कोरोना संकट का सीधा प्रभाव अब गन्ना किसानों पर भी पड़ रहा है। लॉकडाउन के कारण चीनी की मांग और बिक्री काफी घट गई है। चीनी की बिक्री कम होने से उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का अप्रैल के अंत में लगभग 16,000 करोड़ रुप का भुगतान बकाया हो गया है। इससे चिंतित उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना मूल्य के सापेक्ष किसानों को जून तक एक क्विंटल चीनी प्रति माह लेने का विकल्प भी दिया है। इस चीनी के मूल्य को इच्छुक किसानों के गन्ना बकाया भुगतान में समायोजित कर दिया जाएगा।
पेराई सत्र समाप्ति की ओर है परन्तु अप्रैल के अंत में उत्तर प्रदेश में लगभग 15 से 20 प्रतिशत गन्ना खेतों में ही खड़ा है। चीनी मिलें इस गन्ने को खरीदने के लिए किसानों को पर्चियां देने में आनाकानी कर रही हैं। इस साल तो हाल खराब है ही, परन्तु आगामी पेराई सत्र में हालात बेकाबू हो सकते हैं। परन्तु फिर भी गन्ने की पूरी खरीद और गन्ना बकाया भुगतान के लिए सरकार को मिलों पर दबाव बनाना होगा।
देश में वर्ष 2019-20 में चीनी का उत्पादन 270 लाख टन होने की संभावना है। कोरोना संकट से पहले तक हमारी घरेलू खपत भी लगभग इतनी ही रहने की संभावना थी। इस वर्ष चीनी का प्रारंभिक भंडार 143 लाख टन था। सरकार ने इस वर्ष 60 लाख टन चीनी के निर्यात का लक्ष्य रखा था। बदली परिस्थितियों में केवल 35 से 40 लाख टन चीनी का ही निर्यात होने की संभावना है।
गत मार्च से आगामी सिंतबर तक देश में चीनी की खपत अपने सामान्य स्तर से 50 से 60 लाख टन कम होने की संभावना है। अतः अगले पेराई सत्र की शुरुआत में ही चीनी का 150 लाख टन से ज्यादा का प्रारंभिक भंडार होगा। यह हमारी सामान्य परिस्थितियों में लगभग सात महीनों की खपत के बराबर है। अगले पेराई सत्र के शुरू में ही इतनी ज्यादा चीनी का भंडार होना बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
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लॉकडाउन के कारण देश और विश्व में चीनी की मांग और आपूर्ति का सारा गणित बिगड़ गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी की कीमतें तेजी से गिर रही हैं। निकट भविष्य में भी चीनी की कीमतों के बढ़ने की कोई संभावना नहीं है। चीनी की केवल 25 प्रतिशत खपत घरेलू उपयोग में होती है। बाकि 75 प्रतिशत खपत व्यावसायिक उत्पादों- मिठाइयों, चॉकलेट, आइसक्रीम, पेय पदार्थों आदि बनाने में या संस्थानों, भोजनालयों, होटलों, कार्यालयों में होती है। इन तमाम संस्थाओं और दुकानों के बंद होने के कारण यह खपत तेजी से गिर गई है। लॉकडाउन के कारण शादी, समारोह, पार्टियां आदि भी स्थगित हो गए हैं, जिससे चीनी की मांग और घट गई है। अतः अगले कुछ माह तक चीनी की बिक्री कम होने से भविष्य में गन्ना बकाया भुगतान की समस्या और विकराल रूप ले सकती है। इसके कारण आगामी पेराई सत्र में किसान गन्ना आपूर्ति और भुगतान के बहुत बड़े संकट में फंस सकते हैं।
पिछले कुछ सालों में सरकार ने देश में अधिक चीनी उत्पादन को देखते हुए गन्ने से बड़ी मात्रा में एथनॉल बनाने के लिए अनेक प्रोत्साहन दिए थे। सोच यह थी कि गन्ने का उपयोग ज़रूरत के अनुसार चीनी या एथनॉल बनाने में किया जाए जिससे सारा गन्ना भी खप जाए और गन्ना भुगतान का संकट भी ना हो। इस एथनॉल का उपयोग पेट्रोल में मिलाने में किया जाए जिससे हमारा कच्चे तेल का आयात कम होगा, विदेशी मुद्रा की बचत होगी और प्रदूषण भी कम होगा। लॉकडाउन के कारण सारे विश्व में आर्थिक गतिविधियां लम्बे समय तक सीमित ही रहेंगी। इससे कच्चे तेल की खपत, मांग और कीमतें भी कम ही रहेंगी।
