स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। वो दिमागी रूप से बीमार है, उसे अपना नाम-पता भी मालूम नहीं। बस भाई-भाई कह रही थी, कोई अपना तो रहा ही होगा। लेकिन पागल समझ अपनों ने साथ छोड़ दिया। बीमारी और अकेलेपन की ज़िन्दगी तो उसकी थी ही, उस पर से मनचलों ने भी नहीं बख्शा। मानसिक विक्षिप्त महिला दो बार प्रेग्नेंट हुई और दोनों बार उसके बच्चे मर गए।
आशा ज्योति केंद्र लखनऊ से जुड़ी समाजिक कार्यकर्ता अर्चना सिंह बताती हैं, “बीते सोमवार की रात ग्यारह बजे गोसाईगंज थाने के खुर्दही बाजार में पेट्रोल पम्प के पास मानसिक रूप विक्षिप्त महिला ने बच्चे को जन्म दिया। सड़क किनारे खून से लथपथ चीख रही थी, किसी राहगीर ने महिला हेल्प लाइन 181 पर फोन कर सूचना दी। स्थानीय लोगों ने बताया कि दो साल पहले इसे बच्चा हुआ था। वो बच्चा जिन्दा था। गाँव वालों ने किसी महिला को बच्चा दे दिया। एक महीने बाद उस बच्चे की मौत हो गयी थी।”
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अर्चना सिंह आगे बताती हैं, “सूचना मिलने पर हम अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुंचे। वहां पर गोसाईगंज पुलिस पहले से मौजूद थी। महिला बिना कपड़े के सड़क पर पड़ी थी। उसका नवजात बच्चा बगल में रो रहा था। हमने एम्बुलेंस के लिए 102 पर काल किया। एम्बुलेंस के आने में देरी हुई तो हम अपने रेस्क्यू वैन में महिला व बच्चे को बैठाकर झलकारी बाई अस्पताल हजरतगंज आए।”
झलकारी बाई अस्पताल में डॉक्टर ने तुरंत दोनों का इलाज शुरू किया। डॉक्टर ने स्थिति देखकर महिला व बच्चे को केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर भेज दिया। हमने बच्चे को ट्रॉमा में भर्ती करवाया। डॉक्टर ने तुरंत इलाज शुरू की और माँ को क्वीन मेरी में इमरजेंसी भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टर ने वेलफेयर कमेटी से पैसा निकाल कर इलाज शुरू कर दिया। रात दो बजे डॉक्टर ने बच्चे की मरने की खबर दी। बीमार महिला कुछ ठीक हुई तो उसे निर्वाण मानसिक आश्रय गृह रखा गया है।
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निर्वाण मानसिक आश्रय के डॉ. संतोष दुबे बताते हैं, “जब यह महिला आई थी तो वह फटे कपड़े में थी और सर पर फटा कपड़ा बांधी थी। उसका बुरा हाल था। ऐसी घटनाएं बहुत ज्यादा तो नहीं होती, लेकिन होती हैं। सरकार तो इनके लिए काम कर रही है, लेकिन और बड़े स्तर पर काम करने की ज़रूरत है।”
किसी मानसिक विक्षिप्त महिला के साथ यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी फरवरी महीने में चिनहट के पास एक मानसिक रूप से बीमार महिला को बच्चा हुआ था। महिला और बच्चे दोनों सुरक्षित थे। हाल ही में राजस्थान में एक मानसिक रूप से बीमार महिला को कुछ लड़के मारते हुए नजर आए थे। लड़कों ने उसे बेल्ट से बुरी तरह मारा था।
मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाओं के लिए देश भर में काम करने वाली संस्था द बानयान से जुड़े ऋषभ आनन्द बताते हैं, मानसिक रूप से सही महिलाएं जब समाज में सुरक्षित नहीं है, तो मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाओं का शोषण होना बहुत आम बात है। हरियाणा के यमुनानगर जिले में एक सरकारी अस्पताल के अंदर मानसिक रूप से विक्षिप्त एक लड़की से बलात्कार का मामला आया था।
देश में मनोचिकित्सकों के कमी
केजीएमयू के मानसिक विभाग के निदेशक डॉ. एससी तिवारी बताते हैं, इस तरह की घटनाएं आम नहीं है। कभी-कभी ऐसी घटना घट जाती है। मानसिक रूप से विक्षिप्त रोगियों के लिए प्रदेश में बड़े स्तर पर काम हो रहा है। सभी सरकारी अस्पतालों में मानसिक रोग विभाग बना हुआ है। मानसिक रोग से बीमार लोगों के लिए पेंशन का भी सरकार ने इंतजाम की है। सरकारी अस्पतालों के अलावा प्राइवेट अस्पतालों में और स्वयं सेवी संस्थाओं में इनके लिए इलाज का प्रावधान किया गया। इनके पुर्नवास के लिए नारी निकेतन सहित कई आश्रम बनाए गए है। तमाम सुविधाओं के बावजूद कुछ कमी रह जाती है।
इण्डिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2015 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए एक जवाब के अनुसार, राष्ट्र स्तर पर 3,800 मनोचिकित्सकों, 898 नैदानिक मनोवैज्ञानिक, 850 मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता और 1500 मनोरोग नर्सें हैं। इसका मतलब हुआ कि प्रति मिलियन लोगों पर मनोचिकित्सक हैं। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार यह राष्ट्रमंडल द्वारा तय किए गए प्रति 100,000 लोगों पर 5.6 मनोचिकित्सक के मानक से 18 गुना कम है। इस अनुमान के अनुसार, भारत में 66,200 मनोचिकित्सकों की कमी है।
स्वास्थ्य बजट का सिर्फ 0.06 फीसदी मानसिक स्वास्थ्य खर्च करता
सरकार ने 2017 के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उल्लेखनीय इजाफा किया गया है। इसमें 2016-17 में 3706.55 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 47352.51करोड़ रुपए कर दिया गया है। इस प्रकार इसमें 27 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की गई है। इण्डिया स्पेंड द्वारा सितम्बर 2016 में किए एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मानसिक स्वास्थ्य पर अपने स्वास्थ्य बजट का 0.06 फीसदी खर्च करता है। यह बांग्लादेश (0.44 फीसदी) की तुलना में कम है।
2011 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश विकसित देश मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान, बुनियादी सुविधाओं, ढ़ांचा और प्रतिभा पूल पर अपने बजट के चार फीसदी से अधिक खर्च करते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार मानसिक रोगियों पर किसी भी प्रकार का डेटासेट की देखरेख नहीं करता है, क्योंकि स्वास्थ्य, राज्य का विषय है जबकि तीन केंद्रीय संस्थानों में मरीजों पर डेटा मौजूद है।
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