पुत्र प्रेमी समाज के लिए हुई एक और बेटी शहीद, काश किसी को गोद ही दे देते 

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गोमती नदी में एक और मृत नवजात बच्ची मिली। अलग-अलग रुप में भ्रूण हत्या जारी है। अनचाही बच्चियों को गोद लेने के लिए लाखों परिवार इंतजार में हैं लेकिन गोद लेने की प्रक्रिया काफी पेचीदा और भ्रष्टाचार में लिपटी हुई है।

लखनऊ। गोमती नदी के घाट पर बच्ची का भ्रूण उतराता मिला। ये कोई पहला मामला नहीं था, नदी, तालाबों के अलावा शहर के कूड़ेदानों, अस्पतालों की सूनसान जगहों पर मिलने वाले शव बताते हैं कि अलग-अलग रूपों में कन्या भ्रूण हत्या लगातार जारी है, जबकि लाखों लोग ऐसी बच्चियों को गोद लेकर नई जिंदगी दे सकते हैं।

अगर इन बच्चियों की जान लेने वाले माता-पिता थोड़ी समझदारी दिखाते तो न सिर्फ ये बच्चियां जिंदा होतीं, बल्कि उन लाखों घरों में किलकारियां गूंज रही होतीं जो इन अनचाही बच्चियों को गोद लेने के लिए इंतजार करते हैं, लेकिन गोद लेने की प्रक्रिया इतनी पेचीदा और भ्रष्टाचार में लिपटी हुई है, इनमें से ज्यादातर को मायूसी ही हाथ लगती है।

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लखनऊ के मनकामेश्वर महादेव मंदिर के स्वयंसेवक गुरुवार सुबह घाटों की सफाई करने पहुंचे, तब लोग नदी में पड़ी बच्ची की लाश को देखकर दंग रह गए। बच्ची की सिर्फ तस्वीरें ली जा सकीं, इससे पहले पुलिस और कोई उन्हें उठाता नदी के बहाव में शव बह गया। सीओ महानगर विशाल विक्रम ने बताया कि ये एक बच्ची का मृत भ्रूण था। गोमती बैराज को बंद करा के तलाश जारी है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले करीब पांच साल में राजधानी में 20 कन्या भ्रूण इधर-उधर सड़क पर पाए गए। वैसे भ्रूण कई बार बालकों के भी मिले, मगर उनमें कन्याओं की संख्या कहीं अधिक थी।

वहीं, बाराबंकी के देवा ब्लॅाक की रहने वाली आंगनबाड़ी कार्यकत्री नाम न बताने की शर्त पर बताती हैं, “हमारे ही जिले में कुछ ऐसी आशा बहुएं हैं, जो महिलाओं के गर्भपात कराने में मदद करती हैं। ज्यादा पैसे के चक्कर में गर्भपात कराने के लिए गैर सरकारी अस्पताल में ले जाती हैं। ऐसे में इन आशाओं को दो तरीके से पैसे कमाने का मौका मिल जाता है। एक तो परिवार से गर्भपात कराने का और दूसरा अस्पताल में महिला को लाने का। हमारा काम है कि हम भ्रूण हत्या रोके और परिवार और महिलाओं को इस बात की जानकारी देते हैं।”

बच्चियों के भ्रूण मिलने और तमाम रोकों के बाद भी लिंग जांच के बाद गर्भपात की ख़बरें इसलिए हैरान करने वाली हैं, क्योंकि देश में बेटी बचाओ अभियान केंद्र की फ्लैगशिप योजना में शामिल है और बच्चियों का अनुपात घट रहा है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बच्चों के लिंगानुपात में तेजी से गिरावट आ रही है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली की डाटा के आधार पर कैग रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में प्रति हजार लड़कों के 2015 में लिंगानुपात गिरकर 883 रह गया है।

