लखनऊ। जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) यानी दिमागी बुखार के बच्चों को टीका लगाने के लिए प्रदेश सरकार ने 38 जिलों में बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू किया, मगर गाँवों में प्रचार-प्रसार के अभाव में ग्रामीण अपने बच्चों को टीका लगाने में आना-कानी कर रहे हैं।
गोरखपुर के खोराबार ब्लॉक के भैरोपुर निवासी गामा पासवान (65 वर्ष) का कहना है, “ विशेष टीकाकरण के बारे में कोई प्रचार-प्रसार नहीं कराया गया है और न ही कोई स्वास्थ्य कर्मचारी घर या गाँव में बताने आया है। हमें नहीं पता कौन सा टीकाकरण अभियान चल रहा है।” यह वह इलाका है, जो जापानी इंसेफ्लाइटिस से सबसे अधिक संवेदनशील है। यहां हर साल गर्मी के बाद बारिश और उसके बाद शुरुआती जाड़े में इस बुखार से कई मासूम असमय काल के गाल में समा जाते हैं। मगर यहां के लोग भी सरकार की ओर से दिमागी बुखार को लेकर शुरू किए गए बड़े टीकाकरण अभियान के बारे में जानते नहीं हैं।
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बीती 25 मई से 38 संवेदनशील जिलों में राज्य सरकार की ओर से जेई टीकाकरण का दौर चल रहा है, जिसमें बच्चों को नि:शुल्क टीके सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर लगाए जा रहे हैं। 80 लाख बच्चों को टीकाकरण है, मगर अभी इन केंद्रों पर बच्चों को लेकर लोग नहीं पहुंच रहे हैं। जुलाई माह से लेकर अक्टूबर माह तक इस रोग का असर दिखाई देने लगता है। 38 साल पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिमागी बुखार ने कहर बरपाया था।
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अब तक 10 हजार बच्चों को ये बुखार लील चुका है। अभियान शुरू हुए पांच दिन हो गए हैं। मगर 38 जिलों में 50 हजार बच्चों का भी टीकाकरण अब तक नहीं किया जा सका है। इसमें से 9286 बच्चों की मौत हो गई। वहीं खोराबार ब्लाक के महेरवाबारी निवासी रामहित पासवान (60 वर्ष) का कहना है, “विशेष टीकाकरण अभियान के बारे में हमें कुछ नहीं पता है। पता नहीं कहां अभियान चल रहा है।”वहीं कुशीनगर के हाटा तहसील के गाँव धनहा निवासी रेनू सिंह (26वर्ष) का कहना है, “ पूर्वांचल के लिए जेई एक अभिशाप बन गया है। हर साल हजारों मासूमों की मौत हो रही है, बावजूद इसके सरकार इस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।“
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तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है और प्रत्येक वर्ष बीमारी से ग्रसित बच्चों की बड़े पैमाने पर मौत हो रही है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में चिकित्सकीय निरीक्षण बताते हैं कि कुल संक्रमित लोगों में बच्चों की संख्या 90 प्रतिशत से ज्यादा होती है। अतः वयस्कों की तुलना में बच्चे इस बीमारी के ज्यादा शिकार होते हैं। कुल रोगी बच्चों में 82 प्रतिशत बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं। कुल रोगी बच्चों में 74 प्रतिशत बच्चों के माता-पिता समाज के बेहद गरीब वर्ग से होते हैं जिनकी मासिक आय मात्र 1000 से 2000 रुपये होती है। इसलिए उचित इलाज के अभाव में ज्यादातर बच्चों की मौत हो जाती है।
यूपी में करीब दस हजार बच्चों की हो चुकी है मौत
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पूर्वी उत्तर प्रदेश में 2005 में 1500, 2006 में 528, 2007 में 545, 2008 में 537, 2009 में 556, 2010 में 541, 2011 में 554, 2012 में 533 और 2013 में 576 बच्चों की इस बीमारी से मौत हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2005 से अक्टूबर 2014 के बीच पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुल 6370 बच्चों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है।
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