पिछले तीन साल में आयकर विभाग ने 1,115 शेल कंपनियों का पता लगाया है जो 22,000 लोगों को फायदा पहुंचा रही थीं। तीन साल में मात्र 1,115 शेल कंपनियां? ये शेल कंपनियो को लेकर चौथी संख्या है। तीन लाख, दो लाख, 38000, 20,000 और 1,115 शेल कंपनियां? किस पर भरोसा करें, इन मसलों की नियमित रिपोर्टिंग करने वाले बिजनेस अख़बारों पर या प्रधानमंत्री पर?
शेल कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का स्वागत ही होना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी इन कंपनियों को बहस के दायरे में लाना चाहते हैं। कई अख़बारों की रिपोर्ट पढ़ने के बाद उनका सार पेश कर रहा हूं। आप भी अपनी तरफ से कुछ जोड़ सकते हैं। पाठकों के मन में दो कैटगरी को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए। एक नॉन आपरेटिव कंपनी और दूसरा शेल कंपनी। क्योंकि कई बार नॉन आपरेटिव कंपनी की संख्या को शेल कंपनी की संख्या बता दी जाती है और कई बार शेल कंपनी की संख्या इससे अलग रूप में पेश की जाती है जो प्रधानमंत्री के दावे से बहुत ही कम है। मैं दोनों के अंतर को साफ साफ नहीं समझता हूं।
आपको याद होगा कि 2012 में बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गडकरी की पूर्ति कंपनी के कई शेल कंपनियों का मामला सामने आया था। जिससे निपटने के लिए बीजेपी ने पहली बार आंतरिक लोकपाल की व्यवस्था की, उसके बाद लोकपाल लाना भूल गई। एस गुरुमूर्ति ने गडकरी को क्लिन चिट दे दिया। 2012- 14 तक यूपीए सरकार थी जो इस केस को मुकाम तक नहीं पहुंचा सकी। अंतिम नतीजा शायद कुछ नहीं निकला। इसी दौरान यह सब सामने आया था कि ड्राईवर पांच पांच शेल कंपनियों का निदेशक है।
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14 अगस्त के बिजनेस स्टैंडर्ड में कहा गया है कि आयकर विभाग ने काग़ज़ पर चलने वाली 20,000 शेल कंपनियों का पता लगाया है। इन कंपनियों पर 40,000 करोड़ की आयकर देनदारी बनती है। कोलकाता में शेल कंपनियों का कारोबार हुआ करता था जो अब मर चुका है। 2012-13 में यहां 16,000 शेल कंपनियां रजिस्टर हुई थीं। 2013-14 में मात्र 3000 शेल कंपनियां रजिस्टर हुईं।
मान लीजिए किसी कंपनी के पास एक करोड़ रुपये हैं। ब्लैक मनी है। इस पैसे को खाते पर लाने के लिए कंपनी का मालिक एक लाख रुपये एंट्री आपरेटर को देता है। जो इसे 10,000 के शेयर में बांट देता है। एक शेयर की कीमत 10 रुपये होती है। एक एक शेयर को एक हज़ार रुपये की कीमत पर बेच दिया जाता है। ख़रीदने वाला शेल कंपनी का निदेशक होता है। इससे एक ही झटके में कंपनी की वैल्यू एक लाख से बढ़कर एक करोड़ हो जाता है। फिर फर्ज़ी कंपनियों के नेटवर्क के ज़रिये यही पैसा असली मालिक के पास पहुंच जाता है। यानी जिसने अपने एक करोड़ रुपये को खाते पर लाने के लिए ये सब किया है। इसके बदले में एंट्री आपरेटर कुछ शुल्क लेता है। इन कंपनियों के निदेशक कौन होते हैं? दिहाड़ी मज़दूर। चपरासी, चाय विक्रेता।
