स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। कई पशुपालकों को गायों के बांझपन होने की परेशानी झेलनी पड़ती है। लेकिन इंडीयूज लैक्टेशन तकनीक की मदद से बांझ गाय दूध दे रही है। शिवशंकर की एचएफ नस्ल की बछिया करीब पांच वर्ष की हो चुकी थी। काफी इलाज किया लेकिन वह गर्भवती नहीं हो पाई। लेकिन इंडीयूज लैक्टेशन तकनीक की मदद से दो वर्षों से वह छह से आठ लीटर दूध प्रतिदिन दे रही है।
बाराबंकी जिले के पशु विशेषज्ञ डॉ. एसपी सिंह ने शिवशंकर की बछिया इंडीयूज लैक्टेशन तकनीक (हार्मोस से दूध उत्पादन) का प्रयोग से दूध दे रही है। डॉ. एसपी सिंह ने बताया, “अन्य बांझ गायों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर गायों में पोषक तत्वों की कमी नहीं है। तो उनके दूध देने की क्षमता नहीं घटेगी और गायों में पोषक तत्वों की कमी तभी होती है जब उसे गंभीर बीमारी हुई हो।”
भारत में डेयरी फार्मिंग और डेयरी उद्योग में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन जिम्मेदार है, जिससे पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में यह तकनीक काफी मददगार साबित हो रही है। बच्चा नहीं देने वाली गाय-भैंस में इंड्यूज लेक्टेशन तकनीक के जरिए दूध पैदा किया जाता है। मतलब निर्धारित कोर्स के अनुसार पशु को हार्मोन व स्टेरायड का इंजेक्शन दिया जाता है उसके कुछ दिन बाद वो दूध देने के काबिल होती है। दुधारु पशुओं में बढ़ते बांझपन की समस्या को देखते हुए राज्य सरकार भी गाय/ भैसों में अनुर्वता एवं बांझपन निवारण की योजना चला रही है। यह योजना 13 जिलों में चलाई जा रही है।
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पंतनगर में हुआ था पहला प्रयोग
इंडीयूज् लैक्टेशन विधि का इस्तेमाल पहले भी होता रहा है। बांझ गाय पर इसका प्रयोग 1987 में गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय पंतनगर में डॉ. वाइपीएस एवं डॉ एसी सूद ने 35 दिनों तक करने के बाद हासिल की थी। इससे पहले विदेश में जो प्रयोग हुए थे उनमें बांझ गाय से दूध निकलने में छह माह लग जाते थे।
इस तकनीक का प्रयोग सर्दियों में ही होता है। सबसे पहले गाय के पेट में मौजूद कीड़ों को मारने की दवा दी जाती है। उसके बाद खनिज लवण और विटामिंस का मिश्रण 20 से 25 दिन तक चलाया जाता है, जिससे गाय में जो पोषण की कमी होती है वो दूर हो जाती है। 13 दिनों तक गाय को हार्मोस के इंजेक्शन दिए जाते है। इसी दौरान कुछ फार्मूले का भी प्रयोग जाता है।
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