“अधिकांश लोग गाड़ी चलाते हैं क्या आप कभी गाड़ी स्टार्ट करके सीधे उसे चौथे या पांचवे गियर में डालते हैं नहीं न? और अगर डालते हैं तो उसका गाड़ी के इंजन पर बुरा असर पड़ता है। जब आप गाड़ी चलाते समय ऐसी गलतियां करने से बचते हैं तो फिर ये शरीर तो आपका खुद का है और गाड़ी से कही ज्यादा कीमती है। इसे मेहनत कराने से पहले (योग या अन्य विधाओं के शारीरिक अभ्यास) इसकी सुरक्षा के लिए छोटी-छोटी बातों का सावधानियां और नियमों ध्यान रखना भी जरुरी है, “ये कहना है डॉ अशोक अवस्थी का जो कि पेशे से योग प्रशिक्षक हैं।
इस योग सीरीज के पहले और दूसरे पार्ट में आपको योग से पहले की जाने वाली सावधानियों सूक्ष्म क्रियाओं के बारें में जानकारी दी गयी है। पहले सावधानी के साथ योग की सूक्ष्म क्रियाओं का अभ्यास करें, दूसरे दिन सूक्ष्म क्रियाओं का अभ्यास लगभग 15 मिनट करने के बाद यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करें लगभग 15 मिनट करें, जिनके बारें में हम आज आपको बताने जा रहे हैं।
यौगिक क्रियाओं में पहली क्रिया मस्तक के लिए होती है, दूसरी क्रिया आँखों के लिए, तीसरी क्रिया कानों के लिए, चौथी क्रिया मुख एवं स्वर यंत्र के लिए, पांचवी क्रिया गर्दन के लिए, छठी क्रिया कंधो के लिए, सातवी क्रिया हाथों के लिए, आठवी क्रिया सीने और फेफड़ों के लिए नौवीं क्रिया पेट के लिए दसवी क्रिया कमर के लिए ग्यारहवी क्रिया पैरों के लिए और बारहवी क्रिया घुटनों और पंजों के लिए होती है।
ध्यान रखें की योगासनों का पूर्ण लाभ तभी मिलता है जब आप इन क्रियाओं का अभ्यास करके शरीर को योगासन करने के लायक बना लेते हैं इसलिए पहले सूक्ष्म क्रिया जो आपको पहले बतायी जा चुकी और और उसके बाद ये यौगिक क्रियाएं करनी हैं।
मस्तक क्रिया में ध्यान मस्तक पर केन्द्रित करें और माथे पर ध्यान केन्द्रित करते हुए 10 बार श्वास-प्रश्वास करें। इस यौगिक क्रिया से मस्तिष्क सम्बन्धी दोष खत्म होते हैं और स्मरण शक्ति का विकास होता है। मस्तिष्क के स्नायु सक्रीय और प्राणमय बनते हैं।
दूसरी क्रिया आँखों के लिए जिसमें गर्दन को सीधा और स्थिर रखें। पहली क्रिया में श्वास भरते हुए बिना गर्दन हिलाए आँखों के गोलको को ऊपर आकाश की तरफ देखे और श्वास को खाली करते समय आँखों के गोलको (पुतलियों) को नीचे की तरफ ले जाए और पैर के पंजो की तरफ देखें।
इसके बाद फिर से श्वास भरते हुए आँखों की पुतलियों को दाएं कोने की तरफ ले जाएं और श्वास खाली करते हुए पुतलियों को बाये कोने की तरफ ले जाए, इस क्रिया को कम से कम पांच बार करें।
इसके बाद दोनों हथेलियों को आपस में रगड़े और गर्म होने पर हल्के हाथों से आँखों पर मालिश करें। मालिश के बाद आँखों को धीरे-धीरे इस प्रकार खोले की आँखों पर सीधे तेज प्रकाश न पड़ें। उँगलियों के छिद्रों से प्रकश देखे और धीरे धीरे आँखें खोलें। इस क्रिया से आँखों की मांसपेशिया शक्तिशाली होती हैं और आँखों के रोग दूर होते हैं। आँखों को तेज हवा व धूप से बचाना चाहिए व चलते हुए वाहन में पढाई नहीं करनी चाहिए।
