डॉ अलीम सिद्दिकी
शराब एक सामाजिक व पारिवारिक समस्या है जिसको कई बार न तो समाज समझता है न परिवार जिसको शराब की लत पड़ जाती है लोग उसको बुरा व्यक्ति समझते हैं। इलाज कराने से ज्यादा उसे शराब से दूर रखना और मारपीट करने को ही उसका इलाज समझते हैं परंतु शराब और जितने नशे के पदार्थ हैं वो एक बीमारी है।
जो लोग शराब पीते हैं या कोई नशा करते हैं उनके दिमाग में एक तरह का बदलाव आ जाता है जो सामान्य इंसान के अंदर नहीं आता। नशा किसी भी प्रकार का हो वो जरूरी नहीं है, शराब, गांजा, चरस आदि। नशा करना एक प्रवृत्ति का हिस्सा है बचपन से ही कई लोग इस प्रवृत्ति के होते हैं कि उनकी तनाव को झेलने की क्षमता खराब होती है। इसके कई कारण हो सकते हैं पारिवारिक माहौल, उनका खुद का व्यक्तित्व, उनका समाज में उठना बैठना ये सब वजहें होती हैं कि उसकी तनाव की क्षमता कैसी है। जिनके घर का माहौल बचपन से खराब होता है, हमेशा डाट फटकार मारपीट या एक अच्छा माहौल बच्चे को नहीं मिलता। उसकी अपने आप ही तनाव सहन करने की क्षमता समाप्त हो जाती है तो उन्हें कुछ न कुछ चाहिए होता है अपने तनाव से लड़ने के लिए, शराब या नशा उसका एक तरीका बन जाते हैं।
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रिसर्च कहती हैं कि शराब या नशा करने की सबसे बड़ी वजह है कि जहां पर व्यक्ति एक नकारात्मक सोच या मोड में आज जाता है तो उसके दिमाग में आता है कि कौन सी ऐसी चीज लें जिससे उसे अच्छा लगने लगे चाहे वो कितना भी नुकसान क्यों न करें उसमें शराब या नशे की चीजें सबसे पहले आ जाती हैं। अगर किसी भी व्यक्ति को नशे की आदत पड़ गई है तो सबसे पहले उसका इलाज करवाइए। उसको डांटना, मारना पीटना कमरे में बंद करना, पैसे न देना ये सब तरीका नहीं है क्योंकि उसके दिमाग को उसकी आदत पड़ गई है और जब तक इलाज नहीं होगा वो नशा लेगा ही लेगा, जिसके लिए मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत काम किया जा रहा है जिससे समाज नशामुक्त हो सके।
इसमें दवाईयां व काउंसलिंग का बहुत बड़ा रोल है। अगर आपके परिवार में या जानने में कोई नशे का आदी है तो उसे मनोचिकित्सक को दिखाएं जो कि दवा देकर या भर्ती करके इलाज किया जाता है, काउसलिंग की जाती है। व्यक्ति को ये समझाया जाता है कि कैसे वो अपने विचार बदले जिससे वो शराब या नशा करने के अलावा किसी और चीज से अपने तनाव को कम सके।,