निर्धन बच्चों की प्रतिभा को निखार रहा ‘चबूतरा थियेटर पाठशाला’

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स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। प्रतिभा पैसे की मोहताज नहीं, निर्धन बच्चों की प्रतिभा को पंख दे रहा एक चबूतरा कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा है। इस चबूतरे को नाम दिया गया है “चबूतरा थियेटर पाठशाला” जिसे महेश चन्द्र देवा पिछले कई वर्षों से संचालित कर रहे हैं। इस पाठशाला में उन बच्चों की प्रतिभा को निखारा जाता है, जो निर्धनता के चलते खुद में छुपी प्रतिभा को दबाये रहते हैं।

महेश चन्द्र देवा बताते हैं, “लगभग पिछले तेरह वर्षों से मैं एक संस्था संचालित कर रहा हूं जिसका नाम है मदर सेवा संस्थान, इसी के तहत मैंने चबूतरा थियेटर पाठशाला की शुरुआत की। इस पाठशाला में उन बच्चों को अभिनय, नृत्य, गायन, लेखन, फाइन आर्ट जैसी अन्य कलाओं को सिखाया जाता है जिसकी प्रतिभा उनमें छुपी है लेकिन पैसे की तंगी के चलते उस प्रतिभा को निखार नहीं पा रहे थे। इन बच्चों के अंदर छुपी प्रतिभा निखर न पाने के चलते इनके सपने भी दम तोड़ रहे थे जो वह इस क्षेत्र में खुद के लिए देख रहे थे। अब इनकी प्रतिभा भी निखर रही है।”

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पाठशाला की शुरुआत से ही 14 वर्षीय मोहम्मद अमन इस पाठशाला से जुड़े हुए हैं और अपनी रुचि के अनुसार अभिनय व लेखन की कला को निखारने में व्यस्त हैं। अमन बताते हैं, “मुझे अभिनय का बहुत शौक है और मैं फिल्मों में एक्टिंग करना चाहता हूं। मेरे पिता लखनऊ विश्वविद्यालय में चपरासी का काम करते हैं और इतना पैसा नहीं है कि मेरे इस शौक पर पैसा खर्च कर सकें। मुझे इस पाठशाला में फ्री में अभिनय और लेखन सिखाया जाता है। मैंने अब तक आठ नाटक लिखे हैं और कई नाटकों में काम किया है। ऑडीशन देता रहता हूं शायद किसी फिल्म में काम मिल जाये।”

मुझे एक्टिंग का बहुत शौक है लेकिन मेरे पापा नगर निगम में सफाईकर्मी हैं और इतना पैसा नहीं कि मुझको बहुत बड़ी जगह कोर्स के लिए भेज सकें। मेरे पापा ने मुझे इस पाठशाला में भेजा है जहां मुझे वही सब सीखने को मिल रहा है जो बड़े कॉलेजों में सीखने को मिलता है। मैंने यहीं पर सीखकर कई नाटक लिखे और थियेटर में मंचित हुए नाटकों में अभिनय भी किया। मुझे सुरभि फाउंडेशन ने सृजन सम्मान भी दिया है।

सोनाली बाल्मीकि ,उम्र 15 वर्ष

थियेटर शाखा की संचािलत हो रही हैं तीन शाखाएं

चबूतरा थियेटर पाठशाला की तीन शाखाएं संचालित हो रही हैं। इन शाखाओं में 4 से 16 वर्ष तक के लगभग डेढ़ सौ बच्चे अभिनय, नृत्य, गायन, लेखन, फाइन आर्ट, मार्शल आर्ट जैसी कलाओं को सीख रहे हैं। सप्ताह में दो दिन लगभग दो से तीन घंटे के लिए अलग-अलग कलाओं की कक्षाएं संचालित होती हैं। इसके साथ ही छुट्टी के दिन व रंगमंच और हिन्दी दिवस जैसे अन्य दिवसों में इन कक्षाओं में अलग-अलग कला से दक्ष शिक्षक बच्चों को प्रशिक्षित कर रहे हैं।

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