गर्भावस्था में बीपी बढ़ने पर रहें सतर्क

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सुनैना पहली बार मां बनने जा रही थी। आठवें महीने से ही पैरों पर बहुत अधिक सूजन आने लगी। सिर में भी दर्द रहने लगा। घर-पड़ोस की महिलाओं ने सूजन को मामूली माना और घर का  काम करने की सलाह दी। एक दिन सुनैना बेहोश हो गयी और उसे दौरे पडऩे लगे। एम्बुलेंस में डालकर शहर लाया गया। छोटे नर्सिंग होम ने भर्ती करने से मना कर दिया। केस काफी खतरनाक था और मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा था। बड़े हॉस्पिटल में जाते ही उसे आईसीयू में भर्ती कर लिया गया। पता चला उसका बीपी अर्थात रक्तचाप बहुत अधिक बढ़ गया था। तुरंत ऑपरेशन करके उसे बड़ी मुश्किल से बचाया गया। इस गंभीर व जटिल बीमारी को पीआईएच कहते हैं।

यह गर्भावस्था में बीपी के बढ़ जाने से हो जाती है। इस के कारण मां और बच्चे दोनों की जान खतरे में पढ़ जाती है।

अफसोस ऑपरेशन के बाद भी उसके बच्चे को नही बचाया जा सका। हमारे देश में एक लाख प्रसव पर 400 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। बीपी इसका एक मुख्य कारण है।

बचने का एक ही तरीका है कि गर्भावस्था में नियमित जांच कराएं। थोड़ा बीपी बढ़ते ही इलाज शुरू किया जा सकता है और जान बचाई जा सकती है। दौरे पडऩा तो बीमारी का आखिरी लक्षण है। बहुत घरों में इसे ऊपरी चक्कर मानकर झाड़ फूंक कराई जाती है। समय पर सही इलाज ना मिलने से बीमारी जटिल रूप ले लेती है। याद रहे, प्रजनन क्षमता  औरत को दिया कुदरत का वरदान है, यह अभिशाप ना बन जाए।

  1. गर्भावस्था में रक्तचाप की जांच ज़रूरी है।
  2. पैरों की सूजन को गंभीरता से लें।
  3. संस्थागत डिलीवरी ही कराएं।
  4. समय-समय पर प्रसूति रोग विशेषज्ञ को दिखाते रहें।

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