60 से 90 दिनों में तैयार हो रही कददू की ये किस्म

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लखनऊ । कभी केवल गाँवों में शादी समारोहों तक सीमित रहने वाला कद्दू अब एक बड़ी फसल बन चुका है, जिससे किसान जम कर लाभ कमा रहे हैं। शादियों में बनने वाला कद्दू आज मुख्य फसल के रूप किसानों की पहली पसंद बन गया है । 60-90 दिनों में कद्दू की फसल तैयार हो जाती है, जिससे बेहतरीन लाभ हो रहा है।

कद्दू की फसल में तीन हजार की लागत एक एकड़ खेत में आती है। प्रति एकड़ में 60 कुंतल कद्दू निकल आता है। एक कुंतल कद्दू की कीमत कम से कम पांच हजार रुपए है। इस हिसाब से 20 से 30 हजार का मुनाफा हो जाता है।

कद्दू का हाइब्रिड बीज बाजार में तीन हजार रूपए किलो मिलता हैं, बीज तो महंगा है लेकिन छोटी जोत के बहुत सारे किसान एक साथ मिलकर एक किलो बीज खरीद लेते हैं। एक एकड़ में 250 ग्राम बीज बोया जाता है।

ग्रामीण और शहर दोनों जगह रहती है कद्दू की मांग।

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कानपुर देहात के राजपुर ब्लॉक से तीन किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में पितम्बरपुर गाँव है। इस गाँव में रहने वाले विनोद कटियार (47 वर्ष) ने इस साल अपने खेत में 22 बीघा कद्दू की बोआई की है। विनोद बताते हैं, “इस बार कद्दू की 90 दिनों की फसल बोई है। 90 दिनों की फसल में ज्यादा नुकसान होने की सम्भावना नहीं होती है। हम कद्दू की फसल में खाद बहुत ज्यादा नहीं डालते हैं । गोबर की खाद बुवाई की पहले डाल देते हैं।

खासभरा में रहने वाले महेंद्र कटियार (35 वर्ष) का कहना है कि पूरे तीन महीने जुलाई अगस्त सितम्बर में घर में सब्जी की चिंता नहीं रहती हैं। पूरे गाँव में 100 से 150 बीघा खेती कद्दू की होती हैं। सब्जी बनाने के लिए कोई भी किसी के खेत से कद्दू ले सकता हैं। सहालगों के समय के लिए इसे पहले से ही इकट्ठा करके रख लेते हैं।

कद्दू की सबसे ज्यादा बोई जाने वाली वैरायटी सेंचूरी, पहूजा 90 दिनों की हैं। पीएन-11 सिर्फ दो महीने की फसल हैं। लागत प्रति एकड़ में तीन हजार रुपए आती है। एक पौधे में आठ से दस फल लगते हैं। 60 दिन की फसल की बुवाई जून के पहले और दूसरे सप्ताह में कर दी जाती है, जबकि 90 दिन वाली फसल की बुवाई जुलाई के पहले और दूसरे सप्ताह में की जाती है।

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खासभरा गाँव के कद्दू व्यापारी श्रीनाथ प्रधान बताते हैं, “मैं पिछले कई सालों से कद्दू का धंधा कर रहा हूं। राजपुर ब्लॉक के सैकड़ों गाँवों के हजारों बीघा कद्दू की खरीददारी मैं ही करता हूं, इसकी मुख्य मंडी दिल्ली के आजाद नगर में है। छोटी जोत के किसान दूरी की वजह से उतनी दूर जा नहीं पाते हैं। कई बार बड़ी जोत के किसान दिल्ली लेकर भी चले जाते हैं।

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