हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षा में तेज गति से सुधार का आरम्भ किया है। लेकिन पिछली सरकारों ने निरीक्षकों के पद ही समाप्त कर रखे हैं इसलिए शैक्षिक नियंत्रण की जो व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी और बीसों साल ठीक से काम कर चुकी थी उसे ध्वस्त कर दिया गया।
उसके बदले अधिकारी नियुक्त कर दिए जैसे जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी और संकुल अधिकारी। जब तक इन अधिकारियों के पद समाप्त नहीं किए जाएंगे, सुधार संभव नहीं। बेसिक शिक्षा अधिकारी की व्यस्तता रहती है अध्यापकों की नियुक्ति में, विद्यालय भवन निर्माण में, पुस्तकें खरीदने और मिड-डे मील प्रबन्धन में, पढ़ाई के निरीक्षण में नहीं।
शिक्षा में गाँवों की हालत बहुत ही खराब है। गाँवों की साक्षरता दर 58 प्रतिशत के करीब है जबकि शहरों की 80 फीसदी। ग्रामीण महिलाओं की साक्षरता दर 46 प्रतिशत के करीब और शहरी महिलाओं की 73 प्रतिशत है। शिक्षा सुधार के नुस्खे यदि उन्हीं लोगों से पूछे गये जिन्होंने इसे बिगाड़़ा है तो वांछित परिणाम नहीं मिलेगा। प्रत्येक विचारवान व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने विचार सामने लाए फिर चाहे उसका उपयोग सरकार द्वारा किया जाए अथवा नहीं। यहां गाँवों की प्राथमिक शिक्षा के विषय से आरम्भ किया जा रहा है।
ग्रामीण प्राइवेट स्कूल
1- सरकारी स्कूलों में कोई फीस नहीं ली जाती, किताबें मुफ्त मिलती हैं, दोपहर का ताजा भोजन मिलता है, यूनीफार्म और वजीफा भी दिया जाता है। यह सब छोड़कर गाँव का गरीब अपने बच्चों को सरकारी स्कूल के बजाय फीस देकर प्राइवेट स्कूलों में भेजना चाहता है। यह शिक्षा विभाग के मुंह पर करारा तमाचा है।
2- माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने आदेश पारित किया है कि सरकारी अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ने भेजें। जब एक गरीब सरकारी स्कूलों को नापास कर रहा है तो भला अधिकारी कैसे अपने बच्चे भेजेगा।
मान्यता देने के मानक
1- शिक्षा विभाग ने प्राइवेट स्कूलों की मान्यता के लिए जो मानक निर्धारित किए हैं उनके हिसाब से कमरों का साइज और संख्या तथा अध्यापकों की संख्या निर्धारित है। शायद ही किसी सरकारी स्कूल में ये मानक पूरे होते हों।
2-अनेक सरकारी स्कूलों में पांच कक्षाओं पर दो कमरे और दो या तीन अध्यापक हैं। प्राइवेट स्कूलों के साथ ही सभी सरकारी स्कूलों में मानकों की पूर्ति सुनिश्चित किया जाये।
3- प्राइवेट स्कूलों के लिए भूमि भवन और सम्पत्ति के वही मानक रहें जो उसी पंचायत के सरकारी स्कूलों में उपलब्ध हैं । बेहतर होगा मानकों में शिक्षास्तर, परीक्षाफल, अध्यापकों की योग्यता को सम्मिलित किया जाए।
शिक्षा का उद्देश्य
1- आज शिक्षा का लक्ष्य है नौकरी पाने की सम्भावना लेकिन गाँव के लोगों को यह पता नहीं कि उनके बच्चों में क्या बनने की प्रतिभा है और उसकी प्राप्ति के लिए क्या किया जा सकता है। अंग्रेजों के जमाने में मैकाले को पता था वह क्लर्क पैदा करना चाहता था। क्या हमारे अध्यापकों और सरकार को पता है उन्हें किस प्रकार के नागरिक चाहिए।
2- स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग के लिए कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को पढ़ाई के साथ खेलना भी जरूरी है लेकिन ग्राम प्रधानों ने स्कूलों में खेलने के लिये जगह ही नहीं बनवाई और बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खेलकूद के टूर्नामेन्ट भी बन्द करा दिए। खलिहान, चरागाह और तालाब तथा खेल के मैदानों को भूमाफिया कब्जाए हैं।
3- दृश्य श्रव्य यानी टीवी, रेडियो, अखबार के माध्यम से अध्यापकों और छात्रों को दिशा मिल सकती है लेकिन इनकी कोई व्यवस्था देखने में नहीं आती। पढ़ाई, खेलकूद और व्यक्तित्व विकास पर न तो ध्यान दिया जाता है और न कोई निरीक्षण करने आता है।
