स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
कानपुर। कहने को तो यहां मनरेगा और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत खोदे गए तमाम तालाब हैं, लेकिन इनमें पानी नहीं होने से ये स्थानीय ग्रामीणों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। तालाबों के सूखने से पशु-पक्षियों की भी प्यास नहीं बुझ पा रही। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक बार तालाब खुद जाने के बाद जिम्मेदार अफसर-कर्मचारी झांकने नहीं आते कि उसमें पानी है या नहीं, जबकि तालाब में पानी न होने की जवाबदेही भी उन्हीं की है।
महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) सहित सिंचाई व राजस्व विभाग की कई योजनाओं के तहत तालाबों की खुदाई और उनके रख-रखाव पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन इनमें पानी न होने से क्षेत्र के ग्रामीणों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। तालाबों में पानी न होने से इस भीषण गर्मी में मवेशियों और पशु-पक्षियों की भी प्यास नहीं बुझ पा रही, जबकि जिले के अफसर इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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सूखे तालाबों को भरवाने के लिए प्रत्येक ब्लाक स्तर पर कमेटी का गठन किया गया है। मनरेगा के द्वारा नालियों, जलाशयों, झीलों की साफ सफाई करवाई जा रही है।
विनीत कुमार,उप-जिलाधिकारी, बिल्हौर
बिल्हौर ब्लॉक के सुजावलपुर गाँव निवासी सावित्री (40वर्ष) बताती हैं, “गाँव के सभी तालाब सूखे पड़े हैं। चारागाह भी भीषण गर्मी के कारण पूरी तरह खत्म हो गए हैं। ऐसे में मवेशियों को पानी और हरा चारा खिलाने में मुश्किल आ रही है।”
बीरामउ गाँव निवासी किसान दुर्गा अवस्थी (55 वर्ष) ने बताया, “गाँव का बड़ा तालाब सूखने से इस बार खरबूजा, तोरई, खीरा और लौकी आदि की जायद फसल नहीं बोई जा सकी है। सिंचाई विभाग ने गाँव का कोई तालाब नहीं भरवाया है।”
वहीं, उत्तरीपुरा गाँव निवासी दूधिया राजीव पाल ने बताया, “ताल-तलैया सूखे हैं। गाय-भैंस को हैंडपंप से ही पानी पिलाया जा रहा है। खलिहान, चारागाह में सिंचाई की व्यवस्था न होने से पशुओं को पर्याप्त हरा चारा नहीं मिल पा रहा है।”
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इन गाँवों के तालाब सूखे
बरौली, बिल्हौर देहात, कुदौरा, सुभानपुर, शाहमपुरकोट, दरियापुर, बेदीपुर, राढ़ा, मतलबपुर जुलाहा, गदनपुर आहार, पूरा, बीरामऊ, नदीहा, रामपुर नरुआ, अरौल, बारंडा, हिलालपुर, चोरसा, लोधनपुरवा, औरोंताहरपुर, संती, बकोठी, नसिरापुर, ददिखा, भिडुरी, अबाबकरपुर, सिहुरा, खजुरी, सुजावलपुर, भड़िया, लालपुर, राजेपुर, आंकिन, बहरमापुर, आराजीईषेपुर, हलपुरा, सहित बड़ी संख्या में गांवों के तालाब सूखे पड़े हैं।
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