लखनऊ। गठिया रोग खत्म नहीं किया जा सकता है पर नियमित दवा और डॉक्टर के बताए गए उपायों से इसके असर को कम किया जा सकता है। ऐसा कहना है किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के गठिया रोग विभाग के प्रमुख डॉ. सिद्धार्थ कुमार दास का।
गठिया रोग की जानकारी देते हुए डॉ दास बताते हैं, ”शरीर में जहां भी हड्डियों के जोड़ हैं, उन्हें चलाने के लिए कुछ खास मांसपेशियां और लुब्रीकेंट (चिकना रसायन) मदद करती हैं। गठिया होने पर यह मांसपेशिया कमजोर हो जाती हैं और लुब्रीकेंट का असर भी कम हो जाता है। जिससे जोड़ों में दर्द और सूजन पैदा होती है जो गठिया कहलाता है। गठिया प्रभावित जोड़ों को ठंड से बचाकर रखें नहीं तो परेशानी बढ़ जाएगी।”
गठिया के प्रकारों के बारे में जानकारी देते हुए डॉ दास ने बताते, ”करीब 350 तरह की होती है, लेकिन ज्यादातर आर्थो आथ्र्राइटिस, रयूमेटाइड आथ्र्राइटिस और फाईब्रोमैजि़या के मरीज देखने को मिलते है।”
यह बीमारी ज्यादातर 40 साल से ऊपर वाले लोगों में ज्यादा मिलती है, लेकिन अब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जिन्हें कम उम्र में यह दिक्कत होने लगी है। इस बीमारी पर ध्यान देना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह अपंगता की तीसरी सबसे बड़ी वजह है।
सुलतानपुर के रहने वाले मोहम्मद तस्लील (31 वर्ष) पिछले दस वर्षों से गठिया से पीडि़त हैं। हाई स्कूल तक पढ़े तस्लील की जीविका पान की दुकान से चलती है। तस्लील बताते हैं, ”जब यह रोग बढ़ जाता है, तो दर्द और सूजन की वजह से हम पान के पत्ते भी नहीं उठा पाते हैं। अब तक हम इसका इलाज पांच अलग-अलग डॉक्टरों से करा चुके हैं। अभी जो इलाज चल रहा है उससे यह बीमारी और थमी हुई है और ज्यादा नहीं बढ़ रही।” उनकी दाएं हाथ की कलाई गठिया से पीडि़त है।
”अभी तक जो शोध हुई है उससे पता चला है कि तनाव, अवसाद, उत्कंठा और पूरी नींद न लेना, ज्यादा सीढिय़ां चढऩे-उतरने, फावड़ा चलाने जैसे काम (कमर और पीठ दर्द के लिए), उठकड़वा बैठने की आदत (महिलाओं में गठिया का मुख्य कारण) पता चले हैं। इसमें अवसाद के 80 प्रतिशत मामलों में ऐसा देखा गया है कि उनमें आथ्र्राइटिस के दर्द के लक्षण पाए जाते हैं। इसके अलावा अध्ययन से यह भी पता चला है कि विटामिन-डी की कमी से भी गठिया होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है।” डॉ दास ने बताया। डॉ दास ने साल 2005 से साल 2007 में एक शोध कराया था, जिसमें लखनऊ शहर और सभी ब्लॉकों को शामिल किया था। इसमें हमने पाया कि करीब 20 फीसदी लोगों को गठिया और इससे जुड़ी समस्याएं थी।
डॉ दास ने बताया, ”गठिया का पूरा संपूर्ण इलाज किसी भी चिकित्सा पद्धति मेें नहीं है सिर्फ राहत मिल सकती है। योग में अलग अलग गठिया के लिए कई तरह के आसन होते है जो मरीज की स्थिति को देखने के बाद बताने में लाभकारी हैं क्योंकि गलत आसन मरीज की दिक्कतें और बढ़ा सकते हैं।”
आथ्र्राराइटिस में आराम, धूप की सिकाई व खान-पान में सुधार से कम होगा दर्द
आथ्र्राइटिस कि वजह से जोड़ ढीले, असामान्य, कम गतिशील और कमजोर हो जाते हैं। कई बार ऐसे में छोटी गांठ भी बन जाती है। यह गांठ ज्यादातर त्वचा के नीचे बनती है। इस बीमारी में सिरदर्द या दांत का दर्द निरंतर होता रहता है। ठंड के मौसम में इस बीमारी का दर्द बहुत बढ़ जाता है।
इससे प्रभावित अंग
हाथ, कोहनी, कलाई, कंधे, कूल्हे, घुटने, टखने और गर्दन।
धूप बेहद जरूरी
रयूमेटाइड आथ्र्राइटिस हड्डियों की बीमारी है। इस बीमारी के दर्द को कम करने के लिए धूप सेंक ना जरूरी है। धूप सेंकने से एक तो हल्की सिकाई हो जाती है दूसरा विटामिन-डी की जरूरी खुराक भी मिल जाती है। सूरज की किरणों में मौजूद विटमिन ‘डी’ शरीर में कैल्शियम के अवशोषण की क्षमता को बढ़ाता है जिससे हड्डियों की मजबूती बढ़ती है।
खानपान में सावधानी
अपने खान-पान में कैल्शियम और प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ाना चहिए। इसके लिए आप दूध और इससे बनी वस्तुएं, दाल, हरी सब्जियां और फलों का नियमित सेवन करें।
अधिक दर्द हो तो
रयूमेटाइड आथ्र्राइटिस में सर्दियों के मौसम में कई बार असहनीय दर्द होता है। ऐसे में जोड़ों को ठंड से बचाएं। रात में सोने से पहले दर्द हो तो गरम पानी को रबर के बैग में भर जोड़ों की सिकाई कर सकते हैं।
डॉक्टर से पूछकर करें व्यायाम
आथ्र्राइटिस में सही व्यायाम करने के लिए अपने डॉक्टर या फिजियोथेरेपिस्ट से जानकारी लेेंं। अपने आप व्यायाम करने से आपकी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।