माहवारी : पुरुषों के लिए भी समझना जरुरी है महिलाएं किस दर्द से गुजरती हैं…

'माहवारी' ये सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में आज भी एक रहस्यमयी शब्द है। महीने के उन दिनों के बारे में लोग न तो खुलकर बात कर पाते हैं और न ही इसके बारे में सही जगह से जानकारी जुटाने की कोशिश करते हैं।
माहवारी

डिगनिटी पीरियड के अध्ययन के मुताबिक, नैरोबी के मुकुरू में 10 से 19 साल की कुछ लड़कियां अपने से कई साल बड़े शख्स के साथ पैसे लेकर सेक्स करती हैं ताकि वो सैनिटरी पैड‍ ख़रीद सकें।

‘माहवारी’ ये सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में आज भी एक रहस्यमयी शब्द है। महीने के उन दिनों के बारे में लोग न तो खुलकर बात कर पाते हैं और न ही इसके बारे में सही जगह से जानकारी जुटाने की कोशिश करते हैं। शायद यही वजह है कि महिलाओं की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या सोशल टैबू बन कर रह गई है।गाँव कनेक्शन माहवारी को लेकर एक मुहिम चला रहा है। ये मुहिम है लोगों के मन में माहवारी से जुड़े भ्रमों को दूर करने की, इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में बताने की, माहवारी के दौरान स्वच्छता की ज़रूरत समझाने की और लोगों के मन में बसी झिझक को दूर कर इसके बारे में खुलकर चर्चा करने की।

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भारत सहित कई ऐसे देश हैं जहां की महिलाएं माहवारी से जुड़ी तमाम तरह की परेशानियों का सामना करती हैं। उन्हें नहीं पता कि इस दौरान शरीर को कितनी सफाई और स्वच्छता की ज़रूरत होती है। कई ऐसे देश हैं जहां आज भी महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन उप्लब्ध नहीं हैं। कई देशों में माहवारी के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है। जानिए, दुनियाभर में ‘उन दिनों में’ महिलाओं को किस तरह की समस्या से दो-चार होना होता है…

वेबसाइट डिगनिटी पीरियड ने दुनिया के कई हिस्सों में एक सर्वे किया और पाया कि दक्षिण पूर्वी एशिया और अफ्रीका के साथ – साथ अमेरिका के भी कई हिस्सों में महिलाओं को माहवारी के दौरान सैनिटरी उत्पाद उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। यहां इन उत्पादों की कीमत इतनी ज़्यादा है कि गरीब महिलाएं इन्हें खरीद ही नहीं पातीं। वेबसाइट के मुताबिक इन महिलाओं के लिए खाने का सामान जुटाना सैनिटरी उत्पाद ख़रीदने से ज़्यादा ज़रूरी है। यहां तक कि अमेरिका की फूड स्टाम्प योजना भी माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए इस्तेमाल होने वाले उत्पादों को ‘ज़रूरी उत्पादों’ में नहीं शामिल करती।

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के शहरी क्षेत्रों में 43 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, इनमें से कुछ महिलाएं इन कपड़ों को धोकर दोबारा भी इस्तेमाल करती हैं। कुछ महिलाएं तो ऐसी हैं तो इन कपड़ों को धोने के लिए साबुन का भी इस्तेमाल नहीं करतीं।

डिगनिटी पीरियड के अध्ययन के मुताबिक, नैरोबी के मुकुरू में 10 से 19 साल की कुछ लड़कियां अपने से कई साल बड़े शख्स के साथ पैसे लेकर सेक्स करती हैं ताकि वो सैनिटरी पैड‍ ख़रीद सकें। एक और अध्ययन के अनुसार, बांग्लादेश में कपड़े बनाने का काम करने वाली 73 प्रतिशत महिलाएं हर महीने छह दिन की छुट्टी लेती हैं और इनके लिए उनकी पगार से रुपये भी काट लिए जाते हैं। ये महिलाएं हर महीने छह दिन की छुट्टी इसलिए लेती हैं क्योंकि माहवारी के दौरान गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने से इन्हें वजाइनल इंफेक्शन हो जाता है।

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कई देशों में कार्यस्थलों पर, सार्वजनिक स्थानों पर, स्कूलों में लड़कियों के लिए टॉयलेट या ऐसी कोई जगह नहीं होती जहां जाकर महिलाएं अपना सैनिटरी पैड बदल सकें। कुछ लड़कियां इस दौरान इन्हीं कारणों से स्कूल नहीं जातीं तो कुछ महिलाएं ऑफिस से छुट्टी ले लेती हैं, कई बार इससे उन्हें आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बुर्किना फासो की 83 प्रतिशत लड़कियां और नाइजर की 77 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जातीं क्योंकि उनके पास स्कूलों में सैनिटरी नैपकिन बदलने की सुविधा नहीं होती।

गांव कनेक्शऩ फाउंडेशन ने पिछले दिनों महिलाओं को पैड वितरित कर जागरूक भी किया था।

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कई देशों में पुरुषों को ही समाज में उच्च दर्जा मिला हुआ है। यहां निर्णय लेने का अधिकार पुरुषों को ही होता है लेकिन इस बात की भी बहुत ज़रूरत है कि ये पुरुष अपने साथ काम करने वाली महिलाओं, दोस्तों, परिवार की स्त्रियों को माहवारी के दौरान किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ये समझें। कई अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि माहवारी के बारे में ज़्यादातर पुरुषों को जानकारी ही नहीं है और जिन्हें है उन्हें भी आधी – अधूरी ही है। यह सिर्फ विकासशील देशों की समस्या ही नहीं है दुनिया के कई विकसित देशों में भी इस तरह की समस्या है। जब पुरुष माहवारी के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्याओं के बारे में समझेंगे तभी वे इस दौरान उनकी मदद कर पाएंगे।

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