स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
चित्रकूट। उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड के कई जिलों में बरसों से पानी की कमी है। इन जिलों में रहने वाली लगभग सभी महिलाओं के लिए हर दिन सबसे बड़ा काम घर के लिए पानी की व्यवस्था करना होता है।
चित्रकूट जिला मुख्यालय से 75 किमी. दूर मऊ ब्लॉक से पश्चिम दिशा में पतेरी गाँव है। इस गाँव में लगभग 100 घर हैं। पूरे गाँव में सिर्फ दो नल लगे हैं, जिसमें एक से ही पानी निकल रहा है। गाँव में रहने वाली छोटी कोल (58 वर्ष) बताती हैं, “ मेरी इतनी उम्र हो चुकी है, मगर पानी भरने के लिए मैं सुबह चार बजे ही खटिया छोड़ देती हूं और मैं और मेरी बहू गाँव से एक किलोमीटर दूर पानी भरने के लिए जाते हैं। अगर जल्दी न उठे तो नल पर घंटों लाइन में खड़े होना पड़ता है। हमारे लिए तो यह समझिए कि अगर पानी भर गया तो समझो घर का सारा काम हो गया।”
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छोटी कोल की पानी को लेकर ये पीड़ा बुंदेलखंड की एक महिला की पीड़ा नहीं है, बल्कि बुंदेलखंड से लेकर वो जिले जहां पानी का संकट दिनोंदिन गहराता जा रहा है, वहां जीवन यापन कर रही हजारों महिलाओं का ये दर्द है।
बुंदेलखंड क्षेत्र और जिन जिलों में पानी की समस्या हैं, वहां पानी की जद्दोजहद झेल रही महिलाएं नयी सरकार से सिर्फ एक ही उम्मीद लगाए बैठी हैं कि उन्हें सरकार की किसी भी योजना का लाभ मिले या न मिले, पर पानी जैसी मूलभूत जरूरत से वंचित न किया जाए, जिससे उनकी हरदिन की मुश्किलें आसान हो सकें और पीने का दो घूंट पानी उन्हें सुकून से मिल सके। इन क्षेत्रों में पानी की समस्या से सबसे ज्यादा महिलाओं को ही रुबरु होना पड़ता है।
हाल में बुंदेलखंड के दौरे के दौरान झांसी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता को संबोधित करते हुए कहा था, “बुंदेलखंड क्षेत्र में कई सालों से चली आ रही पानी की समस्या को दो वर्षों में पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जायेगा, इस क्षेत्र के लिए जो भी योजनाएं स्वीकृत हुई हैं, सभी योजनाएं जल्द ही लागू हो जाएंगी।”
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जहां देश के जलाशयों में 21 प्रतिशत पानी कम हो गया है, वहीं देशभर में 47 प्रतिशत कुएं भी सूख चुके हैं। महाराष्ट्र के लातूर में तो पानी बचाने के लिए धारा 144 तक लगानी पड़ी। अगर हम अब भी न चेते तो वह दिन दूर नहीं जब ऐसे ही हम सभी को पानी के लिए युद्ध लड़ना होगा।
ललितपुर में पानी को लेकर काम कर रही नाबार्ड संस्था और साई ज्योति संस्था के प्रोजेक्ट मैनेजर सिद्ध गोपाल सिंह का कहना है, “हम ललितपुर के 170 गाँव और नाबार्ड 500 गाँव में पानी को लेकर अभियान चला रहा है, जिसमें महिलाओं से जब बात की तो पता चला कि हजारों की संख्या में ये महिलाएं जब तक दिनभर के पानी का इंतजाम न कर लें तबतक मानसिक तनाव में रहती हैं।”वो आगे बताते हैं, “यहां के पहाड़ी क्षेत्र में पानी की बहुत ज्यादा दिक्कत रहती है, सरकार के जो भी चेक डेम या मेड़बंदी हुई है, एक बार बनने के बाद दोबारा कभी इसके मेंटीनेंस पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिससे ये उपयोग में नहीं लाये जा सकते। लोग पानी की बचत को लेकर जागरूक हो और खुद श्रमदान करें, ये हमारी कोशिश है।
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पानी की वजह से समय से स्कूल नहीं पहुंच पाते बच्चे
जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर बिरधा ब्लॉक के बालाबेहट, बजरंगगढ़, गुड़ारी पंचायत के लोग पानी भरने के लिए आधा से एक किलोमीटर दूर तक जाते हैं। बालाबेहट में रहने वाली रचना प्रजापति (22 वर्ष) का कहना है, “कई बार पानी भरने के चक्कर में समय से स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं, यहां पानी की हर वक्त यही मुसीबत रहती है, हम सरकार की दूसरी योजनाओं के लाभ के बारे में सोच भी नहीं पाते क्योंकि हमारी पहली जरूरत पानी की ही पूरी नहीं हो पाती है।” रचना की तरह यहां की किशोरियां पढ़ाई के दौरान वक्त से स्कूल नहीं पहुंच पाती।
ललितपुर जिलाधिकारी मानवेन्द्र सिंह ने बताया, गर्मियों के मौसम में पानी की समस्या थोड़ी बढ़ जाती है, जिन क्षेत्रों में नल पानी छोड़ जाते हैं वहां टैंकर भेजने का कार्य करते हैं, जिले में 92 माइक्रों प्लांट बनवाये हैं, खेत तालाब योजना भी चल रही हैं, जिले में पानी की समस्या न हो ये हमारा प्रयास है।
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