तीसरी क्रिया कानों के लिए होती है सीधे खड़े होकर बिना गर्दन को हिलाए तर्जनी ऊँगली (अंगूठे के बगल वाली ऊँगली) दोनों कानों में डाले और दाए-बाए घुमाएं उसके बाद उसके बाद कान के बाहरी भाग और चारों तरफ मालिश करें और कान को नीचे से मध्य ऊपर से चार पांच बार खीचें। हथेलियों से दोनों कानों को दो से तीन मिनट तक दबाकर शरीर की अंतर्ध्वनि सुनें। कानों का व्यायाम एक जरुरी यौगिक क्रिया है, गर्भावस्था में शिशु कान के ही आकृति में होता है। कान के व्यायाम से आलस्य दूर होता है और सुनने की शक्ति बढ़ती है व सोचने की शक्ति में वृद्धि होती है।
कान का व्यायाम (यौगिक क्रिया) करने के बाद मुंह और स्वर यंत्र की क्रिया की जाती है। इस क्रिया को करने के लिए मुंह में हवा भरकर गालों को फुलाए और मुंह के अंदर हवा को गोल गोल घुमाये। हाथों से ललाट (मस्तक ) होठ और ठुड्डी की मालिश करें।मुंह को पूरा खोले और बंद करें इस क्रिया को पांच बार दोहराए।इसके बाद श्वास को भरें और गर्दन को ऊपर की तरफ उठाते हुए आकाश की तरफ देखें। जितना मुंह खुल सके उतना खोले और दाहिने हाथ की तीन उंगलिया दांतों के मध्य रखते हुआ आ…की ध्वनी करें इस क्रिया को तीन बार करें। मुंह के व्यायाम से चेहरों पर झुर्रिया नहीं पड़ती है दांत और जबड़े शक्तिशाली बनते है आवाज साफ होती है।
पांचवी क्रिया या पांचवे स्टेप पर गर्दन का व्यायाम किया जाता है पहले दोनों हथेलियों को आपस में रगड़कर गर्म करे और फिर गर्दन की मालिश करें। फिर श्वास भरते हुए गर्दन को ऊपर की तरफ उठाये और आकाश की तरफ देखें ,फिर श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे गर्दन को नीचे की तरफ लाये और ठुड्डी कंठकूप में लगाए ये क्रिया 3 से 5 बार करनी चाहिए।
दूसरे स्टेप में सावधान की मुद्रा में खड़े होकर श्वास भरे और गर्दन को दाए से बाए (राईट टू लेफ्ट) धीरे-धीरे क्लॉक वाइज घुमाये और श्वास को छोड़े, पुनः जितनी संख्या में गर्दन को क्लॉक वाइज घुमाया है उतनी ही संख्या में श्वास भरते हुए गर्दन को एंटी क्लॉक वाइज घुमाये और श्वास को खाली करें। गर्दन की इस क्रिया से आँखों और मस्तिष्क की शक्ति बढती है और गर्दन का दर्द खत्म होता है साथ ही गर्दन के क्रियाशील रहने के वजह से गर्दन सम्बन्धी बीमारियाँ होने की संभावना कम हो जाती है।
इसके बाद कन्धों के लिए व्यायाम किया जाता है, इसे करने के लिए दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बंद करे अंगूठा अंदर की तरफ रहे, श्वास भरते हुए कन्धों को उपर की तरफ उठाये। श्वास छोड़ते हुए कन्धों को नीचे लाएं। उसके बाद हाथों की उँगलियों को मोड़कर कंधो पर रखे और और श्वास भरते हुए हाथों को आगे से पीछे की तरफ गोलाकार में घुमाते हुए श्वास छोड़े पुनः श्वास भरते हुए पूर्ववत हाथो को पीछे से आगे की तरफ गोलाकार घुमायेI इस क्रिया को कम से कम दस बार करें। इसके अभ्यास से कंधो की शक्ति बढती है, जोड़ों का दर्द ठीक होता है और नाभि नहीं हटती है।
इसके बाद हाथों का व्यायाम करें। हाथों को सामने की तरफ सीधा फैलाये, श्वास लेते हुए अंगूठे से ऊँगली तक सक्रीय करें और श्वास छोड़े। फिर से श्वास भरें और हाथों को बिलकुल सामने की तरफ रखते हुए हथेली से कलाई तक के भाग को दस बार ऊपर नीचे और दस बार गोल-गोल घुमाते हुए श्वास छोड़े। इसके बाद दस बार कुहनी से हाथ मोड़े और सीधा करें। इस व्यायाम से कलाई और कुहनियों के जोड़ सक्रीय रहते है और उँगलियों की ताकत बढ़ती हैं।
