लखनऊ। स्मॉग से दिल्ली के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। ये खतरा सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे देश में फैलता जा रहा है। अभी तो इससे सांस से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं लेकिन ये स्मॉग अगर ऐसे ही बढ़ता रहा तो आपको फेफड़े का कैंसर दे सकता है।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष और भारतीय चेस्ट सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी के अनुसार, ‘’जिस वातावरण से हम सांस लेते हैं, उसमें धुल, धुंआ और मिट्टी पहले से ही होते हैं, लेकिन सामान्य मौसम में ये पूरे वातावरण में फ़ैल जाते हैं तब इनकी सांद्रता वातावरण में ज्यादा नहीं हो पाती है। मतलब ये नुकसानदायक नहीं हो पाती है, लेकिन जब सर्दी का मौसम शुरू होता है तो वातावरण में परिवर्तन देखने मिलता है, और कोहरा बन आता है। कोहरे में हवा में उपस्थित कण एक ही जगह पर प्रभावशाली हो जाते हैं और वातावरण में फैल नहीं पाते हैं।‘’
ये भी पढ़ें- स्मॉग से कैसे करें त्वचा और बालों की देखभाल
वर्ष 1905 में इंग्लैंड के डॉ. हेनरी ने एक शब्द दिया स्मॉग। ये स्मॉग शब्द स्मोक और फॉग को मिलाकर ही बनाया गया। ये स्मॉग वातावरण के निलंबित कणों और फॉग के साथ मिलकर एक चादर बना देते हैं, जिसके कारण निलंबित कण चारों दिशाओं में विस्तारित होने के बजाए एक ही जगह पर एकत्र होने लगते हैं। इसका मतलब है जिस वातावरण में हम सांस लेते हैं ये लगातार उसी में बने रहते हैं। जब इनका सांद्रण ज्यादा हो जाता है तो हमारे स्वास्थ्य पर ये असर डालना शुरू कर देते हैं।
जब हम एक बार में सांस लेते हैं तो आधा लीटर सांस लेते हैं इस सांस लेने की प्रक्रिया (इन्स्पाईरेसन या इनहेल) कहते हैं और सांस छोड़ने की प्रक्रिया को (एक्सपाईरेसन या एक्सहेल) कहते हैं। इस पूरी प्रकिया को श्वसन प्रक्रिया (रेस्पाइरेसन) कहते हैं। इस श्वसन प्रक्रिया में जब हम आधा लीटर सांस लेते हैं और आधा लीटर सांस बाहर निकालते हैं तो उस वायु की क्या गुणवत्ता है इसे वायु की गुणवत्ता का इंडेक्स (एयर क्वालिटी इंडेक्स) कहते हैं। ये एयर क्वालिटी इंडेक्स जितनी ज्यादा खराब होगी उसका हमारे स्वास्थ्य पर उतना ही प्रतिकूल असर पड़ेगा। 2.5 माइक्रोन तक के आकार के कण हमारे स्वास्थ्य के लिए ज्यादा नुकसानदायक नहीं होते हैं। लेकिन जो कण 2.5 से 10 माइक्रोन आकार के हों, वो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदायक और घातक साबित हो सकते हैं।
ये भी पढ़ें- दिल्ली को फिलहाल स्मॉग से नहीं मिली राहत, पाँचवीं कक्षा तक के स्कूल आज बंद
कैसे पता होगा कि आप स्मॉग के हैं शिकार
स्मॉग की वजह से छींक आना, नाक से पानी आना, नाक में खुजली होना, नाक का चोक हो जाना आदि प्रमुखता से होता है। नाक से स्मॉग के कण जैसे जैसे हमारे शरीर के भीतर प्रवेश करते हैं, इनका दुष्प्रभाव तमाम अंगों पर दिखने लगता है। गले में खिच-खिच और खराश की वजह से खांसी आने लगती है। ये कण फेफड़ों को भी प्रभावित करते हैं जिससे ब्रोन्काईटिस और अस्थमा होने का खतरा बना रहता है।
देखिये पूरा वीडियो
अगर लम्बे समय तक प्रदूषित कणों के सम्पर्क में रहें तो व्यक्ति को फेफड़े का कैंसर भी होने का खतरा रहता है। आंखों में भी स्मॉग का का खासा प्रभाव पड़ता है, आंखों में खुजली के साथ जलन होने लगती है और आंखों में पानी आने लगता है। इस कारण सिरदर्द भी हो सकता है और तो और माईग्रेन का अटैक भी पड़ सकता है। इसके अलावा रक्तचाप बढ़ जाता है और लम्बे समय के बाद दिल का दौरा भी पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भवती महिलाएं रखें खास ख्याल
