न्यू इंग्लैण्ड जर्नल ऑफ मेडिसिन्स (1997) में वैज्ञानिक रोसेनब्लाट और मिंडल ने एक शोध को प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने एक केस स्टडी के जरिए बताया कि किस तरह जानकारी के अभाव में रोगोपचार के नाम पर लेने के देने पड़ सकते हैं।
आँख में लालपन होने पर एक व्यक्ति ने झोलाछाप डॉक्टर की सलाह पर ‘जिन्को बाईलोबा’ नामक पौधे की पत्तियों के सत्व (40 मिग्रा) को आंख में डाला, तीन दिनों तक प्रयोग करनेे पर उसे देखने में कुछ तकलीफ महसूस होने लगी। एक दो दिनों बाद आंख से खून निकलने लगा। जब डाक्टरों से उसने इस बारे में बताया तो पता चला कि इसे ऑक्युलर हेमोरेज रोग हो गया है। इस व्यक्ति की हार्ट सर्जरी कुछ दो साल पहले हुई थी और उस दौरान 325 मिलीग्राम मात्रा में एस्परिन दवा इसे दी गयी थी। दरअसल जिन्को बाईलोबा का सत्व आंखों की समस्याओं के लिए कारगर जरूर है लेकिन पिछले 3-4 साल में एस्परिन दवा का सेवन किए व्यक्तियों का जिन्को बाईलोबा का इस्तेमाल किया जाए तो रिएक्शन हो सकती है। ऐसी अनेक हर्बल औषधियां जैसे जिन्सेंग कावा, एफिड्रा, एकोनाईट, सर्पगंधा, गुग्गल, भिलमा, सुवा, मदार, बेलेनाईट, सेन्ना आदि एक निश्चित अनुपात और माप में लेना चाहिए और हमेशा किसी जानकार की सलाह और उपस्थित में ही ऐसा करना चाहिए।
शरीर में रसायन की अधिकता या कमी बनी रहती है
हमारे शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता और शारीरिक जरूरतों के तौर पर अनेक रसायन, एंजाईम, हार्मोन्स आदि का बनना समय-समय पर होता रहता है और प्रत्येक शरीर में अक्सर किसी ना किसी रसायन की अधिकता या कमी बनी रहती है और अल्प ज्ञान और सलाह की वजह से आप जब अपना उपचार स्वयं करते है तो संभावना होती है कि परिणाम नहीं मिलेंगे और इसके विपरीत आपके शरीर को नुकसान भी पहुंचेगा। हमारे शरीर में नैसर्गिक ताकत के रूप में पोषक तत्व, एंजाइम, लिपिड्स और तमाम हार्मोन्स तो हैं लेकिन जरूरत इस बात की है कि किस तरह से रहन-सहन और परिवेश में रहकर इन सबका संतुलन बनाए रखा जा सकता है। यद्यपि हर्बल दवाएं बगैर किसी प्रेस्क्रिपशन के आसानी से बाजार में मिल जाती हैं लेकिन मेरी समझ से आपको हर्बल दवाओं के सेवन के वक्तचिकित्सकीय सलाह लेना जरूरी है क्योंकि इसकी उपयोगिता के बारे में सभी बात करते हैं पर किसी अन्य दवाओं के साथ होने वाले रिएक्शन के बारे में ज्यादा लोगों को समझ नहीं है। यही बात उन डाईटेशियन्स को भी समझनी चाहिए जो चिकित्सा विज्ञान की समझ के बगैर खान-पान में परिवर्तन करा देते हैं पर किसी खास तत्व की अधिकता या कमी के दुष्परिणामों की फिक्रनहीं करते।
डाक्टर की सलाह से कराएं इलाज, नहीं तो शरीर को पहुंचाएगा नुकसान
रोगों का उपचार संभव
दुर्भाग्यवश हमारे चिकित्सक रोगों के लक्षणों की ठीक कर सकते हैं किंतु रोगों के कारणों को नहीं क्योंकि उन्हें शायद रोग के लक्षणों की शिक्षा ज्यादा दी जाती है। रोगों से बचाव और लडऩे के लिए हमे अपने शरीर से ही सहायता लेनी पड़ेगी और शरीर तभी मदद कर पाएगा जब शरीर मदद के लिए सक्षम होगा। औषधियों का बाजार करोड़ों रुपयों का है किंतु प्राकृतिक रूप से शरीर स्वस्थ रखना लगभग मुफ्त है और इस मुफ्त इलाज के लिए किसी चिकित्सक की जरूरत भी नहीं, सिर्फ अपना जीवनयापन, खाद्य शैली और रोजमर्रा की जिंदगी को सटीक कर लिया जाए।
