एक रात मैं कमरे में गया और मैंने जहर खा लिया। जहर शरीर के अंदर पहुंचते ही मुझे अहसास हुआ कि मैंने कुछ बहुत गलत कर दिया है। मेरी चीख निकली। सोने की तैयारी कर रहे घर वाले मेरे कमरे में आए और मेरे मुंह से निकलते झाग को देखकर हैरान रह गए।
दोनों छोटे भाइयों ने मुझे बाइक पर बिठाया और अस्पताल ले गए। अस्पताल तक पहुंचने का वो आधा घंटा मेरी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। मेरा शरीर जैसे हर पल मौत के करीब जा रहा था, लेकिन मेरा दिल हर पल जिंदगी के पास वापस लौटना चाहता था। मैं आत्महत्या कर चुका था, लेकिन अपने उस आत्महत्या करने को उसी वक्त अपनी जिंदगी से डिलीट कर देना चाहता था। मैं पछता रहा था।
जिंदगी कभी भी बहुत आसान नहीं थी, मगर मैं हमेशा से पॉजिटिव सोचता था। घर का बड़ा बच्चा था, इसलिए अपनी जिम्मेदारी भी समझता था। कुछ सपने देखता था, मगर वो सपने इतने बड़े नहीं थे कि पूरे ना हो पाएं। एक अच्छी नौकरी चाहता था। अपनी मेहनत से बनाया हुआ एक घर, एक कार खरीदना चाहता था। एक प्रेम कहानी भी थी मेरी, जिसे जी भरकर जीना चाहता था। अपने दोनों छोटे भाइयों के लिए हर तरह का सपोर्ट करना चाहता था। बस इसी सब के इर्द-गिर्द घूमती थी मेरी जिंदगी। मैं खुश था।
कॅरियर भी अच्छा चल रहा था
मैंने बहुत कम उम्र में पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया। पढ़ाई भी इसी तरह काम करके, पैसा जमा करके पूरी की थी। मैं नहीं चाहता था कि मेरे छोटे भाइयों को ऐसा करना पड़े। इसलिए मैं अपने कॅरियर पर बहुत ध्यान देता था। कॅरियर भी अच्छा चल रहा था। पता ही नहीं चला कि कब जिंदगी में ऐसे मोड़ आए कि एक के बाद एक हर चीज, हर सपना हाथ से छूटने लगा और मैं आत्महत्या की कगार पर पहुंच गया।
जिस प्रेम कहानी का मैं जिक्र कर रहा था, वो मेरी जिंदगी में बहुत खास थी। दस साल से हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे, प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे। प्यार में इंसान बाकी सब कुछ सोचना भूल जाता है। हम भी भूल गए थे। जब शादी की बात शुरू हुई, तब सामने आया कि मैं शेड्युल कास्ट हूं और वो शेड्युल कास्ट नहीं है। अपने-अपने परिवारों से बात करने के बाद हम समझ गए कि हमारी शादी नहीं हो सकती।
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प्यार करने के साथ-साथ हम अच्छे दोस्त भी थे। हमने प्रैक्टिकली सोचा और अलग होने का फैसला किया। मैं किसी को दु:खी नहीं करना चाहता था। मुझे लगता था कि उसे मेरे परिवार में आकर शायद एडजेस्ट करने में परेशानी हो। उसे एडजेस्ट ना करते देख शायद मेरे माता-पिता को परेशानी हो। इस सबसे बढ़कर ये कि अपने बेटी की शादी शेड्युल कास्ट में करते, तो उसके माता-पिता को परेशानी होती। कोई परेशान ना हो, इसलिए हम अलग हो गए।
फिर शादी के प्रपोजल को ठुकरा दिया
दस साल जिसके साथ हर पल बांटा हो, उसे इस तरह भुला पाना आसान नहीं होता। मगर मैंने इस मुश्किल को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उसकी याद आती, दिल रोता, मगर मैं खुद को काम में डुबो लेता। कॅरियर मेरे लिए बहुत अहम था। धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर लौटी।
मुझे काम के सिलसिले में मंगलोर जाना पड़ा। वहां एक लड़की से दोस्ती हो गई। काफी महीने बाद पता चला कि वो एक एनआरआई लड़की है। वो कनाडा से इंडिया आई थी और मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। मैं जिसे दोस्ती समझ रहा था, उसे वो प्यार समझ रही थी। उसने मुझे शादी के लिए प्रपोज किया।
