स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में जनसंख्या के अनुपात के अनुसार अस्पतालों में बेड उपलब्ध नहीं हैं। यूपी की ही बात करें तो यहां 3581 लोगों पर एक बेड है, जबकि सरकारी मानकों में यह संख्या प्रति 1000 व्यक्तियों पर दो बेड होनी चाहिए।
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में सरकारी अस्पतालों में प्रति 1000 व्यक्तियों पर दो बेड की योजना बनाई गई है, जबकि हकीकत में बिल्कुल ऐसा नहीं है। इतना ही नहीं, नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 19,561 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है।
हाल में लखनऊ मेडिकल कॉलेज में अम्बेडकर नगर से इलाज कराने आए अंगद कुमार पाठक (35 वर्ष) बताते हैं, ”हम सुबह अस्पताल आ गए थे, लेकिन अस्पताल में बेड की कमी के कारण डॉक्टर ने भर्ती करने से मना कर दिया। इसके पहले भी मुझे काफी परेशान किया गया। पहले ऊपर के वार्ड में भेजा गया। जब वहां पहुंचा तो वहां के स्टाफ ने नीचे जाने को कहा। मुझे और मेरे परिवार वालों को काफी परेशान किया गया।”
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उत्तर प्रदेश में सीएचसी-पीएचसी निदेशक डॉ. रुकुमकेश बताते हैं, “प्रदेश में डॉक्टरों की कमी ही स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूती न देना मुख्य कारण है। प्रदेश में जो बेड की कमी है, उसे पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा मानव संसाधन की आवश्यकता की जरुरत है, वहीं प्रदेश में पहले से साढ़े सात हजार डॉक्टरों की कमी है।”
स्वास्थ्य नीति के तहत फरवरी 2014 में प्रति 30 हजार की जनसंख्या एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से दूसरे प्राथमिक केंद्र की दूरी पांच किमी तय की गई। इसके अलावा प्रति एक लाख की जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की गई।
उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 821 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कुल 30 बेड हैं यानि पूरे प्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कुल 24630 बेड हैं। प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 3621 हैं और कुल बेड की संख्या 14484 है।
वहीं, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2015 के अनुसार, देश में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 83 फीसदी चिकित्सा पेशेवरों और विशेषज्ञों की कमी है। इंडियास्पेंड के विश्लेषण वर्ष 2015 रिपोर्ट के अनुसार, सीएचसी में उत्तर प्रदेश में चिकित्सकों की 86.7 प्रतिशत कमी है। इसके अलावा बाल रोग विशेषज्ञों की 80.1 प्रतिशत और रेडियोग्राफर की 89.4 प्रतिशत कमी है।
वर्ष 2016 में देश के स्वास्थ्य बजट के मुकाबले बजट में 27 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, फिर भी स्वास्थ्य सेवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप नहीं आ रही हैं। वर्ष 2016 में देश का बजट 37061.55 करोड़ रुपए था जो कि बढ़कर वर्ष 2017 में 47352.51 करोड़ रुपए कर दिया गया था। वर्ष 2017 के स्वास्थ्य बजट में मानव संसाधन और चिकित्सा शिक्षा के लिए 3425 करोड़ रुपए, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 2903.73 करोड़ रुपए, जो कि पिछले वर्ष एक मुकाबले 705 करोड़ रुपए ज्यादा है, प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के लिए 1525 करोड़ और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के लिए 357 करोड़ रुपए दिए गए।
डॉक्टरों की कमी पर यूपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने आंकड़ा पेश करते हुए विधानसभा में बताया है कि यूपी में कुल 18,382 डॉक्टरों के पद हैं, जिनमें 11,034 पद ही भरे हैं। कुल 7348 डॉक्टरों के पद खाली हैं। दरअसल यूपी के 75 में से 55 जिले ऐसे हैं, जहां डॉक्टरों की भारी कमी है। इसके अलावा 18 हजार पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। केवल 20 जिले ही ऐसे हैं, जहां डॉक्टर पर्याप्त संख्या में हैं। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार पीएमएस से रिटायर डॉक्टरों को पुनर्नियुक्ति देने की तैयारी कर रही है। साथ ही, मोबाइल यूनिटों से दुर्गम इलाकों में चिकित्सीय सुविधाएं भी पहुंचाई जाने की भी तैयारी है।
मानकों को पूरा करेंगे
यूपी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक ने बताया, “अस्पतालों में बेड की संख्या की कमी को लेकर काम किया जाएगा और यही कोशिश होगी कि उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य व्यवस्था सभी मानकों को पूरा करे।
सही रूप देना जरूरी
इंडियन मेडिकल एसोसिएसन यूपी के सचिव डॉ राजेश सिंह ने बताया, “प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था को सही रूप देने के लिए जरुरी है, डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाना। अस्पतालों में अगर बेड की संख्या बढ़ा दी जाती है तो डॉक्टरों की जरुरत है।”
ग्रामीण क्षेत्रों में जरुरत
केजीएमयू के कुलपति प्रो.एमएलबी भट्ट ने बताया, “सरकार ने 25 मेडिकल कॉलेज बनाने का निर्णय लिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में सीएचसी पीएचसी में बेड की संख्या को बढ़ाने की जरुरत है। जल्द समस्या से छुटकारा जरूर मिलेगा।”
इन प्रदेशों की भी हालत खराब
उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार में स्थिति और भी ज्यादा खराब है। मानक एक हजार लोगों पर दो बेड का है, मगर बिहार में 8645 लोगों पर एक बेड है, जो कि पूरे देश में सबसे खराब स्थिति में है। हरियाणा में 3427 लोगों पर, झारखण्ड में 3079 पर, उत्तराखंड में 1233 पर और दिल्ली में 824 लोगों पर एक बेड है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप नहीं है।
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