से लेकर आज तक यहां कोई देख-रेख नहीं हुई। मैं यहां पर 27 साल से पुजारी हूं। कल्पतरु परिजात वृक्ष का महत्व बहुत है, प्रत्येक मंगलवार और पूर्णमासी को मेला लगता है। अगस्त में इस वृक्ष में सफेद फूल आते हैं जो सूखने के बाद सुनहरे रंग में बदल जाते हैं।”

इस वृक्ष से दो किलोमीटर दूर कुन्तेश्वर महादेव मंदिर है। कहा जाता है कि जब पाण्डवों ने कंटूर में अज्ञातवास किया तो उन्होंने वहां अपनी मां कुन्ती के लिए भगवन शिव के एक मंदिर की स्थापना की जो कि अब कुन्तेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। किवदंती कि माता कुन्ती कल्पवृक्ष (पारिजात) के पुष्पों से भगवान् शंकर कि पूजा अर्चना कर सकें इसलिए पांडवों ने सत्यभामा कि वाटिका से वृक्ष को लाकर यहाँ स्थापित कर दिया और तभी से वृक्ष यहां पर है।

रिपोर्टर – सतीष कश्यप/ वीरेन्द्र सिंह 

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