अब कच्चा तेल बहुत ज्यादा सस्ता होने के कारण पेट्रोल में एथनॉल मिलाना बिल्कुल भी लाभकारी नहीं है। लॉकडाउन के कारण पेट्रोल की मांग भी घट गई है। अतः फिलहाल चीनी मिलों का गन्ने से एथनॉल उत्पादन करने का विकल्प भी नहीं बचा है। ब्राज़ील गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक देश है जो भारत से डेढ़ गुना गन्ना उत्पादन करता है। कच्चा तेल महंगा होने पर ब्राज़ील चीनी उत्पादन घटाकर एथनॉल उत्पादन बढ़ा देता है। परन्तु कच्चे तेल के दाम गिरने के कारण ब्राज़ील भी अब गन्ने से अधिक मात्रा में चीनी बनाने के लिए मजबूर होगा। इससे देश-दुनिया में चीनी के दाम और गिरेंगे।
लॉक डाउन के कारण शराब की दुकानें भी बंद पड़ी हैं अतः शराब की बिक्री और खपत भी कम हो गई है। इससे चीनी मिलों को डिस्टिलरी से शराब, अल्कोहल आदि बेचकर मिलने वाली राशि भी कम हो गई है। इसी प्रकार कुछ चीनी मिलें गन्ने के सह-उत्पादों से बिजली बनाकर बेच देती थीं। परन्तु अधिकांश औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने के कारण बिजली की खपत और मांग भी काफी घट गई है। अतः बिजली बेचकर होने वाली चीनी मिलों की आमदनी भी अब ना के बराबर होगी।
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कोल्हू और खाण्डसारी उद्योग में भी गन्ने की ज्यादा खपत नहीं हो सकती। चीनी मिलें चीनी के सह-उत्पादों जैसे शीरा, खोई (बगास), प्रैसमड़ आदि से भी अच्छी कमाई करती हैं। सह-उत्पादों से बायो-फर्टीलाइजर, प्लाईवुड व अन्य उत्पाद बनाकर भी बेचती हैं। परन्तु अब इन सब उत्पादों की मांग भी कम ही रहेगी जिससे गन्ने की मांग काफी कम हो जाएगी। इन सब का असर अंत में गन्ने की खपत और भुगतान पर ही पड़ेगा। अतः आगामी सीज़न में चीनी मिलें किसानों से गन्ना खरीदने में बहुत ज्यादा आनाकानी कर सकती हैं।
भविष्य में इस विकट परिस्थिति से बचने के लिए गन्ना किसानों को इस साल गन्ने का रकबा कम कर देना चाहिए। गन्ने की बुआई अभी चल रही है परन्तु किसानों को इसे तत्काल सीमित कर देना चाहिए अन्यथा अगले सीज़न में गन्ने की बहुत ज्यादा दुर्दशा होगी। इस साल गन्ना किसानों को गन्ने का रकबा कम करके खरीफ की अन्य फसलों- दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और धान का रकबा बढ़ा देना चाहिए। इन फसलों का एक तो भंडारण किया जा सकता है, दूसरा इनकी सरकारी खरीद भी होती है, तीसरा इनकी मांग लॉकडाउन में भी देश और विश्व में बनी रहेगी।
किसानों को समझना होगा कि गन्ना एक नकदी फसल है जिसका ना तो भंडारण हो सकता है और ना ही इसे भोजन के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। गन्ने के रस का उपयोग केवल चीनी, गुड़, खांड आदि बनाने या अल्कोहल व एथनॉल बनाने में ही हो सकता है। यदि इन उत्पादों की मांग घटती है तो गन्ने की मांग भी घट जाएगी। अतः गन्ना किसानों को चाहिए कि वो इस वर्ष गन्ने की बुआई का रकबा कम करके चलें अन्यथा आगामी पेराई सत्र में गन्ने को फेंकने या खेतों में ही नष्ट करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। जब हालात सुधर जाएं तो गन्ना किसान पुनः अपने गन्ने के रकबे को बढ़ा सकते हैं। परन्तु इस साल गन्ने का रकबा कम करने में ही में गन्ना किसानों और देश की भलाई है।
(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)