सीधे फार्मासिस्ट से न लें दवाएं
अक्सर हम सीधे फार्मासिस्ट के पास जाकर दवाएं खरीद लाते हैं और मुफ्त में समस्याएं भी घर ले आते हैं। कई बार हर्बल दवाओं को भी जानकारी के अभाव में ले लिया जाता है लेकिन इनके दुष्प्रभावों की कल्पना भी नहीं की जाती है। हर्बल लैक्सेटिव्स बाजार में ओवर द काउंटर के रूप में कहीं भी मिल जाते हैं लेकिन हम में से कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें इनसे जुड़े दुष्प्रभावों की जानकारी तक नहीं। ये विरेचक औषधियां न सिर्फ शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बिगाड़ सकती हैं बल्कि कई तरह के विटामिन्स और वसीय पदार्थों का भी विघटन कर देती है। इसी तरह मूत्र संबंधित विकारों के दुष्प्रभावों की बात करनी आवश्यक है, जिनकी वजह से विटामिन क्च-1, क्च-6, विटामिन ष्ट,ष्टश-क्त10 और शरीर के इलेक्ट्रोलाइट्स अपघटित होने लगते हैं। शरीर में कैफीन की मात्रा ज्यादा होने से विटामिन, विटामिन क्च-काम्प्लेक्स, लौह तत्वों और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों में कमी आने लगती है।
सोच-समझ कर लें दवाएं
इतना सब इस लेख के जरिए बताने का तात्पर्य यह है कि आधे अधूरे ज्ञान पर आधारित दवाएं अथवा उपचार जीवनदायी होने के बजाए प्राण हरने वाली भी हो सकती हैं।
दवाओं की जानकारी जरूरी
वैज्ञानिक एल्विन लेविस 2001 की एक शोध जो जर्नल ऑफ इथनोफार्मेकोलोजी में प्रकाशित हुई थी के अनुसार एलोवेरा के जैल की अधिक मात्रा जिसे अक्सर लोग बगैर जानकारी के लिए तमाम रोगोपचार के लिए इस्तेमाल करते हैं, शरीर के लिए घातक भी हो सकती है। पेट दर्द, पेचिस जैसी आम समस्याओं के अलावा हृदय से संबंधित अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पेड़-पौधों में जो रसायन पाए जाते हैं और कई बार इन रसायनों का सीधा या अप्रत्यक्ष सेवन घातक साबित होता है। फ्लेवेनोईड नामक रसायन की अधिकता होने से मानव शरीर में कई दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ मेडिसिन्स में वैज्ञानिक अर्नस्ट 1998 के रिव्यू लेख की मानी जाए तो फ्लेवेनोईड एनिमिया जैसी समस्याओं के अलावा आपकी किडनी को भी क्षतिग्रस्त कर सकते हैं।
दवाओं की सही मात्रा जरूरी
एलोवेरा, आंवला, दालचीनी, चनौठी, इसबगोल, पपीता, धतूरा और सुपारी जैसे अनेक हर्बल उत्पाद हैं जिन्हें दवाओं के तौर पर उपयोग में लाते वक्त सही जानकारियों और दवाओं के लेने की सही मात्रा का पता होना आवश्यक है, वर्ना परिणाम न मिल पाने की सूरत में आप हर्बल देसी दवाओं को कोसेंगे। मेरी कोशिश होती है कि जिन नुस्खों को मैं सुझाऊं वो विज्ञान की तीखी नज़रों से देखे गए हों लेकिन कई बार किसी एक खास समुदाय के कई वर्षों पुराने नुस्खों की बात करना भी जरूरी होता है और ऐसे में जरूर आप अपने पारिवारिक चिकित्सक से सलाह लेते रहें।