लखनऊ। अक्सर महिलाएं घर के काम काज के आगे अपने स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही बरतती हैं और यही कारण है कि ज्यादातर महिलाएं खून की कमी या एनीमिक हो जाती हैं।
खून की कमी कई बार गर्भावस्था के दौरान मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं। लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर मोहनलालगंज ब्लॉक के मगधारा गाँव के रहने वाली सीमा (30 वर्ष) को प्रसवपीड़ा होने पर स्वास्थ्य केन्द्र तक ले जाया गया लेकिन प्रसव के दौरान लगातार उनकी हालत बिगड़ती गई और मौत हो गई। स्वास्थ्य विभाग ने जब मामले की जांच की तो पता चला कि सीमा को खून की कमी थी।
यूनीसेफ के अनुसार, उत्तर प्रदेश में लगभग 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में खून की कमी यानि वो एनीमिक हैं।
‘’गर्भावस्था में महिलाओं को आयरन, विटामिन, मिनरल सबकी ज्यादा जरूरत होती है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी महिलाओं को एनीमिक बना देती है। महिलाओं में हिमोग्लोबिन 12 ग्राम होना चाहिए जबकि पुरूषों में 13.5 ग्राम होनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान खून की कमी से समय से पहले प्रसव दर्द, शिशु का कम वजन या कभी कभार मौत भी हो जाती है।” लखनऊ जिले की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ पुष्पा जायसवाल बतातीं हैं।
लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को उतना पोषण मिल ही नहीं पाता जितनी उन्हें आवश्यकता होती है। लखनऊ जिले से लगभग 34 किमी दूर दक्खिन टोला गाँव की रहने वाली राजमाला (25) चार माह के गर्भ से हैं। खानपान के बारे में पूछने पर वो बताती हैं, “खाना खाते हैं जो भी बनता है, बाकी डॉक्टर ने बताया था कि आपको खून की कमी है तो अब दूध भी पीने लगे हैं रात को। दवाएं जो लिखी हैं वो खाते हैं।”
उन्नाव जिले के उपमुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आर के गौतम बताते हैं, ‘’मातृ मृत्यु दर के अधिकतर मामलों में खून की कमी प्रमुख कारण बनती हैं। गर्भावस्था के दौरान व इससे पहले खून की कमी होने के बावजूद महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। खून की कमी की वजह से प्रसव के दौरान महिलाओं की हालत बिगड़ जाती है और उनकी मौत हो जाती है।”
मातृ मृत्यु दर के तेजी से बढ़ते आंकड़ों में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आशा बहुओं को जिम्मेदारी दी है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य कार्ड बनाने के साथ ही उनका नियमित चेकअप भी कराएं। गर्भावस्था के दौरान आयरन की सौ गोलियां खाने के लिए गर्भवती महिलाओं को दें।
लखनऊ जिले से लगभग 35 किमी दूर गोसाईंगज के अमेठी गाँव की रहने वाली रेनू देवी 30 वर्ष बताती हैं, हमारी तो कभी कोई जांच नहीं हुई। न आयरन की गोलियां मिलती हैं। हमारी गर्ज हो तो खुद उन्हें बुलाने ले जाएं। वहीं आशा बहुओं का कहना है कि विभाग से उन्हें समय से गोलियां नहीं दी जाती हैं। लखनऊ जिले के मोहनलालगंज ब्लॉक की आशा बहू नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं, ‘’हमें जब गोलियां समय पर मिलेंगी तभी बांटेगें। एनएएम कभी देती हैं तो कभी देती ही नहीं है, जबकि गाँव में तो हम रहते हैं, हमें पता है कि किसे जरूरत है और किसे नहीं।”
रिपोर्टर – श्रृंखला पाण्डेय