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गोद लेने की कड़ी शर्तों के चलते नि:संतान दंपत्तियों को अक्सर मायूसी हाथ लगती है। लखनऊ में अल्लापुर निवासी एक दंपति ने भोपाल के मातृछाया संस्था से एक बच्ची को गोद लिया है। लेकिन अब उन्हें हर साल भोपाल जाना पड़ता है, सिर्फ बच्ची की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए। इस दंपति को अब ये नियम खलते हैं लेकिन वो मजबूर हैं।

लखनऊ की जानी-मानी स्त्री रोग चिकित्सक अरुणिमा सक्सेना का कहना है, “गोद लेने के नियमों में थोड़ा लचीलापन लाया जाए। ये अच्छी बात है कि समाज की सोच बदली है, लोग सरकारी तौर पर गोद लेने के लिये आ रहे हैं, अगर गोद लेने की प्रक्रिया थोड़ी सरल हो तो ज्यादा बच्चों को घर मिल सकेंगे।” हालांकि वो प्रशासनिक निगरानी को बच्चों के हित में मानती हैं। हालांकि इलाहाबाद में उच्च न्यायालय के अधिवक्ता वाईपी सिंह का कहना है कि नियम भी जरूरी है विशेषकर लड़कियों के अडॉप्शन में। नियमों की निगरानी की वजह से वे गलत हाथ में जाने से बच जाती हैं।

लेकिन विभाग के सामने बड़ी चुनौती, इन अनाथालयों में बढ़ती बच्चों की संख्या को कम करना है, जो नियमों में ढील और सामाजिक जागरुकता के बिना संभव नहीं। भारत में 341 जिला बाल सरंक्षण इकाइयाँ, लाइसेंस प्राप्त अडॉप्शन एजेंसिया हैं। मेनका गांधी के मंत्रालय को लोगों ने सुझाव दिया है कि इस प्रक्रिया से अफसरशाही के दखल को कम किया जाए।

उत्तर प्रदेश में 1000 लड़कों पर 835 लड़कियां

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बच्चों के लिंगानुपात में तेजी से गिरावट आ रही है। यहां 0 से 6 साल की उम्र के प्रत्येक 1000 लड़के के अनुपात में लड़कियों की संख्या घटकर 902 रह गई है (2011 की जनगणना के मुताबिक), जबकि 2001 में 916 थी, 1991 में 927 और 1981 में 935 थी।

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इसी दौरान पूरे देश का लिंगानुपात 0 से 6 साल की उम्र के प्रत्येक 1000 लड़के के अनुपात में लड़कियों की संख्या 914 रही है। (2011 की जनगणना के मुताबिक). नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में 2015 में लिंगानुपात गिरकर 883 रह गया है, जोकि स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली की डाटा के आधार पर कैग रिपोर्ट में कही गई है। आदर्श लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 943 से 954 लड़कियों के बीच होनी चाहिए। इससे पता चलता है कि कन्या भ्रूणहत्या बेरोकटोक जारी है।

लोगों की मानसिकता में भी बदलाव की जरूरत

मुख्य चिकित्सा अधिकारी लखनऊ जीएस बाजपेई बताते हैं, “कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कानून भी बनाया गया, जिसके तहत हम इसे रोकने का प्रयास कर रहे हैं, लगातार हम लोग जांच भी करते हैं। बहुत से अस्पतालों में छापेमारी की और लाइसेंस भी निरस्त किए गए हैं, लेकिन लोगों की मानसिकता में बदलाव नहीं आ रहा है। हम अपने हर कार्यक्रम में आशा और एएनएम को भी जानकारी देते हैं।

