स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत प्राइवेट स्कूलों में गरीब बच्चों को नर्सरी, एलकेजी और यूकेजी में दाखिला दिए जाने के आदेश शासन द्वारा दिेए गए थे। इसके बावजूद आदेशों का पालन ज्यादातर स्कूलों द्वारा नहीं किया जा रहा है। कई स्कूलों ने दाखिला करने के बाद बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया। हाल यह है कि कई स्कूलों के खिलाफ अभिभावकों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी है।
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वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 3 दिसम्बर 2012 को प्रदेश सरकार ने एक शासनादेश जारी किया था। इसके अनुसार निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें निर्धन वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित रखी जाएंगी। इन सीटों पर बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाएगी, लेकिन शासनादेश के बावजूद स्कूलों में बच्चों को दाखिला देने में स्कूल आनाकानी करते रहे हैं।
वर्ष 2015 में इस आदेश के खिलाफ कोर्ट जाने वाले राजधानी के स्कूल सिटी मॉन्टेसरी स्कूल ने केस हारने के बाद 13 बच्चों को स्कूल में दाखिला दिया था। इसके बाद स्कूल ने एक भी दाखिला नहीं किया। यही नहीं नवयुग रेडियन्स और वीरेन्द्र स्वरूप जैसे कई अन्य स्कूल भी बच्चों को अपने स्कूल में दाखिला देना नहीं चाहते। इसी तरह अन्य स्कूल भी अपनी मनमानी करने लगे हैं।सीएमएस के चीफ पीआरओ डॉ. हरिओम शर्मा ने कहा, “आरटीई के तहत स्कूल में दाखिले के मामले में मैं कुछ नहीं कह सकता।”
जब सीएमएस के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने ने भी इस बारे में बात करने से इंकार कर दिया। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही अभ्युदय फाउंडेशन की प्रमुख और आरटीई एक्टिविस्ट समीना बानो कहती हैं, “कई स्कूल ऐसे हैं जो काफी ऊंची पहुंच रखते हैं और कई बार कोशिश के बावजूद बच्चों का दाखिला स्कूलों में नहीं कर रहें हैं। उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में बच्चों के आवेदन आते रहें हैं लेकिन बमुश्किल कुछ ही बच्चों का दाखिला स्कूलों में करवाया जा सका है। इसके लिए सख्त कानून बनना चाहिएजिससे स्कूल प्रशासन अपनी मनमानी न कर सकें।” स्कूलों पर कोई ठोस कार्रवाई न किए जाने के कारण स्कूल किसी भी आदेश को दरकिनार कर देते हैं।
कई कोशिशों के बाद भी परिणाम रहा शून्य
समाजसेवी व मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय कहते हैं, “कुछ मध्यम वर्ग के स्कूल ऐसे हैं, जिन्होंने बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिया है। जो स्कूल रसूखदारों से सम्बन्ध रखते हैं वे बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दे रहें हैं। कुछ अभिभावकों ने इस सम्बन्ध में कई स्कूलों पर केस भी किया हुआ है जो अभी न्यायालय में लम्बित है। कई बार इस संबंध में धरना प्रदर्शन व अनशन किया गया लेकिन इसका परिणाम शून्य है।”
नहीं दर्ज करवाई गई शिकायत
लखनऊ के बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी कहते हैं, “आरटीई के तहत स्कूलों में निर्धन वर्ग के बच्चों को स्कूलों द्वारा दाखिला न दिए जाने के लिए कई बार चेतावनी दी गई। जिस बोर्ड से स्कूल सम्बद्ध हैं उस बोर्ड से स्कूलों की मान्यता रद्द करने के लिए लिखित शिकायत की गई। फिर भी स्कूलों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मैं प्रत्यक्ष तौर पर केवल उन स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता हूं जो यूपी बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं। ऐसे किसी स्कूल में दाखिला न लिये जाने की कोई शिकायत दर्ज नहीं करवाई गई है।”
‘हम लोग मजबूर हैं’
अपनी 6 वर्ष की बेटी आशना फरहद का दाखिला आरटीई के तहत स्कूल में करवाने के लिए भटक रहे पिता सरफराज़ (42 वर्ष) कहते हैं, “पिछले वर्ष से बच्ची का दाखिला करवाने के लिए परेशान हूं। मैं सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हूं इसलिए चाहता हूं कि सरकार जो सुविधा हम जैसे लोगों के बच्चों के लिए दे रही है उसके तहत बच्ची का दाखिला स्कूल में हो जाए। फिर भी कामयाबी नहीं मिल सकी है। स्कूल वाले अपनी मनमानी पर उतारू हैं और सरकारी आदेश को भी नहीं मान रहें। जब सरकार ऐसे स्कूलों के खिलाफ कुछ नहीं करती तो हम लोग मजबूर हैं।”
यूपी में लगभग 80 हजार प्राइवेट स्कूल
जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग 80 हजार रजिस्टर्ड प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें लगभग 6 लाख सीटें हैं। लखनऊ की बात करें तो यहां 30 हजार के लगभग रजिस्टर्ड प्राइवेट स्कूल हैं। इनमें से लगभग आधे स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला करवाने की तमन्ना नहीं रखते हैं। बाकी स्कूलों में बच्चों का दाखिला स्कूल प्रशासन द्वारा दिया नहीं जा रहा है।
आंकड़ों में दाखिले कम
वर्ष 2013 में 54 और वर्ष 2014 में भी 54 बच्चों के दाखिले स्कूलों में हुए। वर्ष 2015 में 4400 व 2016 में 17,000 बच्चों का दाखिला स्कूलों में करवाया गया, जबकि इनको काफी बड़ी संख्या में होना चाहिे था।
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