कोलकाता की मर्केंटाइल बिल्गिंड में कई शेल कंपनियां पंजीकृत हैं। एक जर्जर इमारत में 600 कंपनियां दर्ज हैं। मात्र 125 पेशेवर काम करते हैं। गोयल साहब का कहना है कि कंपनी एक्ट या आयकर कानून में शेल कंपनी शब्द नहीं है। इसे नेताओं और नौकरशाहों ने गढ़ा है। तथाकथित शेल कंपनी निष्क्रिय कंपनी है। बिजनेस में नहीं हैं। अगर वे लिक्विडेशन यानी दिवालिया होने का फैसला करेंगी तो कई प्रकार की महंगी कानूनी प्रक्रिया से गुज़रना होगा। एक समय कोलकाता अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का केंद्र था मगर 2012 के बाद से शेल कंपनी बनाना मुश्किल काम हो गया। कंपनी एक्ट में नया सेक्शन 52(2)(Viib) के अनुसार अगर कोई कंपनी किसी शेयर को प्रीमियम वैल्यू पर जारी करती है तो उसे आय समझा जाएगा और उस पर टैक्स लगेगा। इसलिए 2012 के बाद से कोलकाता में ना के बराबर शेल कंपनियां दर्ज हुई हैं।
9 अगस्त के बिजनेस स्टैंडर्ड में ख़बर है कि संदिग्ध 331 शेल कंपनियों पर कार्रवाई की है। कई अख़बारों में यह ख़बर प्रमुखता से छपी है। इन कंपनियों में 9000 करोड़ का निवेश किए जाने का दावा किया गया था। इनमें से पांच ऐसी कंपनियां हैं जिनमें पूंजी निवेश 500 करोड़ से अधिक का है। इन कंपनियों ने शेल कंपनी होने से इंकार किया है। सेबी के सूत्र बताते हैं कि इनमें से कोई तीन दर्जन कंपनियां शेल कंपनी की परिभाषा में नहीं आती हैं। कई कंपनियों ने सरकार के सामने अपना पक्ष भी रखा है। अंतिम फैसला क्या हुआ है, नहीं मालूम।
इस रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले तीन साल में आयकर विभाग ने 1,115 शेल कंपनियों का पता लगाया है जो 22,000 लोगों को फायदा पहुंचा रही थीं। तीन साल में मात्र 1,115 शेल कंपनियां? ये शेल कंपनियो को लेकर चौथी संख्या है। तीन लाख, दो लाख, 38000, 20,000 और 1,115 शेल कंपनियां? किस पर भरोसा करें, इन मसलों की नियमित रिपोर्टिंग करने वाले बिजनेस अख़बारों पर या प्रधानमंत्री पर? क्या कई एजेंसिया इनका पता लगा रही हैं?
रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में आयकर विभाग ने 47 लोगों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं। रिपोर्ना में नाम नहीं हैं। SFIO की रिपोर्ट के अनुसार कंपनी मामलों के मंत्रालय ने 162, 618 कंपनियों को Registrar of Companies से हटा दिया है। क्या प्रधानमंत्री इस संख्या की बात कर रहे हैं? हो सकता है। लेकिन अख़बार ने 162,618 कंपनियों को शेल कंपनी नहीं लिखा है।
1 जुलाई 2017 के बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रधानमंत्री का बयान छपा है कि 1 लाख कंपनियों का रजिस्ट्रेशन कैंसल हो गया है। क्या ये सभी शेल कंपनियां हैं? इसकी अगली पंक्ति में लिखा है कि 37,000 शेल कंपनियों की पहचान हुई है। एक महीने में 37000 से तीन लाख शेल कंपनियां हो गईं? इसी दिन हिन्दू अख़बार के विकास धूत ने लिखा है कि दो लाख कंपनियों की पहचान की जा रही है जिनका रजिस्ट्रेशन रद्द होगा। विकास भी इन्हें शेल कंपनी नहीं कहते हैं। वे भी अपनी रिपोर्ट में अलग से 38000 शेल कंपनी लिखते हैं। प्रधानमंत्री ने चार्टर्ड अकाउंटेंट की सभा में कहा था कि एक झटके में कलम से इन एक लाख कंपनियों को बंद कर दिया गया। वाकई ?
