लखनऊ। अगर आप और आपका बच्चा मोबाइल पर सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन गेम खेलने के आदी हो चुके हैं और चाहकर भी इसे छोड़ नहीं पा रहे हैं तो आप इंटरनेट एडिक्शन से पीड़ित हैं। इसी समस्या को दूर करने के लिए केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग द्वारा मानसिक बीमारियों के उपचार के लिए क्लीनिक फॉर प्रॉब्लमेटिक यूज ऑफ टेक्नोलॉजी की शुरुआत की गई है। यह क्लिनिक प्रत्येक सप्ताह के गुरुवार को चलेगी।
पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर देबाशीष बसु का कहना है, ” पिछले कुछ वर्षों में टेक्नोलॉजी ने हमारे रोजमर्रा के जीवन में अपनी जगह बना ली है। आजकल हम में से अधिकतर लोग स्मार्टफोन और लैपटॉप के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते, लेकिन क्या टेक्नोलॉजी का नशा वास्तव में इतना खतरनाक है।”
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक विकार के रूप में मान्यता दी है। सोशल मीडिया के उपयोग को तेज़ी से नशे की लत के रूप में मान्यता दी जा रही है। क्योंकि लोग लगातार ख़बरों के लिए अपने स्मार्टफोन की जाँच कर रहे हैं। या कार्यस्थल पर ऑनलाइन खरीदारी साइटों को ब्राउज़ कर रहे हैं।
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“इंटरनेट का उपयोग यदि लत के स्तर पर हो तो यह सामाजिक दायरे के घटने, अवसाद, अकेलेपन, आत्मसम्मान की कमी और जीवन में असंतुष्टि, खराब मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक कार्यों में गिरावट के साथ जुड़ा हुआ है। आमने-सामने वाली बातचीत की कमी, व्यायाम में कमी, देर रात तक टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से नींद की समस्याओं और तेजी से गतिहीन जीवन शैली को अपनाने के जरिये टेक्नोलॉजी की लत ने न केवल मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। ” डॉक्टर बसु ने आगे बताया।
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 तक, वैश्विक आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा यानि की लगभग 3.1 बिलियन लोग रोज़ाना सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। देश में 493 मिलियन इंटरनेट या ब्रॉडबैंड ग्राहक हैं। भारत में लगभग 28 प्रतिशत शहरी और 26 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या 9 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के प्रति वर्ष की वृद्धि के साथ सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग कर रही है। भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले 12 फीसदी लोग इंटरनेट की लत की समस्या से पीड़ित हैं।
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केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष प्रो. पीके दलाल का कहना है, ” इंटरनेट और गेमिंग की लत के हानिकारक प्रभाव बच्चों और किशोरों की आबादी में और भी बदतर है। यह दिमाग के विकास को संरचनात्मक स्तर पर प्रभावित करता है। इससे प्रभावित अधिकांश किशोर इसे नशे या लत की समस्या मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं जिससे इस समस्या में हस्तक्षेप करना और कठिन हो जाता है। कई एशियाई देशों ने इंटरनेट उपवास शिविर शुरू किए हैं जहां प्रभावित बच्चों को शारीरिक गतिविधियों पर समय बिताने के लिए कहा जाता है जिसके परिणाम सकारात्मक रहे हैं। “
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