लखनऊ। आमतौर पर शरीर में किसी तरह की गड़बड़ी जानने के लिए डॉक्टर एक्स-रे और सीटी स्कैन जांच कराने की सलाह देते हैं। लेकिन बच्चों में ऐसी जांच भविष्य में खुुद बीमारी की वजह बन सकती हैं।
किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के रेडियो डायगनोसिस विभाग के प्रध्यापका डॉ अनिक परीमर ने बताया, ”अभी तक कोई यह नहीं पता लगा पाया है कि रेडिएशन की कितनी मात्रा से नुकसान नहीं होता है। तो इसमें लो प्वाइंट जैसा कुछ नहीं है क्योंकि ऐसा कोई आंकडे अभी तक नहीं है। लेकिन रेडियोएक्टिव नुकसानदेह है यह पक्का है। खासकर बच्चों में जिनकी हड्डियां और कोशिकाएं कोमल होती हैं।”
उन्होंने बच्चों पर इन जांच का असर समझाते हुए बताया, ”जितना छोटा बच्चा हो उसके लिए रेडियोएक्टिव की मात्रा उतनी कम होनी चाहिए पर टेक्निशियन करते नहीं है। वह एक ही रेट पर ज्यादातर सभी का एक्स-रे और सीटी स्कैन कर देते हैं। ऐसे में बच्चा जरुरत से ज्यादा मात्रा में रेडियोएक्टि किरणों के संपर्क में आ सकता है।”
अल्ट्रासाउंड ज्यादा सुरक्षित है क्योंकि इसमें ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल से अंदुरुनी अंगों के चित्र बनते हैं। जबकि एक्स-रे और सीटी स्कैन में रेडियोएक्टिव किरणों से अंदुरुनी अंगों की तस्वीर बनती है। इसको देखते हुए कई अंगों की जांच के लिए अब अल्ट्रासाउंड का सुझाव दिया जाता है। कुछ साल पहले तक फेफड़े की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड अच्छा नहीं माना जाता था। मरीजों का एक्स-रे कराया जाता था लेकिन अब इसकी जगह अल्ट्रासाउंड जांच कराई जाती है।
रेडियोएक्टिवटी का असर समझाते हुए डॉ परीमर बताते हैं, ”जब भी हमारे शरीर के कोशिकाएं रेडियोएक्टि किरणों के संपर्क में आती हैं, उनमें कई तरह के बदलाव आते हैं। यह बदलाव कुछ भी हो सकते हैं इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि कितनी मात्रा में रेडियोएक्टिव किरणें कितनी देर कोशिका पर पड़े तो उसमें इस तरह का बदलाव आएगा। क्योंकि त्वचा सबसे पहले इसके संपर्क में आती है इसलिए त्वचा और खून का कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है।” साल 1915 में रेडियोएक्टिवीटी से कैंसर का पहला केस सामने आया था।
बच्चों में कई जांच ऐसी होती हैं जिसमें एक्स-रे और सीटी स्कैन की जगह अल्ट्रासाउंड से जांच की जा सकती है। आपको इसके लिए अपने डॉक्टर से पूछना होगा। इसके अलावा यह जानना जरूरी होता है कि एक साल में किसी एक अंग का कितनी बार एक्स-रे या सीटी स्कैन कराना चाहिए। शरीर के अलग-अलग अंगों के लिए अलग-अलग सीमा तय होती हैं। उदाहरण के लिए एक साल में सिर का एक्स रे 10 बार से ज्यादा नहीं कराना चाहिए। यह चीजें शरीर के महत्वपूर्ण अंगों के लिए लागू होती हैं, जिसमें दिल, फेफड़े जैसे कई अंग शामिल हैं।