रोजमर्रा के सामान की खपत घट रही है गांवों में

मसला देश में मंदी की साफ साफ आहट का तो है ही लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि मांग में गिरावट का केंद्र बिंदु ग्रामीण भारत में बताया जा रहा है
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देश में मंदी के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं। ऑटोमोबाइल क्षेत्र में गिरती मांग को लेकर बाज़ार की चिंता सभी के सामने है। इधर रोजमर्रा का सामान बनाने वाली कंपनियों का बाजार घट रहा है। उनके माल की मांग घट रही है। इन कंपनियों को बाजार की भाषा में एफएमसीजी (FMCG) कंपनियां कहते हैं। भले ही रोजमर्रा की जरूरतों का सामान बनाने वाला यह क्षेत्र कम दाम वाली चीजें ही बनाता हो लेकिन ये सामान बनता इतनी भारी मात्रा में है कि देश की अर्थव्यवस्था पर उसका भारी असर पड़ता है।

गौरतलब है कि देश के कुल घरेलू उत्पाद में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले क्षेत्रों में एफएमसीजी चौथा सबसे बड़ा क्षेत्र है। रही बात इस क्षेत्र की हालत पतली होते जाने के कारणों की, तो सबसे सनसनीखेज विश्लेषण यह है कि रोजमर्रा के सामान की खपत सबसे ज्यादा गांवों में घट रही है।

एफएमसीजी क्षेत्र की विकास दर कम होने का कारण यह माना जा रहा है कि गांव की माली हालत बिगड़ती जा रही है। ग्रामीणों की आमदनी घट रही है। इससे उनकी क्रय शक्ति घट रही है। मौजूदा हालात गांव की चिंताजनक स्थिति की ओर तो इशारा कर ही रहे हैं लेकिन यह चिंता गांव तक ही सीमित नहीं है। देश में उत्पाद की खपत घटने का मतलब है देश के सकल घरेलू उत्पाद का घटना। मंदी को अर्थव्यव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी भी माना जाता है।

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एफएमसीजी यानी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स के क्षेत्र में बनने वाले उत्पाद आमतौर पर कम दाम के होते हैं। लेकिन इनकी खपत भारी मात्रा में होती है। आमतौर पर रोजमर्रा के इस्तेमाल होने वाली खाने पीने की पैकेट बंद चीजें, प्लास्टिक, कांच के सामान जैसी फुटकर चीजें इस क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं। इस साल की पहली तिमाही में इस क्षेत्र के आंकड़ों ने चिंता में डाल दिया है। वैसे यह मागं घट तो पिछली तीन तिमाहियों से ही रही थी। लेकिन ये घटान कुछ तेजी से होता दिख रहा है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में एफएमसीजी सेक्टर की वृद्धि दर सिर्फ 10 फीसद रही। जबकि उससे पहले की तीन तिमाहियों में यह क्रम से 16.2, 15.7 और 13.4 फीसद थी। यानी जिस क्षेत्र की वृद्धि दर साल भर पहले 16.2 फीसद थी वह घटते घटते सिर्फ 10 फीसद रह गई है।

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एफएमसीजी क्षेत्र की कई दिग्गज कंपनियों की वॉल्यूम ग्रोथ में कमी दर्ज की गई है। इस क्षेत्र की बड़ी कम्पनी हिंदुस्तान यूनिलीवर के आंकड़ों को इस क्षेत्र के ग्राहकों की नब्ज समझने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं। इस तिमाही में हिंदुस्तान यूनिलीवर की वॉल्यूम ग्रोथ यानी उसके उत्पाद की असल मांग सिर्फ 5.5 फीसद ही बढ़ पाई। जबकि पिछले साल पहली तिमाही में यह वृद्धि 12 फीसद की हुई थी। इसी तरह डाबर इंडिया के उत्पादों की वॉल्यूम ग्रोथ इस तिमाही में 6 फीसद रही जो पिछले साल 21 फीसद थी। ब्रिटानिया पिछले साल की 13 फीसद ग्रोथ से 6 फीसद पर आ गया। इसी तरह कोल्गेट पल्मोलिव, इमामी, एशियन पेंट्स जैसी कई और बड़ी कंपनियों के उत्पादों की मांग का भी कमोबेश यही हाल रहा।

मसला देश में मंदी की साफ साफ आहट का तो है ही लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि मांग में गिरावट का केंद्र बिंदु ग्रामीण भारत में बताया जा रहा है। ग्रामीण भारत एफएमसीजी क्षेत्र का एक बड़ा उपभोक्ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक शहरों के मुकाबले गाँव में इन उत्पादों की खपत डेढ़ गुनी तेजी से होती थी। लेकिन एक दम से अब ग्रामीण भारत में मांग नीचे गिरी है। कई जगह यह दर शहरों से भी नीचे चली गई है। मांग का घटना खर्च करने की क्षमता का घटना होता है।


और यदि ग्रामीण भारत की खर्च करने की क्षमता घट रही है तो यह और भी चिंता की बात है, क्यूंकि यह वह तबका है जो पहले से ही किफायत से चलता है। बहुत जरुरत पड़ने पर ही खरीददारी करता है। अगर उन हालात में भी अब और कमी आ रही है तो यह खेती किसानी और ग्रामीण रोजगार की स्थिति को समझने के लिए काफी है। हालांकि एफएमसीजी क्षेत्र की कम्पनियां अभी भी उम्मीद बांधे हुए हैं। उन्हें इस साल के मानसून से काफी उम्मीदें हैं। जिससे कृषि में कुछ सुधार आये और किसानों और मजदूरों की जेब में पैसा पहुंचे।

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लेकिन इस बार के मानसून की बेतरतीब चाल देखते हुए ऐसा होता फिलहाल दिख नहीं रहा है। इस साल मानसून असमान तरीके से गुजरा है। कहीं बाढ़ की तबाही है तो कहीं सूखे पड़े बाँध और तालाब किसानों को संकट में डाले हुए हैं। दोनों ही सूरतों में फसलों को बड़ा नुकसान होना तय है। इसी के साथ रोजगार के मामले में जब पूरा देश ही झूझता दिख रहा है तो ग्रामीण रोजगार के लिए क्या कुछ किया जा सकता है यह एक बड़ा सवाल है।

मंदी के बढ़ते लक्षणों के चलते कई उद्योग धंधों के बंद होने की खबरें आये दिन सुनने को मिलने लगी हैं। जिससे कई कामगार और मजदूर बेरोजगार हो सकते हैं। यह सभी चीजें बाजार में मांग को और घटा देंगी। फिलहाल इन हालातों के मद्देनज़र आर्थिक मंदी की आशंका बढती दिख रही है। और इसका असर सबसे पहले ग्रामीण भारत में दिखना शुरू हो गया है। 

नोट- सुविज्ञा जैन प्रबंधन प्रौद्योगिकी की विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रनोर हैं।, ये उनके निजी विचार हैं।

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