4-पुराने समय में प्रायोगिक कार्य कराए जाते थे जिनमें मिट्टी का काम, लकड़ी, सींक, फूल पत्तों का प्रयोग करके विविध क्राफ्ट के काम सिखाए जाते थे। उनका विकल्प खोजने के बजाय उन्हें समाप्त ही कर दिया।
अध्यापक-
1- प्राथमिक शिक्षा में अध्यापकों की नियुक्ति के लिए चयन बोर्ड नहीं है और पिछले वर्षों में कैसे नियुक्तियां होती रही हैं यह शिक्षा विभाग के अधिकारियों को खूब पता है। अध्यापकों की अनुशासनहीनता का एक कारण हो सकता है नियुक्तियों में भ्रष्टाचार।
2-आए दिन अध्यापक हड़ताल करते हैं मजदूरों की तरह सामूहिक सौदेबाजी के लिए। इनकी सेवा शर्तों में होना चाहिए कि हड़ताल करने पर सेवाएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी। अध्यापकों की देखा देखी शिक्षामित्र भी लामबन्द होकर हड़ताल करने लगे हैं।
3-अध्यापकों की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए हो और उसके बाद नवीकरण के लिए बाहरी एजेंसी से परीक्षा ली जाए। सच यह है कि अध्यापक स्वयं ठीक प्रकार से हिंदी अंग्रेजी नहीं लिख पाते।
4- अध्यापकों की नियुक्ति में पारदर्शिता होनी चाहिए और यदि कम्प्यूटर, विज्ञान और गणित के अध्यापक नहीं मिल पाते तो खानापूरी नहीं होनी चाहिए। संस्कृत और संस्कृति का ज्ञान देने वाले अध्यापक वांछनीय हैं।
5-प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी अधिनियम 2005 और शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2005 से जोड़ा जा सकता है। इस प्रकार शिक्षित बेरोजगार भी काम पा जाएंगे।
पढ़ाई के दिन-
1-सब कुछ ठीक रहे फिर भी यदि पढ़ाने के दिन ही न मिले तो शिक्षा में गुणवत्ता नहीं आएगी। आजकल 54 सार्वजनिक अवकाश, 48 रविवार, 40 दिन ग्रीष्मावकाश, प्रवेश और परीक्षा में 20 दिन, अतिवृष्टि और शीतलहर में 15 दिन, वार्षिकोत्सव, हड़तालें, कंडोलेंस आदि में 10 दिन तथा रबी और खरीफ में 20 दिन खेतों में। इस प्रकार पढ़ाई के लिए केवल 158 दिन बचते हैं।
2-सत्र की अवधि और उसका आदि अन्त कुछ पता नहीं रहता। कभी सत्र का आरम्भ अप्रैल से होगा तो कभी 1 जुलाई से। कभी स्कूल 30 जून को बन्द होंगे तो कभी 31 मार्च को। सत्र का अन्तराल निश्चित होना चाहिए और अवधि तर्कसंगत।
3-अनिश्चय और अनिर्णय का यह हाल है कि कभी तो कहते हैं कि कक्षा 5 की बोर्ड परीक्षा होगी तो कभी कहते हैं कक्षा 10 तक कोई फेल नहीं किया जाएगा। इस ढुलमुल यकीनी का परिणाम यह है कि शिक्षा को न तो शिक्षा विभाग गभ्भीरता से लेता है और न छात्र और अध्यापक।
4-आजकल अध्यापक राजनीति में सक्रिय हो गए हैं और मोटी तनव्वाह के बावजूद वे अपना व्यवसाय करते हैं, कोचिंग चलाते हैं, खेती करते हैं और हड़ताल करते हैं और इन सब से समय बचा तो स्कूल चले जाते हैं । उनकी उपस्थिति का सत्यापन हो ही नहीं सकता ।
तब उपाय क्या है-
1-सरकार उतने ही प्राइमरी स्कूल चलाए जिनमें उच्चकोटि की शिक्षा दे सके। इनमें अधकारियों के बच्चे भी सहर्ष आएंगे।
2-ऐसे आदर्श स्कूलों में उतने अध्यापक और कक्ष हों जितनी कक्षाएं हैं। भले ही एक पंचायत में एक ही सरकारी विद्यालय हो।
3-गाँवों के शिक्षित बेरोजगार यदि स्कूल चलाना चाहें और उनके पास जगह हो तो रजिस्टर्ड सोसाइटी बनाकर उन्हें चलाने दिया जाए। मान्यता देने में रिश्वतखोरी बन्द हो और आसानी से बेरोकटोक मान्यता दी जाए प्राइवेट प्राइमरी स्कूलों को।
4-कक्षा 5 और कक्षा 8 की बोर्ड परीक्षा हो जिसमें सरकारी स्कूलों और प्राइवेट स्कूलों के बच्चे एक साथ परीक्षा दें। यदि प्राइवेट स्कूल का परीक्षाफल दो साल तक लगातार खराब रहे तो मान्यता समाप्त कर दी जाए। सरकारी मास्टरों को अपनी असलियत पता चल जाएगी।
5-सरकार का काम हो सघन निरीक्षण जिसके लिए आवश्यक है जिला विद्यालय निरीक्षक, खण्ड विद्यालय निरीक्षक तथा संकुल निरीक्षक नियुक्त किए जाए। साथ ही जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और खण्ड शिक्षा अधिकारी के पद पूरी तरह समाप्त किए जाए। इनसे हानि अधिक लाभ कम है।
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