कांग्रेस के बनने और शिखर तक पहुंचने का इतिहास दुनियाभर के इतिहासकारों ने पढ़ा होगा और पढ़ाया होगा लेकिन कांग्रेस को अपने पतन का इतिहास पढऩा चाहिए। कांग्रेस अगर बहुत मेहनत नहीं करना चाहती है तो भी संतोष सिंह की किताब ‘रूल्ड और मिसरूल्ड’ पढऩी चाहिए। संतोष इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े हैं और बिहार के लिए रिपोर्टिंग करते हैं।
मैं अभी इस किताब के आधे हिस्से तक पहुंच पाया हूं। कुछ राजनीतिक किस्से जाने पहचाने हैं और कुछ बेहद नए लेकिन राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को अंग्रेजी में लिखी यह किताब पढऩी चाहिए। संतोष की लिखावट सिनेमेटोग्राफर की तरह है। सब कुछ आंखों के सामने घूमने लगता है। इस वजह से भी जिस दौर की बातें इस किताब में हैं उस दौर में हममें से कई ऐसी बातें सुनते सुनाते बड़े हुए हैं।
पहला चैप्टर बिहार में कांग्रेस के पतन का है। इस पतन को दर्शाने वाले जिन क़िस्सों का चयन किया गया है कांग्रेस उतना भी पढ़ ले तो साफ-साफ दिख जाएगा। जगन्नाथ मिश्र का उभार, इंदिरा गांधी को ख़ुश करने के लिए लाया गया काला प्रेस बिल, गांधी मैदान बेच देने की अफवाह और हर मौके पर नायक या गेम चेंजर बनने से चूक गए प्रेम चंद मिश्रा का किरदार और अनुभव। प्रेम चंद मिश्रा इस किताब में रागदरबारी के किसी किरदार की तरह कांग्रेसी पतन के गवाह रहे हैं।
भागलपुर का दंगा कांग्रेस के पतन की आखिरी मंजि़ल साबित होता है। संतोष सिंह ने उस समय भागलपुर में तैनात टाइम्स ऑफ इंडिया के संवाददाता के हवाले से जिस प्रसंग का जि़क्र किया है वो आज भी घट रहा है। मुजफ्फरनगर से लेकर दादरी तक में। बाबरी मस्जिद गिराकर राम मंदिर बनाने का दौर उफान पर था जब कांग्रेस के दो गुट के नेताओं की आपसी राजनीति की पृष्ठभूमि में दंगा होता है। भागवत झा आज़ाद को हटा कर सत्येंद्र नारायण सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया जाता है। मीडिया खबर छापता है कि एक मुस्लिम के होस्टल में कई हिन्दू लड़कों की हत्या हो गई है वो ख़बर झूठी निकली लेकिन भागलपुर जल गया। अगले दिन जिनके मारने की खबर छपी थी वो थाने में रो रहे थे कि मरे नहीं जि़ंदा हैं।
कई दिनों तक भागलपुर जलता रहा लेकिन मुख्यमंत्री सिन्हा वहां जाने से इंकार कर देते हैं। राजीव गांधी पटना आते हैं तब भी सिन्हा उनके साथ भागलपुर जाने से मना कर देते हैं। यहां तक कि जिस प्लेन से जाना था उसका पायलट भी नदारद पाया गया। गुस्से में राजीव गांधी खुद प्लेन उड़ा कर भागलपुर जाते हैं। संतोष की यह जानकारी दिलचस्प है कि बिहार में कांग्रेस को बर्बाद करने वाले जगन्नाथ मिश्रा ने एमएलसी का चुनाव लडऩे के लिए जनसंघ से पर्चा भरना चाहते थे। उनके भाई ललित मिश्रा ने रोक दिया था।
कांग्रेस के पतन का इतना संक्षिप्त इतिहास तो नहीं हो सकता लेकिन जिन घटनाओं का संतोष ने चयन किया है वो काफी हैं बताने के लिए कि क्या हो रहा था। इसी के साथ ही बिहार की राजनीति के अब तक के सबसे ईमानदार नेता कर्पूरी ठाकुर का प्रसंग छोटा होते हुए भी शानदार है।
कभी बिहार को सोचना चाहिए और ख़ासकर अपर कास्ट बिहार को कि इतने ईमानदार और बेहतरीन प्रशासक रहे कर्पूरी ठाकुर उनके नायक क्यों नहीं रहे। बिहार के विमर्श से कर्पूरी हमेशा ग़ायब कर दिए जाते हैं। वे कभी आदर्श नहीं बन पाते। अभी मैं लालू यादव के आगमन और उनके चतुर क़िस्सों के रूप में पढ़ रहा हूं। लोहा सिंह लालू के आरंभिक हीरो रहे हैं। लालू की चालाकी भरी कहानियां मज़ेेदार हैं। अच्छी किताब है। बिहारी जब अच्छी अंग्रेजी लिखता है और लिखने की शैली अच्छी होती है तो थोड़ा और अच्छा लगता है। अच्छी अंग्रेजी हम सबकी वो चाहत है जिसे हम गर्लफ्रेंड पाने से पहले पूरी कर लेना चाहते हैं।
(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)