मगर इस शादी में ये तय था कि मुझे उसके साथ कनाडा जाना होगा। मैं ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि मुझ पर परिवार की जिम्मेदारी थी और मैं उनसे दूर नहीं जाना चाहता था। मैंने उसे कहा कि मुझे अब इस सब में नहीं पड़ना। मैंने उसे अपने दस साल तक चले अफेयर की बात भी बताई। काफी वक्त तक हम दोनों अपनी-अपनी परिस्थितियों पर बात करते रहे, मगर आखिर में वो समझ गई और मैं उससे भी अलग हो गया।
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सारे इमोशनल अटैचमेंट भुलाकर, मैं फिर अपने कॅरियर पर ध्यान देने लगा। उम्र तो बढ़ ही रही थी, इसलिए घरवालों की तरफ से शादी का दबाव भी बढ़ रहा था। मैंने उनसे कह दिया कि वो जिस लड़की से कहेंगे, मैं शादी कर लूंगा। मुझे लगा कि मेरे लव मैरिज करने से उन्हें परेशानी ही होगी। एक समान कल्चर और बैकग्राउंड की लड़की होगी, तो एडजेस्ट हो जाएगा और जिंदगी खुशी-खुशी बीतेगी। मगर हुआ इसका एकदम उलट।
पत्नी ने कर दिया केस
साल 2014 में मेरी शादी हुई और उसके 3-4 दिन बाद से ही घर में लड़ाइयां शुरू हो गईं। हम एक संयुक्त परिवार में रहते हैं। घर में चाचा-चाची, ताऊ-ताई और उनके बच्चे हैं। मेरी पत्नी को शुरुआत से ही अलग रहना था। मैंने उसे समझाया कि हम अलग भी हो जाएंगे, लेकिन उसके लिए मुझे 1-2 साल का समय चाहिए।
पता नहीं क्यों, वो मेरी बात समझ ही नहीं पा रही थी। मैं इसी जद्दोजहद में था कि कैसे खुद को इतना मजबूत बना लूं कि अलग रह सकूं, इसी बीच मुझे वीमेन कमिशन से नोटिस आ गया। मेरी पत्नी ने मेरे खिलाफ शिकायत कर दी थी। उसके बाद मुझे हर हफ्ते वीमेन सेल में पेश होने जाना पड़ता था। वीमेन सेल के दबाव देने पर मुझे किराये पर अलग घर भी लेना पड़ा। घर-परिवार में सभी परेशान थे।
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नौकरी भी छूट गई
हर सोमवार वीमेन सेल में पेशी होती थी और लगातार 2-3 महीने हर सोमवार ऑफिस से छुट्टी लेने के कारण मेरी नौकरी भी चली गई। मैं हर तरफ से दबाव में आ गया। मेरे पास किराये तक के लिए पैसे नहीं थे। मेरा छोटा भाई मुझे पैसा देता, तो मैं एक जगह से दूसरी जगह पर जा पाता। तीन-चार किमी पैदल चलकर पैसे बचाने लगता।
सड़क किनारे चलते वक्त मेरे दिमाग में बस यही सवाल गूंजता… ये क्या हो गया… मैं तो कुछ और चाहता था जिंदगी से… ये क्या हो गया… ये किन हालात में पहुंच गया हूं मैं। मुझ पर कर्जा बढ़ता जा रहा था। नौकरी नहीं थी। पत्नी साथ नहीं थी। परिवार से दूर हो रहा था और उनकी परेशानी का कारण बन रहा था… ये सब सोचते हुए मुझे लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। मेरी वजह से आज सब परेशान हैं, मैं ना रहूं, तब ही सब ठीक हो पाएगा। बस यही सोचकर एक दिन रात में अपने घर आया और जहर खा लिया।
और मैंने आत्महत्या कर ली
घर वालों ने समय पर अस्पताल पहुंचा दिया था, तो जान बच गई। पूरी तरह ठीक होने में करीब 15-20 दिन लगे। मैं हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुआ। परिवार के साथ घर आया। पत्नी तब भी मेरे साथ नहीं थी। तब भी नौकरी का कोई जुगाड़ नहीं था। तब भी हाथ में पैसे नहीं थे। मगर ये समझ आ गया था कि मैंने गलती की। ये हालात मेरी जिंदगी से बड़े नहीं थे। जिन लोगों की परेशानी दूर करने के लिए मैंने आत्महत्या की, उन्हीं लोगों के लिए परेशानी और भी बढ़ा दी।
