उन्नाव : लाखों खर्च कर बना शौचालय खंडहर में तब्दील 

Swayam Project

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

उन्नाव। देश के प्रधानमंत्री से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री सभी का जोर देश व प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने पर है। इसके लिए विभिन्न योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। शहर हो या गाँव लोगों को शौचालय बनाने के लिए अनुदान भी दिया जा रहा है, लेकिन जो शौचालय बने हैं उनकी क्या स्थिति है इस पर किसी का ध्यान नहीं है।

कुछ ही ऐसी उपेक्षा और प्रशासनिक अनदेखी की कहानी बयां करता नजर आ रहा है, मगरवारा स्थित गोकुल बाबा मंदिर मेला परिसर में लाखों रुपए खर्च कर बनवाया गया सामुदायिक शौचालय। जो उचित रखरखाव के अभाव में खण्डहर में तब्दील हो चुका है। वर्ष 2008-09 में बना यह शौचालय स्वच्छ भारत मिशन का मखौल उड़ाता नजर आ रहा है। गोकुल बाबा मंदिर में आने वाले श्रृद्धालुओं की सहूलियत को ध्यान में रखकर तत्कालीन ग्राम प्रधान राजकुमार रावत ने पंचायतीराज विभाग की योजना के तहत मेला परिसर में सामुदायिक शौचालय बनवाने का प्रस्ताव पास कराया था।

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तकरीबन साढ़े तीन लाख रुपए की लागत से शौचालय बनकर तैयार हुआ। शुरुआती दिनों में तो व्यवस्था ठीक ठाक चलती रही, लेकिन समय बीतने के साथ ही इस शौचालय को प्रशासनिक उपेक्षा और अनदेखी का ग्रहण लग गया और इस शौचालय में तालाबंदी हो गई।

समय बीता तो नशेबाजों और अराजकतत्वों ने इसे अपना अड्डा बना लिया। यहां लगी पानी की टंकी, पाइप की फिंटिंग आदि भी चोरी हो गई, जिसकी शिकायत भी शायद किसी ने पुलिस में की। लेकिन पैरवी के अभाव में यह शिकायत भी पुलिस की फाइलों में दब कर रह गई। वर्तमान में शौचालय की यह इमारत खण्डहर में तब्दील होती नजर आ रही है।

किसी से सम्पर्क नहीं हो पाया तो किसी के पास नहीं मिली जानकारी

इस सम्बन्ध में जानकारी के लिए मुख्य विकास अधिकारी संजीव सिंह के सरकारी नम्बर पर सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो सम्पर्क नहीं हो सका। इसके बाद जिला पंचायत राज अधिकारी से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने बताया, “इसकी जानकारी सिकन्दरपुर कर्ण ब्लाक के एडीओ पंचायत ही दे सकेंगे। इस ब्लॉक के एडीओ पंचायत ने भी हाल ही में ज्वाइन किया है।”

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आवश्यकता के बावजूद उपेक्षा, खुले में शौच की विवशता

गोकुल बाबा मंदिर में हर रोज सैकड़ों की तादाद में श्रृद्धालु आते हैं, इसके अलावा यहां पर विद्युत वितरण खण्ड द्वितीय का कार्यालय भी है। यहां हर रोज सैंकड़ों लोग जनपद के दूरदराज क्षेत्रों से अपने काम के सिलसिले में आते रहते हैं। इसके अलावा मंदिर के इर्दगिर्द तकरीबन एक दर्जन दुकानें भी हैं। साथ ही मेले के दौरान तकरीबन एक महीने तक दुकानदारों के साथ हजारों लोगों की भीड़ इस प्रांगण में बनी रहती है। ऐसे में लोगों को शौचालय की आवश्यता न पड़ती हो यह सम्भव नहीं है। खण्डहर में तब्दील हो चुके इस सामुदायिक शौचालय के चलते लोगों को न चाहते हुए भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है।

तत्कालीन प्रधान डॉ. राजकुमार रावत ने बताया वर्ष 2008—09 में मंदिर और मेले में आने वाले श्रृद्धालुओं और यहां रहने वाले दुकानदारों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए इस शौचालय का निर्माण कराया गया था। मेरे बाद चुने गए प्रधानों ने इस उपयोगी इमारत की अनदेखी की, जिसका नतीजा सामने है। अभी अगर ग्राम पंचायत चाहे तो थोड़ा बहुत धन खर्च कर इसे पुन: शुरू करा सकती है।

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