गर्भवती महिलाओं के लिए भी इसका खतरा रहता है। प्रदूषित कणों के संपर्क में लंबे समय तक रहने के बाद गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरा बढ़ सकता है। गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है। इसके अलावा बच्चे में शारीरिक बीमारियां, एलर्जी और सांस सम्बन्धी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। इन सब बीमारियों के साथ-साथ मृत्यु दर भी बढ़ जाती है।
ये भी पढ़ें- दिल्ली अकेला शहर है स्मॉग से जूझने, कुछ न करने वाला
धूम्रपान करना भी हो सकता है हानिकारक
अब इस प्रदूषण में कोई भी धुम्रपान करता है तो उसके लिए अधिक हानिकारक है अगर कोई आपके पास धूम्रपान कर रहा है तो उससे दूरी बना कर रखें क्योंकि साथ में रहने पर धूम्रपान का हिस्सा आपके अन्दर भी चला जाता है। इससे बचने के लिए दो तरीके के बचाव हैं पहला तो स्वस्थ्य व्यक्तियों के लिए और दूसरा बीमार व्यक्तियों के लिए।
बाहर निकलते वक्त रहें सावधान
गाँव के व्यक्ति चलते वक्त एक कंधे पर गमछा डालकर चलते थे। गाँव में प्रदूषण की मात्रा इतनी ज्यादा नहीं होती है लेकिन लोगों की आदत में था। आप जब प्रदूषण वाले क्षेत्र में आते हैं तो इस गमछे से मुंह और नाक को बांध लिया जाए तो उस गमछे से अच्छा कोई भी मास्क नहीं है जो प्रदूषण से आप को बचा सके। प्रदूषण में जो लोग पतले मास्क लगाकर चलते हैं ये मात्र पांच से दस प्रतिशत ही काम करते हैं। इस प्रदूषण में एन95 मास्क काम करता है जो कि काफी महंगा आता है और उसमें सांस लेने में भी तकलीफ होती है।
ये भी पढ़ें- धुंध को देखते हुए अब 19 नवंबर को बाल दिवस मनाएगी दिल्ली सरकार
अस्थमा रोगियों के लिए ज्यादा खतरनाक
जिन लोगों को पहले से ही अस्थमा, ब्रोनकाईटिस, दिल की बीमारी, शुगर आदि की बीमारी है या किडनी की कोई समस्या है तो ऐसे लोगों के लिए ये प्रदूषण बहुत ज्यादा नुकसानदायक है। इन्हें विशेषतौर से अपना ख्याल रखना होगा और अपने डॉक्टर से जरूर सलाह जरूर लेनी चाहिए।
बाहर से आने पर जरूर लें भाप
इससे बचने के लिए आप जब भी बाहर से घर वापस आएं तो भाप ले लें जिससे फेफड़े में जाने वाली गंदगी को साफ़ करने में काफी मददगार साबित होती है। कोई भी दवाई खुद से नहीं लेनी चाहिए। कोई समस्या हो तो डॉक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन चिकित्सा विभाग में इस वातावरण में आए बदलाव के कारण मरीजों की संख्या में बढोत्तरी हुई है। पहले ओपीडी में लगभग 200 मरीज आते थे अब इनकी संख्या बढ़ कर 300 तक रोजाना हो गयी है।
ये भी पढ़े- घुटने वाली हैं सांसें, भारत में एक व्यक्ति के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचे
सुबह और शाम को ना निकले टहलने
अक्सर लोग टहलने के लिए शाम और सुबह को ज्यादा उपयुक्त समझते हैं क्योंकि उनके मुताबिक़ इस समय का वातावरण प्रदूषणरहित रहता है। वातावरण शांत एवं ताजा होता है लेकिन सर्दी का मौसम शुरू होते ही लोगो ही वायु प्रदूषण बढ़ जाता है जो कि उन्हें बहुत ज्यादा बीमार बना सकता है। इसलिए इस समय के मौसम में सुबह और शाम दोनों समय की टहलने की प्रक्रिया बंद कर देनी चाहिए। समय रहते पेड़ पौधों को लगाया जाए।