कम्युनिटी जर्नलिस्ट
रायबरेली। गाँव में ऐसी लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही जो दसवीं या बारहवीं पास करके घर बैठी हैं। अब ये लड़कियां अपनी आधी अधूरी पढ़ाई के बाद घर बैठकर सिर्फ गाँव तक ही सिमट कर रह गयी हैं। इन्हें इंतजार है किसी सरकारी कार्यक्रम का जिसमें कोई प्रशिक्षण लेकर ये कोई हुनर सीख सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।
रायबरेली के हरचन्दपुर ब्लाक में डिघौरा, सोममऊ, अवदान सिंह का पुरवा ब्लाक के आखरी छोर पर बसे गाँव हैं। पास में सिर्फ एक इण्टर कालेज है। जहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद लड़कियां घर बैठने पर मजबूर हो जाती हैं।
ब्लाक में ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बहुत से रोजगार प्रशिक्षण दिये जाते हैं। प्रशिक्षण के उपरान्त बैंक से वित्तीय मदद दिलाकर रोजगार स्थापित करने में सहायता दी जाती है। इसके लिये ब्लाक में एडीओ पंचायत से मिलकर बात की जा सकती है।
वीके जायसवाल, निदेशक, आल बैंक ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण केन्द्र
डिघौरा गांव की काजल (19 वर्ष) बताती हैं, “इण्टर के बाद घर वालों ने बछरावाँ या रायबरेली भेजने से मना कर दिया। यहां पास में कोई काॅलेज भी नहीं है और न कोई ट्रेनिंग सेंटर है जहां से कोई काम सीखा जा सके।” डिघौरा की ही राधा (18वर्ष) कहती हैं, “हमारे गाँव में तो कभी कोई सरकारी योजना नहीं आयी, जिससे हमारी जैसी लड़कियों का कोई भविष्य बन सके।”
सोमामऊ निवासी चांदनी (21वर्ष) बताती हैं,“ ग्रेजुएशन करने के बाद खाली बैठी हूं। कोई कोर्स करना हो तो रायबरेली ही जाना पड़ेगा, जिसके लिये घर वालें तैयार नहीं। सुनते हैं ब्लाक में ऐसी बहुत सी योजनाएं होती हैं जिनमें गाँव की लड़कियों को कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं। पर हमारे यहां ऐसी कोई योजना नहीं आयी।”