लखनऊ। एक समय था जब घर-घर में गौरैया दिखती थीं, लेकिन समय के साथ पक्के मकानों और कम होते जंगलों के कारण गौरैया के कुनबे भी कम हो गए। ऐसे में आंखों से ओझल हो रही गौरेया को बचाने के लिए ‘दाना पानी’ नाम की पहल शुरुआत की गयी है।
गैर सरकारी संस्था दाना पानी पिछले एक वर्ष से गौरेया के संरक्षण के लिए लखनऊ और दिल्ली में काम कर रही है। संस्था के संस्थापक गौरव गाथा बताते हैं, ‘खेतों में चिड़ियों को भगाने के लिए ‘काग भगोड़े’ यानि ‘स्केयर क्रो’ का प्रयोग किया जाता है। इस ‘स्केयर क्रो’ को हमने ‘केयर क्रो’ के रुप में बदल दिया है। इस ‘केयर क्रो’ के ऊपर हम घोसला बनाते है जहां चिड़िया अपना घर बसाती है। दिल्ली के कई स्कूलों ओर सोसाइटी में ‘केयर क्रो’ को लगवाया है ताकि विलुप्त हो रही चिड़िया फिर से वापस आ सके।”
बड़ी इमारतों और मोबाइल टॉवरों ने गौरैया के लिए बढ़ाया खतरा
दुनिया भर में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। विश्व गौरैया दिवस’ पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था।
दाना-पानी पहल के बारे में गौरव बताते हैं, “गौरेया की घटती संख्या का मुख्य कारण है, भोजन-पानी की कमी और पेड़ों का कटान। संस्था द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य यह है कि लोग इस पहल अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाए ताकि आने वाले समय में उनको स्वस्थ पर्यावरण मिले।”
ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में इनकी संख्या जहां तेज़ी से गिर रही है। मगर नीदरलैंड में तो इन्हें ‘रेड लिस्ट’ के वर्ग में रखा गया है। गौरेया को बचाने की कवायद में दिल्ली सरकार ने गौरेया को राजपक्षी भी घोषित कर दिया है।
लखनऊ के रहने वाले पक्षी प्रेमी हेमंत सिंह बताते हैं, “बढ़ती मॉडर्न टेक्नोलॉजी ने चिड़ियों का सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास का प्राणी बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। लोगों को ऐसे पेड़ों को लगा चाहिए जहां उनको भोजन भी मिल सके।”