पाहीं (आजमगढ़)। आजमगढ़ जिले में एक गाँव है जहां पहुंचने से काफी दूर पहले से ही घने जंगल आपका स्वागत करते हैं, लेकिन ये घना जंगल वन विभाग ने नहीं बल्कि एक अकेले व्यक्ति ने पिछले 50 सालों में खड़ा किया है।
जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर सठियांव ब्लॉक के पाहीं गाँव के एक किलोमीटर पहले से ही आप को अहसास होने लगेगा कि आप जंगल की ओर जा रहे हैं और आधा किलोमीटर पहले से सड़क के दोनों ओर लगे पेड़ आपको शीतलता का अहसास कराएंगे। गाँव में भी चारों तरफ हरियाली है। सड़क के किनारे से लेकर खेतों की मेड़ों तक हर जगह बस पौधे। गाँव के पास से गुजरने वाली नदी टमस के किनारे-किनारे दूर तक बस, जंगल।
इस जंगल को बसाने का श्रेय यहां के निवासी दिवाकर सिंह (70 वर्ष) को जाता है। साल 1968 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एमएससी एग्रीकल्चर टॉप करने के बाद कहीं नौकरी करने के बजाए दिवाकर गाँव में ही खेती करने लगे। गाँव के पास से गुज़रने वाली नदी के पास इनके कई बीघा खेत खाली पड़े थे। दिवाकर ने अपने शौक को पूरा करने के लिए वहीं से पेड़ लगाने शुरु कर दिए।
जंगल इतना बड़ा है कि उसमे कई जंगली जानवरों ने अपना आशियाना बनाया है।एक गूलर के बड़े पेड़ की तरफ इशारा करते हुए दिवाकर सिंह बताते हैं, “गाँव आने के बाद मुझे लगा की कुछ अलग करना चाहिए, तभी से पेड़ लगाना शुरू किया और आज भी उसी तरह लगाता हूँ। नदी के किनारे कई किमी के दायरे में मैंने पेड़ लगा दिए जो अब पूरे जंगल बन गये हैं।”
कई सालों पहले दिवाकर द्वारा लगाये गये आम, शीशम, सुबबूल, अर्जुन, सागौन और अमरुद जैसे पौधों ने अब वृक्षों का रूप ले लिया है। दिवाकर सिंह के बेटे भी उनका पूरा साथ देते हैं। बेटे अजय सिंह (40 वर्ष) ने साल 2011 में 13 बीघा जमीन में लगभग 30 हज़ार पौधे लगाए थे। अनुमानत: पूरे गाँव में एक लाख से ज्यादा पेड़ होंगे। दिवाकर सिंह के बड़े लड़के विजय सिंह एक अध्यापक हैं।
दो और लड़के अजय सिंह व सुधीर सिंह खेती बाड़ी का काम देखते हैं। खाली समय में तीनों भाई अपने पिता के साथ अपने लगाये हुए पेड़ों की देखभाल करते हैं। दिवाकर सिंह बताते हैं कि शौक में खड़ा हुआ यह जंगल उन्हें पैसे भी देता है। वे कहते हैं कि कभी कोई हरा पेड़ यहां काटा नहीं जाता, सूखे पेड़ों को काटकर उन्हें बेचने से अच्छी आमदनी हो जाती है।