कानपुर देहात/लखनऊ। महिलाओं की ज़िंदगी से जुड़ा अहम मुद्दा, जिस पर खुल कर बात ही नहीं होती। बड़े शहरोंं में हालात जरुर थोड़े बदले हैं लेकिन गांव और कस्बों में अभी ये चुप्पी का मुद्दा है, शर्म और संकोच से जोड़ कर देखा जाता है। गाँव की महिलाएं ने घर में बात कर पाती हैं, न ही अपनी बेटियों को इस बारे विस्तार से बता पाती हैं, जिस कारण गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। आप को जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ साफ सफाई के अभाव में ही एक चौथाई महिलाओं को यूरिन और फंगल इंफेक्शन हो जाता है।
गाँव कनेक्शन फाउंडेशन ‘विश्व माहवारी दिवस’ के अवसर पर रविवार को उत्तर प्रदेश के 25 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी को लेकर जनजागरुकता के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। जहां महिलाओं, युवतियों और छात्राओं से माहवारी पर खुल कर बात होगी, बल्कि उन्हें सेहतमंद रहने के तरीके भी बताए जाएँगे।
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उत्तर प्रदेश में अपनी तरीके के ये अनूठा प्रोग्राम शुरु करने वाली गांव कनेक्शन फाउंडेशऩ की ट्रस्टी यामिनी त्रिपाठी बताती हैं, माहवारी महिलाओं की जिंदगी से सीधा जुड़ा मुद्दा है। लेकिन बात न के बराबर होती। मां-बेटी में ही इस बार बात नहीं होती, हमारी कोशिश है कि उस अँधियारे को खत्म किया जाए। ये कोई संकोच नहीं, बल्कि महिलाओं की सेहत और स्वच्छता का विषय है, जिस पर गांव-गांव घर-घर बात होनी चाहिए।”
मम्मी ने इस पर कभी बात नहीं की। ‘उन दिनों’ में मुझे रजाई या गद्दे के गंदे कपड़े उपयोग करने के लिए दे दिए जाते हैं। नैपकिन तो सिर्फ बाहर जाने पर ही खरीद पाती हूं।
प्रतिक्षा, (20 वर्ष) कानपुर देहात
माहवारी पर चर्चा और जागरुकता क्यों जरुरी है, कानपुर देहात की प्रतिक्षा की तरह लाखों युवतियों की बातों से समझा जा सकता है। कानपुर देहात जिले के श्रवण खेड़ा ब्लॉक के बिल्टी गाँव में रहने वाली प्रतिज्ञा (20 वर्ष) कहती हैं, “मुझसे आज तक मम्मी ने इस पर कभी बात नहीं की। ‘उन दिनों’ में मुझे रजाई या गद्दे के गंदे कपड़े उपयोग करने के लिए दे दिए जाते हैं। जब कभी शादी-ब्याह में या बाहर जाना होता है, और पैसे होते हैं तो मैं नैपकिन खरीद पाती हूं।”
प्रतिज्ञा की ही तरह लड़िकयों को जब माहवारी शुरू होती है तो उन्हें इस बारे में बताया नहीं जाता, बल्कि तरह-तरह की बंदिशें लगा दी जाती हैं। जो शादी के बाद आगे ससुराल में भी जारी रहता है।
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“जम हमारी शादी हुई और हम ससुराल आए तो हमसे कहा गया कि ‘उन दिनों’ में जेठ और ससुर के कपड़े नहीं छूने हैं। एक बार कपड़े छू गए तो लड़ाई हो गई।” कानुपर देहात जिले के श्रवणखेड़ा ब्लॉक के सिकन्दरपुर गाँव में रहने वाली रामबेटी (38 वर्ष) बताती हैं, “उन दिनों में तो हम कच्चा खाना भी नहीं बना सकते। रसोई से दूर ही रहने दिया जाता है।”
माहवारी महिलाओं की जिंदगी से सीधा जुड़ा मुद्दा है। लेकिन बात न के बराबर होती। ये कोई संकोच नहीं, बल्कि महिलाओं की सेहत और स्वच्छता का विषय है, जिस पर गांव-गांव घर-घर बात होनी चाहिए।
यामिनी त्रिपाठी, ट्रस्टी, गांव कनेक्शन फाउंडेशन
विश्व माहवारी दिवस पर आयोजित होने वाले इन कार्यक्रमों में महिलाओं के बीच सैनिटरी नैपकिन्स का वितरण करने के साथ-साथ डॉक्टर एवं विशेषज्ञ स्वच्छता अपनाकर किन-किन बीमारियों से बचा जा सकता है, इस बारे में सलाह देंगे। यह कार्यक्रम सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, और गाँवों में होंगे।
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महिलाओं की अस्मिता से जुड़े इस मसले के बारे में लखनऊ के मुख्य चिकित्साधिकारी जीएस बाजपेई कहते हैं, “गाँवों में इसे महिलाओं के सम्मान से न जोड़कर शर्म और लाज का विषय बना देते हैं। गाँव कनेक्शन फाउंडेशन का यह प्रोग्राम काफी अच्छा है। ऐसे प्रोग्राम आगे भी होते रहने चाहिए। हम लोग सैनिटरी नैपकिन भी बांटते हैं। लेकिन लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है।”
वात्सल्य संस्था की डॉक्टर नीलम सिंह कहती हैं, “माहवारी के दौरान साफ-सफाई न रखने से एक चौथाई महिलाओं को यूरिन एवं फंगल इंफेक्शन हो जाता है। इसलिए साफ-सफाई का ध्यान देना ज्यादा जरूरी है।
इनपुट- भारती सचान/दिपांशु मिश्र