बुजुर्गों के लिए इसलिए खतरनाक होती हैं सर्दियां 

स्वास्थ्य

लखनऊ। सर्दियों में शरीर का लगातार तापमान गिरने लगता है, जिसके कारण हाइपोथर्मिया के होने का खतरा बढ़ जाता है। यह समस्या ख़ासकर बूढ़े लोगों में ज्यादा होती है। इस समय खास ध्यान रखकर इससे बचा जा सकता है।

लखनऊ के राम मनोहर लोहिया चिकित्सालय के फिजीशियन डॉ. एससी मौर्य बताते हैं, “जब शरीर का तापमान 97 डिग्री फारेनहाइट से कम हो जाता है। सर्दियों के मौसम में जब बाहर का तापमान कम होता और शरीर में गर्मी पैदा नहीं हो पाती है, उस समय ऐसा होता है। शरीर जितनी तेजी से गर्मी पैदा कर सकता है, उससे कहीं ज़्यादा तेजी से वह गर्मी खत्म कर सकता है। ऐसे में लोग हाइपोथर्मिया का शिकार होते हैं, जो उनके लिए जानलेवा हो सकता है।”

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सर्दियों में तापमान कम होने पर उम्रदराज और बच्चे इसके ज़्यादा खतरे में होते हैं। ऐसे मौसम में शरीर को जितनी गर्मी की आवश्यकता होती है, उतनी वह बना नहीं पाता है। हाईपोथर्मिया के सबसे अधिक शिकार बच्चे या वृद्ध होते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर शिशुओं की मृत्यु जन्म लेते ही हो जाती है। बच्चा मां के गर्भ में रहता है तब उसका तापमान कुछ ओर रहता है लेकिन जन्म के बाद तापमान में बदल जाता है। इस समय ही बच्चों को ठंड लगती है और या तो वह निमोनिया का शिकार हो जाता है, या थोड़ी ही देर में दम तोड़ देता है।

आंकड़ों के अनुसार, हाइपोथर्मिया से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौत 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में होती हैं। वृद्धों को कम उम्र के लोगों की तुलना में हाइपोथर्मिया से पीड़ित होने की आशंका सबसे अधिक होती है, क्योंकि ठंड से बचाव की शरीर की प्रणाली उम्र बढ़ने के साथ कमजोर होती जाती है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ सबक्युटेनियस वसा में कमी आ जाती है और ठंड को महसूस करने की क्षमता भी घट जाती है। उम्रदराज लोगों में डायबिटीज़ आदि बीमारियों की वज़ह से उनका शरीर ठंड को झेल पाने में कम सक्षम होता है। सीधे दवा विक्रेता से दवा लेकर सर्दी-जुकाम का इलाज करना भी इसका कारण बन सकता है।

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क्या हैं लक्षण

हाइपोथर्मिया के धीमी, रुकती आवाज, आलस्य, कदमों में लड़खड़ाहट, हृदयगति और सांस और ब्लड प्रेशर बढ़ना लक्षण हैं। इससे युवाओं और बुजुर्गों को, खासकर जिनको मधुमेह या इससे जुड़ी बीमारियां हैं या जो मदिरापान या ड्रग का प्रयोग ज्यादा करते हैं, उन्हें होता है।

कैसे बचाव करें

प्राथमिक उपचार के तौर पर मरीज को सबसे पहले बंद गर्म कमरे में लेटा दें, उसके गीले कपड़े उतार दें, गर्म कपड़ों की परतें उन्हें पहना दें, इसके बाद गर्म कम्प्रैस या इंसुलेशन का प्रयोग करें। ध्यान रहे आपको ऐसे में सीधे हीट का प्रयोग नही करना है। टांगों और कंधों को गर्म रखने के लिए कंबल का प्रयोग करें और घर के अंदर सिर पर हैट या टोपी पहन कर रखें। ठंड में बाहर जाते समय, टोपी, स्कार्फ और दस्ताने ज़रूर पहनें, ताकि शरीर की गर्मी कम न हो। सिर को ढकना बेहद आवश्यक है, क्योंकि ज़्यादातर गर्मी सिर के जरिए बाहर जा सकती है। गर्मी को शरीर के अंदर बनाए रखने के लिए गर्म ढीले कपड़ों की कई परतें पहन कर रखें।

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