सीने और फेफड़ों के लिए हाथों को सामने की तरफ फैलाये, हथेलिया आपस में मिली रहेI श्वास भरते हुए दोनों हाथों को सामने की तरफ कन्धों के समानांतर फैलाये और श्वास छोड़ते हुए हाथों को आपस में मिलाएं। यह क्रिया कम से कम पांच बार करें।
दूसरे स्टेप में दोनों हाथों को सीधा आगे की तरफ फैलाये और और श्वास छोड़ते हुए थोड़ा आगे की तरफ झुकें, हाथों को शेर के पंजो की तरह बनाकर श्वास भरते हुए पूरी ताकत से जैसे कोई भारी वस्तु खीचीं जाती है, सीने की तरफ लाये और श्वास छोड़ते हुए सीधे खड़े हो जायेI इस क्रिया को कम से कम पांच बार करें।
इसके बाद श्वास भरते हुए हाथों को कोहनियों से मोड़कर सीने के सामने लाये और इस प्रकार खींचे जैसे स्प्रिंग खींची जाती है इस क्रिया को तीन से पांच बार करें। इन क्रियाओं से सीने और फेफड़ों की शक्ति बढती है और श्वास की क्षमता बढ़ जाती है।
सीने और फेफड़ों की क्रिया के बाद पेट सम्बन्धी क्रिया की जाती है इसके लिए पहले सीधे सावधान की मुद्रा में खड़े हों और फिर श्वास छोड़ते हुए, कमर से 30 डिग्री के कोण तक झुके और हाथों की गदेलियों को घुटनों पर रखें। फिर श्वास भरते हुए पूरा श्वास इस प्रकार खाली करें कि पेट सिकुड़ जाए। इसी मुद्रा में श्वास खीचने और छोड़ने का अभ्यास कम से कम 10 बार करें। इस क्रिया को करने से वायु विकार दूर होते है, पेट की पाचन क्रिया सही रहती है, पेट के आन्तरिक अवयवों की मालिश होती है और मधुमेह रोगियों के लिए भी ये क्रिया फायदेमंद होती है।
इसके बाद कमर व्यायाम के लिए पहले सीधे सावधान की मुद्रा में खड़े हो और श्वास भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की तरफ ले जाएं और पेट को आगे की तरफ व कंधों को पीछे की तरफ ले जाएं। फिर श्वास खाली करते हुए आगे की तरफ झुके और ललाट (मस्तक) से घुटनों को स्पर्श करने का प्रयास करें और हाथ के पंजो से पैरों से छूने का प्रयास करें शुरुआत में सहजता से जितना हो सकें उतना ही करे, शरीर पर दवाब न डालें। इस क्रिया को पांच बार दोहराने के बाद सीधे सावधान की मुद्रा में खड़े हो, श्वास भरते हुए दाहिने हाथ को सामने से ऊपर की तरफ लाये, श्वास छोड़ते हुए कमर से बायीं तरफ झुके, श्वास भरते हुए सीधे खड़े हो जाए। पुनः इसी क्रिया को दुसरे हाथ से करें। इस क्रिया को करने से मेरुदंड लचीला बनता है, गुर्दे स्वस्थ होते है व कमर दर्द में आराम मिलता है।
पैरों की क्रिया के लिए श्वास भरते हुए पैरों के पंजो के बल खड़े हो जाएं, श्वास छोड़ते हुए एड़ी को जमीन पर रखें फिर से श्वास भरते हुए एड़ियों के बल खड़े हो और श्वास छोड़ते हुए पंजो को जमींन पर रखें। इस क्रिया से एड़ी और पंजों के दर्द में आराम मिलता है और दौड़ने या तेज चलने से पहले नसों में होने वाला खिचाव नहीं होता है।
योगासनों का अभ्यास करने से पहले और भी बहुत सी क्रियाएं हैं लेकिन इतनी क्रियाओं का अभ्यास करने के बाद भी योगासन किया जा सकता है।
(आगे के अंक में हम आपको योगासनों के बारें में जानकारी देंगे)