किसी पर भी नहीं की गई कार्रवाई

यूपी के 75 जिलों में से 20 जिलों में निदान केंद्रों का निरीक्षण किया गया कि क्या अनिवार्य नियमों का पालन किया जा रहा है और इसकी निगरानी की जा रही है या नहीं। इसमें पाया गया कि 68 फीसदी मामलों में महिलाओं के पास अल्ट्रासाउंड जांच के जरूरी डॉक्टर का रेफरल स्लिप तक नहीं था। इस लापरवाही के बावजूद ऑडिट में पाया गया कि सर्वेक्षण वाले जिलों में 1,652 पंजीकृत निदान केंद्रों में 936 दोषी केंद्रों की लापरवाही को लेकर जिलाधिकारी द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया, लेकिन इनमें से किसी पर न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही किसी प्रकार का जुर्माना लगाया गया।

पांच साल जेल की सजा का प्रावधान

भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संघीय कानून बनाया है इस अधिनियम के तहत पूर्व लिंग निर्धारण पर रोक लगा दी गई है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक ‘पीएनडीटी’ एक्ट 1996 के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पांबदी है। अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले के खिलाफ डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल की सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है।

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एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा बताती है, कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए बनाया गया कानून बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें सुधार की बहुत जरूरत है। इसके लिए एक यह भी कहा गया है कि सभी अस्पतालों में छापेमारी की जाएगी। एक ही डॉक्टर ने चार से पांच जगहों पर अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी की मशीनें लगा रखी हैं, जिनके माध्यम से लिंग परीक्षण आसानी से करा लेते हैं। नियम को बस दिवारों पर लिख दिया गया है, लागू बहुत कम जगहों पर है।

कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आधा धन भी इस्तेमाल नहीं

उत्तर प्रदेश सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए आवंटित धन में से आधे का इस्तेमाल भी नहीं किया है। यह खुलासा कैग की रिपोर्ट में किया गया है। साल 2010 से 2015 के बीच यूपी जो सबसे कम लिंगानुपात वाले 10 राज्यों में से एक है, रिपोर्ट में दावा किया कि उसे लिंगचयनात्मक गर्भपात रोकने के लिए 20.26 करोड़ रुपये की जरूरत है। इसके बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत राज्य को 35 फीसदी (7.09 करोड़ रुपये) की राशि जारी की, लेकिन इस धन में से राज्य पांच सालों में केवल 3.86 करोड़ रुपये रकम ही खर्च कर पाई, जोकि उसके अपने अनुमान का महज 20 फीसदी है।

50,000 अनाथ बच्चों में सिर्फ 1600 को मिले अभिभावक

इस तस्वीर की कड़वी हकीकत है। करीब आठ महीने पहले मेनका गांधी की अध्यक्षता वाले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने गोद लेने के नए नियम अपनाए। नए नियमों के तहत देशभर में गोद ले चुके अभिभावक, उनके बच्चों और गोद लेने के इच्छुक अभिभावकों और अनाथालयों में रह रहे बच्चों का एक डाटा बेस तैयार किया गया।

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सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी इसका मैनेजमेंट करती है। इसके आंकड़े हैरान रकने वाले हैं। करीब 50,000 अनाथ बच्चों में इस देश में से सिर्फ 1,600 बच्चों को ही उनके कानूनी अभिभावक मिल पाए हैं। जबकि 50,000 से आधे बच्चों के लिए करीब 7,500 अभिवावक अभी कतार में हैं। नए नियमों ने काफी कुछ आसान किया है और बिना अडाप्शन एजेंसियों की भी अभिभावक बच्चों को गोद ले सकेंगे लेकिन कुछ नियम अभी भी काफी सख्त हैं।

बच्चों की तस्करी से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली मुंबई के वकील फ्लाविया एग्नेस (इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट अपर्णा कालरा) से कहते हैं, “कई गोद देने वाली एजेंसियों ने बच्चों को बेचने का जैसे एक धंधा बना लिया है। ये अक्सर ज्यादा पैसे देने वाले पैरंट्स (अक्सर जो अभिभावक विदेश में रहते हैं) को ही बच्चे गोद देते हैं।”

सहयोग- ऋषी मिश्रा/ दीपाशुं मिश्रा (स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क)

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