गर्मियों में खूब खाएं बेल, तेंदू और शहतूत

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फलों के महत्व को हम बचपन से सुनते आए हैं लेकिन कभी गहराई से इनके औषधीय गुणों के बारे मे हमने जानने की कोशिश नहीं की है। आदिवासियों की मान्यता होती है कि ऐसा कोई भी रोग नहीं हैं जिसका इलाज संभव नहीं किंतु वनस्पतियों की सही जानकारी, सही मात्रा और सही उपलब्धता ना हो पाने के कारण हमें परिणाम नहीं मिलते हैं। आदिवासियों के ज्ञान और पेड़ पौधों से जुड़ी उनकी समझ मौसम आधारित भी होती है। हर मौसम और इससे जुड़े विकारों के समाधान के लिए इनके पास नायाब नुस्खे होते हैं। गर्मियों ने दस्तक दे दी है, तो अब बात लू, गर्मी और सूरज के थपेड़ों से निपटने के लिए पारंपरिक ज्ञान जरूरी है।

गर्मियों की चिलचिलाती धूप अक्सर तबीयत बिगाड़ देती है। ठंडे-बुलबुले सोडायुक्त पेय थोड़े समय के लिए राहत जरूर दे सकते हैं लेकिन शरीर पर इनके दुष्परिणामों का भुगतान देर-सवेर तय होता है। प्रकृति ने हमारे लिए वन संपदा के नाम पर अनेक ऐसे उपाय दिए हैं जिनकी मदद से हम अपनी सेहत की देखभाल स्वयं कर सकते हैं। कितनी ही गर्मी क्यों न हो, यदि हम अपनी दिनचर्या में पारंपरिक पेय और फलों को सम्मिलित कर लें तो धूप की तपिश से होने वाले शारीरिक विकारों पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। गर्मी का मौसम आ चुका है और आए दिन हम लू के थपेड़ों की चर्चा सुनते और पढ़ते रहेंगे किंतु यदि हम पहले से ही सावधान हो जाएं तो संभव है चल रहे इस गर्मी के मौसम में काफी हद तक हम अपनी सेहत को कमजोर होने से बचा पाएंगे।

बेल के जादुई प्रभाव

बेल वृक्ष की पत्तियां शिवजी की आराधना में उपयोग में लाई जाती हैं। इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम एजिल मारमेलस है। बेल के फलों का शर्बत बड़ा ही गुणकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आँखों की रौशनी में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए उत्तम है। गर्मियों में बेल का फल मानो एक वरदान है जिसके सेवन से धूप की तपिश और लू के थपोड़ों से शरीर को बचाया जा सकता है।  पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बेल के कच्चे फल और पत्तियों को गौ-मूत्र में पीस लिया जाए और नारियल तेल में इसे गर्म कर कान में डाला जाए तो बधिरता दूर हो सकती है। जिन्हे हाथ-पैर, तालुओं और शरीर में अक्सर जलन की शिकायत रहती हो उन्हे कच्चे बेल फल के गूदे को नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबोए रखने के बाद, इस तेल से प्रतिदिन स्नान से पूर्व मालिश करनी चाहिए, जलन छूमंतर हो जाएगी। 

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की पातालकोट घाटी के भारिया आदिवासी लू से लड़ने के लिए बेल के रस से बना अनोखा पेय तैयार करते हैं। ताजे पके बेल के फल का लगभग 250 ग्राम गूदा लेकर 500 मिली पानी में अच्छी तरह से मसल लिया जाता है और इसमें 2 चम्मच नींबू रस मिला लिया जाता है, स्वादानुसार शक्कर और नमक भी डाल दिया जाता है। आदिवासियों के अनुसार इस रस को यदि लू ग्रसित रोगी सुबह, शाम एक गिलास प्रतिदिन पीए तो अतिशीघ्र लू का प्रभाव खत्म हो जाता है। इन्ही आदिवासियों के अनुसार बेलिया रस के अनेक औषधीय गुण भी हैं।

अनेक मर्जों की दवा शहतूत 

शहतूत को मलबेरी के नाम से भी जाना जाता है। मध्य भारत में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है। शहतूत के फलों का रस पीने से आंखों की रोशनी तेज होती है और इसका शरबत भी बनाया जाता है। पातालकोट के आदिवासी गर्मी के दिनों में शहतूत के फलों के रस में चीनी मिलाकर पीने की सलाह देते हैं, उनके अनुसार शहतूत की तासीर ठंडी होती है जिस कारण गर्मी में होने वाले सन स्ट्रोक से बचाव होता है। शहतूत का रस हृदय रोगियों के लिए भी लाभदायक है। 

गर्मियों में बार-बार प्यास लगने की शिकायत होने पर इसके फलों को खाने से प्यास शांत होती है। शहतूत में विटामिन-ए, कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम अधिक मात्रा में मिलता हैं। इसके सेवन से बच्चों को पर्याप्त पोषण मिलता है और पेट के कीड़ों को भी खत्म करता है। शहतूत खाने से खून से संबंधित दोष समाप्त होते हैं। डाँग-गुजरात के आदिवासीयों के अनुसार शरीर में किसी भाग में सूजन होने पर उस पर शहतूत के फलों के रस और शहद को मिलाकर लेप लगाने से सूजन में काफी राहत मिलती है। शहतूत का रस पीने से हाथ-पैर के तालुओं में होने वाली जलन से राहत भी मिलती है।

गरीबों का फल तेंदू 

मध्यभारत के वनों में प्रचुरता से पाए जाने वाले फल तेंदू का वानस्पतिक नाम डायोस्पोरस मेलानोजायलोन है। इसे आम बोलचाल में गरीबों का फल कहा जाता है। आदिवासी गर्मियों में घर से निकलने से पहले तेंदु के पके फलों को खाते हैं ताकि गर्मी के प्रकोप से इनकी सेहत को कोई नुकसान न हो। फलों का रस तैयार कर खून की कमी वाले रोगियों को दिया जाता है, ये भी माना जाता है कि टैनिन रसायन की बहुतायत होने की वजह से इस रस को घाव पर डाला जाए तो घाव जल्दी सूख जाता है। सूखे फलों को जलाकर इसके धुंए को दमा के रोगी को सूंघने कहा जाता है, माना जाता है कि दमा में यह काफी राहत देता है। गर्मियों में अक्सर होने वाली पेशाब की जलन में तेंदु के पके फलों का रस बेहद फायदा करता है। पके फलों को पौरूषत्व देने वाला माना जाता है। आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार जो तीन महिने तक लगातार इसके एक दो फलों का सेवन प्रतिदिन करता है, उसकी नपुंसकता दूर हो जाती है।

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