इनके पास हैं हजारों खबरें जो कभी मीडिया तक नहीं पहुंच पाईं

भारत के गाँव किस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं, वो कौन लोग हैं जो वर्षों से गुमनाम होकर बदलाव की कहानियाँ गढ़ रहे हैं। इन अनकही कहानियों को मीडिया प्लेटफार्म पर लाने के लिए गाँव कनेक्शन के स्वयं प्रोजेक्ट के तहत पांच राज्यों में सामुदायिक पत्रकार तैयार किये जा रहे हैं।
#स्वयं प्रोजेक्ट

रांची। सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों के आसपास सैकड़ों खबरें होती हैं पर वो मीडिया के गलियारों तक नहीं पहुंच पाती हैं। भारत के गाँव को मीडिया में पर्याप्त जगह मिले इसके लिए भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया हाउस गाँव कनेक्शन ने सामुदायिक पत्रकार बनाने की मुहिम शुरू की है।

गाँव कनेक्शन के स्वयं प्रोजेक्ट के तहत झारखंड के रांची शहर में गाँव कनेक्शन और आली संस्था के साझा प्रयास से 14 जिले के 25 महिला और पुरुषों को खबर लिखने की बारीकियां बताई गयी। ये वो लोग हैं जो कुछ अलग करने की इच्छा रखते हैं। ये पिछले कई वर्षों से अपने जिले में गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न मुद्दों पर काम कर रहे हैं। इन्हें अपने आसपास के मुद्दों की बखूबी समझ है। इस दौरान इन लोगों ने अपने आसपास की कई खबरें लिखकर दिखाई जिसमें शराब, पलायन, बाल-विवाह, महिला अधिकार और शौचालय न होने जैसी तमाम समस्याएं शामिल थीं।

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गुमला जिले से गुमला प्रखंड के कुम्हरिया पंचायत से आयी अष्टमी देवी ने बताया, “मेरे गाँव में 60 घर हैं जिसमें केवल 10 घरों में ही शौचालय बने हैं। सुना है झारखंड के हर गाँव में शौचालय बन गये हैं लेकिन हमारे गाँव में अभी 10 ही बने हैं।” अष्टमी की तरह गढ़वा जिले की दीपा कुमारी ने भी गाँव में शौचालय न होने को मुख्य समस्या बताया। जबकि झारखंड ने अपने अपने 18वें स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ये घोषणा की थी कि अपने तय टार्गेट के अनुसार झारखंड एक साल पहले ही खुले से शौच मुक्त हो चुका है।

सरकार की योजनाओं की ग्रामीण धरातल पर क्या स्थिति है, वो कौन लोग हैं जो वर्षों से गुमनाम होकर बदलाव की की कहानियाँ गढ़ रहे हैं इन्हें मीडिया प्लेटफार्म पर लाने के लिए गाँव कनेक्शन के स्वयं प्रोजेक्ट के तहत कुछ अलग करने का ज़ज्बा रखने वाले साथियों को गाँव कनेक्शन की टीम पत्रकारिता की बारीकियां सिखा रही है। जिसमें खबर लिखने से लेकर मोबाइल फोन से वीडियो बनाने तक की पूरी प्रक्रिया शामिल है।

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हर राज्य में गाँव कनेक्शन के सामुदायिक पत्रकार हों इसके लिए विस्तार किया जा रहा है। इस विस्तार के पहले चरण में हिन्दी भाषी राज्य जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड शामिल हैं। इन राज्यों में सामुदायिक पत्रकारों की मदद से ग्रामीण मुद्दों, वहां की संस्कृति, विरासत, खान-पान, खेती-किसानी, मानवीय मुद्दे खबर और वीडियो के माध्यम से कवर किए जाने की कोशिश जारी है। इन सभी राज्यों में सामुदायिक पत्रकारों के प्रशिक्षण के बाद इनके द्वारा वो तमाम खबरें और वीडियो स्टोरी आने लगी है जो अबतक हमसे कोसों दूर थी।

इस ट्रेनिंग में शामिल हुए गढ़वा जिले के जहुर अंसारी ने कहा, “इस ट्रेनिंग के बाद पहली बार एक उम्मीद जगी है कि शायद अब हमारे यहाँ की खबरें भी प्रकाशित होंगी। हमारे आसपास बहुत समस्याएं हैं पर वो कभी अखवार में नहीं छपती। हम पत्रकारिता की पढ़ाई किये बगैर भी पत्रकार बन सकते हैं ये हमने पहली बार जाना।” जहुर की तरह ट्रेनिंग में शामिल कई लोगों में उम्मीद की एक किरण जगी कि अब वो भी पत्रकार बनकर अपने आसपस की समस्याएं लिख सकते हैं।

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गाँव कनेक्शन की सामुदायिक पत्रकार बनाने के पीछे यही सोच हैं कि जो मुद्दे और सकारात्मक कहानियाँ मीडिया की मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाती उन्हें सामुदायिक पत्रकारों की मदद से उजागर किया जाये। गांव कनेक्शन एक ग्रामीण मीडिया हाउस है इसलिए ग्रामीण मुद्दों और मानवीय स्टोरी (ह्यूमन एंगल) के आसपास रहना हमारी पहली प्राथमिकता है। गांव कनेक्शन की कोशिश है गांव और शहर के लोगों के बीच का कनेक्शन (रिश्ता) और मजबूत किया जाए।

इन सामुदायिक पत्रकारों की मदद से जो गांव में रहते हैं उन्हें शहर की जानकारी हो और जो गांव छोड़ चुके हैं वो गांव की जड़ों से हमेशा जुड़े रहें। गाँव कनेक्शन की कोशिश है पेशेवर पत्रकारों से हटकर ऐसे परंपरागत पत्रकारों को प्रशिक्षित किया जाए जो ग्रामीण मुद्दों से सरोकार रखते हों। इससे ग्रामीण स्तर की पत्रकारिता को नया आयाम मिलेगा। इस पहल से अब गांव के मुद्दे बड़ी आवाज़ बनेंगे। छोटे शहरों, गांव की बातें, रहन-सहन, खान पान लोगों को नए अनुभव कराएगा।

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आली संस्था की रेशमा कुमारी ने कहा, “ये सभी लोग विभिन्न संस्थाओं में पिछले कई वर्षों से काम कर रहे हैं। ये हमारे केस वर्कर हैं जो अपने आसपास महिलाओं से जुड़े केस हमतक पहुंचाते हैं और स्थानीय स्तर पर कानूनी मदद से सुलझाते भी है। ये ट्रेनिंग इनके लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि सुदूर गाँव के मुद्दे आज भी मीडिया की पहुंच से कोसों दूर हैं।”

हमारे लिए वीडियो स्टोरी प्राथमिक हैं जो हमारे यूट्यूब चैनल समेत और सोशल मीडिया पर जायेगी। इसके साथ ही इससे संबंधित स्टोरी वेबसाइट www.gaonconnection.com पर पोस्ट की जाएंगी और साप्ताहिक अख़बार गांव कनेक्शन में भी छपेगी। इन वीडियो स्टोरी पर इन सामुदायिक पत्रकारों को मानदेय भी मिलेगा जिससे इनका उत्साह कभी कम न हो और इनकी आजीविका भी सशक्त हो।

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