रोड ट्रिप ने बदली जिंदगी
मैंने सोच लिया था कि अब हिम्मत से काम लेना है। मगर हिम्मत जुटाने में बहुत परेशानी हो रही थी। घर वालों और दोस्तों ने इसमें मेरा बहुत साथ दिया। मेरे बहुत करीबियों को ही इस बारे में पता था। एक-दो दोस्तों के सिवाय किसी को नहीं पता कि मैंने ऐसा कुछ किया है। उसी दौरान कुछ दोस्तों ने रोड ट्रिप की योजना बनाई।
मुझसे कहा, तो मैंने भी सोचा कि जाना चाहिए। घर वाले शुरू में थोड़ा डरे कि कहीं मैं फिर कुछ ऐसा करने की कोशिश ना करूं। मगर कुछ बहुत अच्छे और करीबी दोस्तों के भरोसे उन्होंने मुझे जाने दिया। उस दस दिन की रोड ट्रिप ने मेरी जिंदगी को नया मोड़ दिया।
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जब हिमाचल और कश्मीर की वादियों से होते हुए मैं घर लौटा, तो मेरा विश्वास मजबूत हो चुका था कि मुझे जिंदगी की इस जंग में हार नहीं माननी है। हिम्मत बहुत आहिस्ता से मेरे सिरहाने आकर बैठी और हाथ थाम लिया। मैं अपनी पत्नी से मिलने गया और उससे पूछा कि वो क्या चाहती है। जो वो चाहती है, वही होगा। अगर उसे तलाक चाहिए, तो भी मैं तैयार हूं। पैसे चाहिए, तब भी। अगर साथ रहना चाहती है, तो भी।
इसके बाद धीरे-धीरे चीजें पटरी पर लौटीं। वीमेन सेल का केस बंद हुआ। मैं और मेरी पत्नी घर से अलग रहने लगे। मैंने फिर से नौकरी ढूंढनी शुरू की। बहुत अच्छी नौकरी नहीं मिली, लेकिन इतना हो गया कि मैं अपना गुजारा कर सकता था।
आज भी हालात अच्छे नहीं हैं। जैसी जिंदगी सोची थी, वैसी नहीं है। लेकिन अब मैं खुद को टूटने नहीं देता हूं। अब मैंने ठान लिया है कि जो भी है, जैसा भी है, इसी में रहना है और इसी को जीना है। खुद को डिप्रेशन से निकालने के लिए मैंने खुद पर बहुत मेहनत भी की। कई डॉक्टरों से मिला। दवाइयां खाईं। कई बार काउंसलिंग करवाई।
आत्महत्या नहीं आत्मविश्वास है रास्ता
जो मुझे पढ़ रहे हैं, उनसे भी कहना चाहूंगा कि आत्महत्या का फैसला किसी को खुशी नहीं देता। जिंदगी से हार जाना सिर्फ आपकी नहीं, आपसे जुड़े हर व्यक्ति की हार होती है। अपने आसपास के लोगों से बात करें। उन्हें समझें। उनके फैसलों में साथ दें और उनका सपोर्ट सिस्टम बनें। डिप्रेशन में जा रहे इंसान को दवाई से ज्यादा जरूरत अपनों के साथ की होती है। अपने अपनों को अपना साथ दें।
ये कहानी है दिल्ली के सीलमपुर में रहने वाले 38 वर्षीय गगन पारचा की। चार साल पहले सन 2014 में उन्होंने सुसाइड किया, मगर उन्हें बचा लिया गया। आज भी वो उस गहरे अवसाद से पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं। हालात मुश्किल पैदा करते हैं। जिंदगी पटरी पर लौट रही है, मगर बहुत सुस्त चाल से, फिर भी उन्होंने ठान लिया है कि जिंदगी को जीना है, जिंदगी एक बार मिलती है, खुद को परखना है, खुद को संभालना है और आगे बढ़ना है, कदम पीछे नहीं करने किसी भी हाल में।
हर 40वें सेकेंड में एक आत्महत्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में हर साल आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। यानी हर चालीसवें सेकेंड में एक मौत होती है। आंकड़ों की मानें, तो भारत के युवा आत्महत्या करने के मामले में दुनिया में सबसे आगे हैं। ज्यादातर सामने आने वाली वजहों में शामिल हैं डिप्रेशन, आर्थिक संकट, पारिवारिक तनाव, गंभीर बीमारी, सपनों का पूरा ना हो पाना, परीक्षा में फेल हो जाना।