संवादहीनता के कारण बढ़ रहा पीढ़ियों के बीच टकराव

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कुछ समय से नई उम्र के सम्पन्न घरों के लड़के और लड़कियों में जीवन को समाप्त करने की धारणा चल पड़ी है। मेधावी छात्र, अच्छे कलाकार और विज्ञान के होनहार नवयुवक और नवयुवतियां आत्महत्याएं कर रहे हैं। यह घटनाएं हमारे देश के लिए नई हैं क्योंकि यहां तो अभाव और संकट के कारण जीवन से ऊबते रहे हैं लोग लेकिन सम्पन्न और जीवन में सफल नौजवान और नवयुवतियां जब आत्महत्या करने लगें तो समाज के लोगों को इसके कारणों को खोजने ही चाहिए।

पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका में हिप्पी लोग अपने माता पिता से पृथक हो जाते हैं, स्कूल कालेजों के छात्र हिंसक हो जाते हैं और नशे के आदी बनते  हैं। वे 18 साल की उम्र आते-आते घर छोड़ देते हैं। माता पिता का अधिकार घटता जाता है और वे अपना स्वतंत्र अस्तित्व महसूस करते हैं। बहुत पहले मैं कनाडा में था और कालेज छात्रों को जब यह कहते सुना “मैंने डैड से इस बार एक हजार डालर उधार लिया”  तो आश्चर्य हुआ और अजीब लगा था कि यहां बेटा भी बाप से उधार लेता है।

भारत में भी पीढ़ियों का गैप बढ़ रहा है लेकिन वे खाप और पंचायत के नीचे दबे हैं। मोबाइल ने नई पीढ़ी के पास इन्टरनेट के माध्यम से ज्ञान बढ़ाया है और बढ़ाई है व्यक्तिगत स्वतंत्रता, जिससे पश्चिमी नजरिया विकसित हो रहा है। अब मातृ देवो भव और पितृ देवो भव का जमाना नहीं रहा। इसके विपरीत बुजुर्गों के लिए दुनिया बदली नहीं है और उनकी अपेक्षाएं वहीं पुरानी हैं। आवश्यकता है एक-दूसरे को समझने की।

पुरानी बात है मेरे दो जुड़वां बच्चे कक्षा 7 की परीक्षा देने जा रहे थे,  मैंने देखा एक ने घर के मन्दिर के सामने झुक कर प्रणाम किया और आगे बढ़ गया लेकिन दूसरा बिना भगवान को सिर झुकाए ही बढ़ चला। मैंने उससे कहा बेटा भगवान को हाथ जोड़ दो, वह बोला “मैं भगवान को नहीं मानता।” मुझे अच्छा नहीं लगा लेकिन मैने आजतक फिर नहीं पूछा तुम भगवान को मानते हो या नहीं। उसका अपना सफल जीवन है और शुभ मौकों पर परिवार के बाकी लोगों की तरह व्यवहार करता है। शायद मैने फटकार लगाई होती तो बात बिगड़ जाती।

एक बार काफी पहले मैं विभागीय बस से एमएससी के छात्र छात्राओं का बैच लेकर राजस्थान गया था भूवैज्ञानिक प्रशिक्षण के लिए। मैं आगे की सीट पर बैठा था और बच्चे पीछे एक गाना बजा रहे थे “धक धक, चोली के पीछे क्या है।” उन दिनों खूब बजता था, मुझे लगा यह ठीक नहीं है फिर भी कुछ बोला नहीं। शाम को मैंने सभी को अपने कमरे में बुलाया और प्रशिक्षण कार्यक्रम की बात की और चलते-चलते कहा वो गाना जो तुम लोग बजा रहे थे शायद रोचक लगा हो लेकिन कल को सिनेमा वाले गाना बनाएंगे “धक धक पैन्ट के अन्दर क्या है।” उससे कोई जानकारी नहीं बढ़ेगी, मैंने शुभ रात्रि कहा और जाने के लिए बोला। अगले दिन मैं सवेरे उठा तो मधुर संगीत बज रहा था। मैंने कभी कुछ चर्चा नहीं की उनसे इस विषय में।

कई बार बच्चों की शादियां टकराव का कारण बनती हैं। आज के बच्चे नहीं मानते कि शादियों का फैसला स्वर्ग में होता है और सात जन्म तक रहता है। वे मां बाप की सहमति से शादी करते हैं और आपसी सहमति से अलग हो जाते हैं, जैसे कोई इकरारनामा हो। यह बड़ों की जिम्मेदारी है कि अपने सामाजिक मूल्यों को बचाते हुए बच्चों के विचारों को कैसे समायोजित करें।

sbmisra@gaonconnection.com

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