नई दिल्ली (भाषा)। मनोरोगियों को उपचार का अधिकार देने वाले विधेयक को हाल ही में संसद ने मंजूरी प्रदान की है और विशेषज्ञों के मुताबिक देश में सभी जरुरतमंदों को इलाज मिल सके, इसके लिए निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा।
जानेमाने मनोचिकित्सक डॉ. समीर पारिख के अनुसार अभी देश में मनोचिकित्सा क्षेत्र के अधिकतर विशेषज्ञ निजी क्षेत्र में हैं इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि सभी जरुरतमंदों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी के विकल्प तलाशे जाएं। फोर्टिस हेल्थकेयर में मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंसेस के निदेशक डॉ पारिख ने कहा कि सरकारी क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र को भी व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाने होंगे जो अस्पतालों में उपलब्ध हों। देश में अवसाद और तनाव से पीड़ित लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए भविष्य में आगे बढ़ने की दिशा में सार्वजनिक निजी साझेदारी एक बेहतर मार्ग होगा।
संसद ने पिछले हफ्ते मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक, 2016 पर मुहर लगाई है जो मानसिक रग्णता के पीड़ितों को इलाज का अधिकार देने के साथ ही आत्महत्या के उनके प्रयासों को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है। विशेषज्ञ इसे मनोरोग चिकित्सा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हैं। वेंकटेश्वर अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ एस सुदर्शनन ने कहा कि निजी क्षेत्र इस दिशा में जागरकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र की सुविधाओं में काफी असमानता है। देशभर में रोगियों और उनके परिजनों के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग को बढ़ावा देना जरुरी है। निजी क्षेत्र के पास अधिक संसाधन और समय होने से वह इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इन सब चीजों पर तेजी से अमल में लाने और बहुस्तरीय तरीके से काम करने के लिए निजी-सरकारी साझेदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।”
आगामी सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस से पहले इस विधेयक का पारित होना महत्वपूर्ण माना जा रहा है जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस साल ‘डिप्रेशन: लेट्स टॉक’ (अवसाद पर करें बातचीत) को थीम रखा है।
इसी पृष्ठभूमि में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा था, ‘‘हमने विधेयक के साथ शुरुआत कर दी है लेकिन इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए जनता तक पहुंचना होगा और जमीनी स्तर पर काम करने वाले संस्थानों के साथ काम करना होगा।” डॉ़ पारिख के अनुसार विधेयक में मानसिक स्वास्थ्य को समाज और रोगी केंद्रित बनाने से यह बात साफ हो जाती है कि हमेशा रोगियों पर ध्यान होना चाहिए और विधेयक में इस तरह का प्रावधान स्वागत योग्य कदम है। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जो रोगियों का जल्द, सुगम और बेहतर उपचार सुनिश्चित करे।
डॉ. सुदर्शनन ने कहा कि यह विधेयक भारत में चिकित्सा क्षेत्र के कानूनों के सही दिशा में विकास को रेखांकित करता है। यह विधेयक समाज के विभिन्न वर्गों में मानसिक रग्णता को झेल रहे लोगों के प्रति समाज के रवैये के बजाय स्वयं रोगियों के अधिकारों पर पूरा ध्यान देता है। उन्होंने कहा कि उपचार में भेदभाव और समाज में अलग तरह से देखे जाने के कारण आज भी मनोरोगियों को सही उपचार नहीं मिल पाता। निजी क्षेत्र इस क्षेत्र में जागरकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि यह विधेयक मानसिक रोगों को लेकर तमाम नकारात्मक धारणाओं को तोड़ने में कारगर होगा जो आज 21वीं सदी में भी बनी हुई हैं। आत्महत्या के प्रयास को अपराध नहीं मानकर केवल मानसिक रग्णता की श्रेणी में रखा जाना इस बात का संकेत है कि इसमें मानवीय संवेदनाओं का पूरा ध्यान रखा गया है। हालांकि भारत में अवसाद और तनाव के ग्रस्त लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए डॉक्टर सुदर्शनन बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञों की कमी की ओर इशारा करते हैं और इस पर भी अधिक जोर देने की आवश्यकता बताते हैं।