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देश में 2.5 लाख हृदय रोगियों पर हैं सिर्फ एक कार्डियोलॉजिस्ट: रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार इस समय देश में लगभग नौ करोड़ लोग हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं। भारत में हृदय संबंधी बीमारियों से मृत्यु दर 272 प्रति एक लाख है जो दुनिया के औसत 235 प्रति एक लाख से काफी ज्यादा है।

हृदय रोग बढ़ती उम्र की बीमारी है? अगर आपको भी यही लगता है तो ये रिपोर्ट आपको पढ़नी चाहिए। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल से जुड़ी बीमारियों से होने वाली मौतों में भारत आज दुनिया में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हर एक लाख लोगों में करीब 276 लोगों की मृत्यु दिल से जुड़ी बीमारियों की वजह से होती है, जबकि वैश्विक औसत 235 है।

दिल को आराम देना ज़रूरी

सीके बिरला हॉस्पिटल ने हृदय से जुड़ी बीमारियों पर “एवरी बीट काउंट्स” यानी ‘हर धड़कन मायने रखती है’ रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 24.5% मृत्यु हृदय रोगों के कारण होती है। इसके पीछे के कारण बताते हुए डॉ. मृदुल मेहरोत्रा गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “जैसे हम अपनी गाड़ी की सर्विस कराते हैं, वैसे ही अगर हम अपनी बॉडी की सर्विस कराएं तो अचानक कार्डियक अरेस्ट जैसी समस्याएं टल सकती हैं। हार्ट को रेस्ट के लिए सही चीज़ों की जरूरत होती है। जब हार्ट धड़कता है, तो उसमें लब-डब की आवाज़ होती है, और दोनों धड़कनों के बीच का अंतराल हार्ट का रेस्ट है। अगर हार्ट को यह रेस्ट नहीं मिलता तो उसकी मसल्स पर जोर पड़ता है और मायोकारडाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं।”

हार्ट की निगरानी कैसे करें

अपने हार्ट की निगरानी किस प्रकार कर सकते हैं, इस पर डॉ. मृदुल ने बताया, “सिंपल ईसीजी से हर छह महीने या साल में हार्ट की स्थिति का पता चल सकता है। ईसीजी कराने का मतलब हार्ट अटैक होना नहीं है, बल्कि यह स्क्रीनिंग है जिससे पता चलता है कि सब कुछ ठीक है या नहीं। हमारी आबादी में 40% लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या है, लेकिन उन्हें पता ही नहीं होता। छोटी-मोटी समस्याओं को लोग गैस या एलर्जी समझ लेते हैं, लेकिन यह हार्ट के संकेत हो सकते हैं।”

भारत में होने वाली सभी मौतों में से 24.5 प्रतिशत मौतें हृदय संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं, जबकि पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में हृदय रोग के कारण 35 प्रतिशत से अधिक मौतें होती हैं।

कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स

कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स हार्ट में जमने वाले फैट्स होते हैं। लोग केवल कोलेस्ट्रॉल के बारे में जानते हैं, जबकि ट्राइग्लिसराइड्स ज्यादा हानिकारक होते हैं। लिपिड प्रोफाइल जैसी जाँच से इनकी स्थिति का पता चलता है और अगर यह जम रहे हैं, तो इन्हें कम किया जा सकता है। ईसीजी में हार्ट रेट या अन्य समस्याएँ आने पर उसे सही किया जा सकता है। महिलाओं में एनीमिया के कारण हार्ट रेट बढ़ जाती है, खासकर पीरियड्स के दौरान। ऐसे में उन्हें एक्सरसाइज करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे हार्ट पर जोर पड़ता है।”

इलाज के लिए बुनियादी ढांचा ठीक नहीं


‘एवरी बीट काउंट्स’ रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2,50,000 हृदय रोगी मरीजों के लिए सिर्फ एक कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर है, और यह आंकड़ा विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है। जैसे कि अमेरिका, जहाँ हर 7,300 मरीजों के इलाज के लिए एक डॉक्टर मौजूद है। भारत की 1.4 बिलियन की जनसंख्या में कार्डियक सेंटर, जो हार्ट सर्जरी करने में सक्षम हैं, केवल 420 हैं और वे भी असमान रूप से वितरित हैं, जिसमें ज़्यादातर सेंटर शहरी क्षेत्रों में हैं। इसके चलते भारत में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली 50% मृत्यु घर पर ही हो जाती है, कारण इलाज में देरी। वहीं, केवल 10 में से एक व्यक्ति ही उचित स्वास्थ्य सुविधा तक पहुँच पाता है।

शिशु मृत्यु दर में लगभग 10% का योगदान

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 10% शिशु मृत्यु का कारण हृदय से संबंधित रोग है। ग्रामीण भारत में शिशुओं की स्क्रीनिंग के लिए बुनियादी सुविधाएँ न होने के कारण वहाँ इन बीमारियों का ख़तरा और बढ़ जाता है। गर्भावस्था के दौरान या जन्म के तुरंत बाद जन्मजात हृदय रोगों (Congenital Heart Diseases) का समय पर पता लगाना बच्चों की जीवन रक्षा दर को बढ़ाने में बेहद महत्वपूर्ण है।

हालाँकि, गर्भ में बच्चे की इकोकार्डियोग्राफी (fetal echocardiogram) और नवजात के पल्स ऑक्सीमेट्री (newborn pulse oximetry) जैसी स्क्रीनिंग तकनीकें उपलब्ध हैं, लेकिन भारत में इनका व्यापक रूप से उपयोग नहीं हो रहा है। अगर इन तकनीकों को अधिक अपनाया जाए, तो इससे न केवल इलाज की लागत कम हो सकती है। नवजात शिशुओं में प्रमुख जन्मजात हृदय रोगों का पता लगाने के लिए पल्स ऑक्सीमेट्री स्क्रीनिंग एक सटीक तकनीक है। यह तकनीक 95% से अधिक सटीकता के साथ प्रमुख जन्मजात हृदय रोगों का सही-सही पता लगा सकती है।

हार्ट अटैक की स्थिति में क्या करें?

डॉ. मृदुल ने गाँव कनेक्शन से बताया, “सबसे पहले मरीज के आसपास भीड़ हटाएँ ताकि ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़े। उसके पैरों को ऊपर उठाएँ ताकि ब्रेन तक ब्लड फ्लो पहुंच सके। ब्रेन को तीन मिनट तक ब्लड की जरूरत होती है, उसके बाद वह मरने लगता है। सीपीआर (कार्डियो पल्मोनरी रेसिटेशन) दें, जिसमें एयरवे क्लियर करें, ब्रीदिंग दें और छाती को कसकर दबाएं। अगर मरीज कॉन्शियस हो जाए, तो पानी में एस्पिरिन घोलकर पिला सकते हैं, जिससे खून का बहाव सही हो जाता है और क्लॉट खुलने लगता है।”

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