लखनऊ। सर्दी में जब कोहरा तेजी से पड़ता है तो लोग ठंड से बचने के लिए चौराहों पर कुछ न कुछ जलाकर ठंडी भगाने का प्रयास करते हैं। मगर आपको बता दें कि आग तापने से भले ही आपको ठंडक से आराम मिले, मगर आगे यह आपके लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।
नहीं जल पाते हैं पूरी तरीके से
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एनवायरमेंट और सस्टेनेबल डेवलपमेंट विभाग के प्रमुख प्रो. गोपाल शंकर सिंह ने बताया, “ठंड से बचने के लिए लोग कहीं भी, कुछ भी जलाकर अपने आपको गर्म बचाने का प्रयास करते हैं। लोग थोड़ी देर के लिए खुद को ठंड से तो बचा लेते हैं, लेकिन आगे खुद को बीमार करने का रास्ता बना लेते हैं। लोग कूड़े-करकट के साथ टायर, ट्यूब, पॉलीथीन सब जलाते हैं, ये सभी कार्बन डेरिवेटिव होते हैं। इससे पर्यावरण में कार्बन डेरिवेटिव कंटेंट कार्बन मोनोऑक्साइड, जो कि पूरी तरीके से जल नहीं पाते हैं, तेजी से फ़ैल जाता है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को वायु प्रदूषण के उच्चतम एकाग्रता वाले देशों में सूचीबद्ध किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं। ऐसे में वायु प्रदूषण का गहरा संबंध हृदय रोग, श्वसन रोगों और कैंसर से है। शिकागो-हावर्ड और येल विश्वविद्यालयों के अर्थशास्त्रियों भी मानते हैं कि भारत में वायु प्रदूषण सामान्य मानकों से काफी अधिक है।
हर किसी चीज की एक क्षमता होती है किसी भी चीज को झेलने की, उसी तरह पर्यावरण पर जब क्षमता से ज्यादा प्रभाव पड़ता है तो प्रदूषण बढ़ जाता है। लोग साँस तो लेते ही हैं और सांस में जब प्रदूषण मिला हुआ है तो लोग बीमार हो जाते हैं और अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं।
प्रो. गोपाल शंकर, प्रमुख, एनवायरमेंट और सस्टेनेबल डेवलपमेंट विभाग, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
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“टायर, ट्यूब इन सभी को जलाने पर गहरे काले रंग का धुंआ निकलता है, इस धुएं में कार्बन ऑक्साइड और कार्बनमोनो ऑक्साइड के कण होते हैं। इन कणों से वायु प्रदूषण बहुत तेज़ बढ़ता है। हर किसी चीज की एक क्षमता होती है किसी भी चीज को झेलने की, उसी तरह पर्यावरण पर जब क्षमता से ज्यादा प्रभाव पड़ता है तो प्रदूषण बढ़ जाता है। लोग साँस तो लेते ही हैं और सांस में जब प्रदूषण मिला हुआ है तो लोग बीमार हो जाते हैं और अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं।” प्रो. गोपाल शंकर ने आगे बताया।
क्या है कार्बन मोनो-ऑक्साइड गैस
ये एक रंगहीन व गंधहीन गैस है, जो कि कार्बन डाईऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक होती है। हवा के साथ शरीर के अंदर पहुंचने पर यह गैस जहरीली हो जाती है और आपको गंभीर रूप से बीमार कर सकती है। देर तक इसके संपर्क में रहने से दम घुट सकता है और मौत भी हो सकती है। कार्बन मोनो-ऑक्साइड शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाने वाले रेड ब्लड सेल्स पर असर डालती है। इससे शरीर का पूरा ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट सिस्टम प्रभावित हो जाता है।
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किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ वेद प्रकाश ने बताया, “लोग जो अलाव जलाते हैं उनमें लकड़ी का प्रयोग करते हैं तो प्रदूषण तो बढ़ता है लेकिन मात्रा कम होती है। टायर, ट्यूब और अन्य चीजें जो लोग जला देते हैं उससे उन्हें नहीं पता है ये सभी पूरी तरीके से जल नहीं पाते है और प्रदूषण की मात्रा को तेजी से बढ़ाते हैं।
“हमारे स्वास्थ्य पर प्रदूषण का गहरा असर पड़ता है। इससे अस्थमा और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) बढ़ता है, जिनमे क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस और एम्फ्य्सेमा जैसे रोग शामिल हैं। प्रदूषित वायु के कारण होने वाले रोगों के सबसे आम उदाहरण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, त्वचा रोग, सीओपीडी, आंखों में जलन जैसे श्वसन रोग हैं। इसके अलावा कई प्रकार की एलर्जी से भी लोग परेशान हो रहे हैं। वायु प्रदूषण से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।” डॉ वेद ने बताया।
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एक रिसर्च के मुताबिक अगर हवा में मौजूद धूल कणों की एकाग्रता में 10 माइक्रोग्राम की कमी आती है तो व्यक्ति का जीवन समय 0.77 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ता है जबकि कुल जीवन की अवधि 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण का हृदय और मस्तिष्क के रोगों से सीधा संबंध है। पीएम 2.5 की मात्रा अत्यधिक प्रदूषण का संकेत मानी जाती है जिसमें विभिन्न बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
“लंबे समय तक कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के संपर्क में रहने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। यह ख़तरा जनसंख्या के 0.6 से 4.5 प्रतिशत तक को प्रभावित कर सकता है। छाती में दर्द, कफ, सांस लेने में दिक्कत, सांस लेते वक़्त आवाज़ निकलना और गले का दर्द भी वातावरण में दूषित हवा में सांस लेने का लक्षण हो सकता है।”
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