उत्तर प्रदेश में चार करोड़ से अधिक पशुओं का होगा टीकाकरण

पशु रोग निदान लैब

होरी लाल/स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रायबरेली। गाँव कनेक्शन फांउडेशन एवं पशु पालन विभाग की सहभागिता से जिले के बछरावां ब्लॉक के सरौरा ग्राम में 101 गौवंशी एवं 149 महिष वंशियों को खुरपका, मुंहपका के टीके लगाए गए और ग्रामीणों को पशुपालन संबंधी जानकारी व रख रखाव के तरीके बताए गए।

जिले में किए जा रहे पशुओं के टीकाकरण के बारे में बछरावां ब्लॉक के पशुधन प्रसार अधिकारी डाॅ. सतेन्द्र कुमार सिंह बताते हैं,“ खुरपका, मुंहपका पशुओं के लिए एक घातक बीमारी है, जिसके लिए प्रशासन द्वारा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूरे जिले में खुरपका, मुंहपका के टीकाकरण का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। हमारे ब्लॉक की एक टीम में एक पशुधन प्रसार अधिकारी, एक पैरावेट तथा एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को मिलाकर तीन कर्मचारियों की एक टीम बनाई गई है।”

पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) एक संक्रामक रोग है, जो विषाणु द्वारा फैलता है। इस बीमारी को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा हर वर्ष दो बार गाँव-गाँव जाकर टीकाकरण किया जाता है। पूरे प्रदेश में चार करोड़ 75 लाख पशुओं को टीका लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

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“ खुरपका एक खतरनाक बीमारी है,जिसमें पशुओं के खुर पक जाते हैं और पशु चलने फिरने में असहाय हो जाता है। इसी तरह मुंहपका भी पशुओं में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है,जिसमें पशु के मुंह में छाले पड़ जाते हैं और वह चारा नही खा पाता है। देखते ही देखते पशु कमज़ोर हो जाता है और अगर सही समय पर टीकाकरण न किया गया तो अंत में पशु की मृत्यु भी हो सकती है।” डाॅ. सतेन्द्र कुमार सिंह आगे बताते हैं।

पशु टीकाकरण के लिए हर वर्ष प्रशासन द्वारा अभियान चलाकर पशुओं का टीकाकरण कर उन्हें रोग मुक्त कराया जाता है, जिससे पशु पालकों की आय में वृद्धि हो सके।रायबरेली जिले के पशु चिकित्सा अधिकारी एजाज अहमद बताते हैं,“इस वर्ष हमारे पास छह लाख 89 हज़ार पशुओं के टीकाकरण का लक्ष्य है, जिसे हम छह माह में पूरा करेंगें।

टीकाकरण के लिए ब्लॉक स्तर पर हमने टीमें नियुक्त की हैं, जो अपनी अपनी ग्रामसभाओं में जाकर पशुओं का टीकाकरण करेंगे और पशु पालकों को टीकाकरण जानकारी देंगें।”

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मुंहपका रोगी पशु को दूसरे पशुओं के साथ न खिलाएं चारा

मुंहपका रोगी पशु को दूसरे पशुओं के साथ चारा नहीं खाने देना चाहिए क्योंकि यह बीमारी अगर दो पशु एक नांद में चारा खाते हैं, तो दूसरे पशु में भी इसके लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

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