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प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त के भाषण में कहा है कि 3 लाख शेल कंपनियां हैं। दो लाख शेल कंपनियों को बंद कर दिया गया है। अब इसी लेख में शेल कंपनियों की संख्या एक जगह 20,000 है और एक जगह 38000 है। क्या हम उन दो लाख कंपनियों का नाम पता जान सकते हैं? कौन लोग चला रहे थे, किन किन के पैसे लगे थे, उनके नाम तो सामने आए नहीं तो फिर ये कौन सी कार्रवाई है जिसका ढिंढोरा पीटा जा रहा है, इसलिए कि पत्रकार से लेकर आम जनता तक इन काग़ज़ी कंपनियों का खेल नहीं समझते हैं। एक शेल कंपनी को पकड़ने और बंद करने की प्रक्रिया में कितना समय लगता है? अगर दो लाख शेल कंपनियां बंद हुई हैं, ये कंपनियां ब्लैक को व्हाइट कर रही थीं तो क्या प्रधानमंत्री बता सकते हैं कि कितने लाख लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। ये कैसे हो सकता है कि लाखों कंपनियां बंद हो जाएं और इन्हें चलाने वाले का नाम ही सामने न आए। प्रधानमंत्री आधी बात बता रहे हैं?
अप्रैल 2017 में Moneylife ने लिखा है कि तीन लाख नॉन आपरेटिव कंपनियां बंद होने वाली हैं। मनीलाइफ पोर्टल भी नॉन आपरेटिव और शेल कंपनी में फर्क करता है। इसके अनुसार कंपनी रजिस्ट्रार ने ढाई लाख नॉन आपरेटिव कंपनियों को नोटिस जारी कर 15 दिनों के भीतर सफाई मांगी है। सबसे अधिक मुंबई की 71,530 नॉन आपरेटिव कंपनियों को नोटिस गया है। भारत में पंजीकृत कंपनियों का 30 प्रतिशत नॉन आपरेटिव है। इतनी बड़ी संख्या में कंपनियां रजिस्टर होती रहीं और किसी ने देखा तक नहीं। कितने पैसे खाए गए होंगे। प्रधानमंत्री का यह सवाल जायज़ है।
फरवरी 2017 में मनीकंट्रोल न्यूज़ के तरूण शर्मा ने लिखा है कि कंपनी रजिस्ट्रार दो लाख से अधिक नॉन आपरेटिव कंपनियों की छंटाई की तैयारी कर रहे हैं। ये कंपनियां कंपनी एक्ट का पालन नहीं कर रही हैं। अगले दो साल के लिए इन्हें डॉरमेंट कैटगरी में डाल दिया जाएगा। मनी कंट्रोल को सूत्रों ने कहा है। बात बंद करने की हो रही है या निष्क्रिय कैटगरी में डालने की हो रही है? ये वो कंपनियां हैं जो तीन साल से ज्यादा समय से सालाना हिसाब जमा नहीं कराती हैं। कहीं प्रधानमंत्री नॉन आपरेटिव और शेल कंपनी की संख्या को जोड़कर तो नहीं बता रहे हैं?
पनामा पेपर लीक में 2 लाख से अधिक कंपनियां शामिल थी। शेल कंपनियां दुनिया भर की बीमारी है। प्रधानमंत्री से कौन पूछेगा कि दो लाख शेल कंपनियों में से ऐसी कोई कंपनी मिली है जिसका संबंध पनामा पेपर मामले से हो? पनामा पेपर्स का मामला तो शेल कंपनियों का ही है, उस मामले में भारत में क्या प्रगति हुई है? क्या बताने का प्रयास करेंगे क्योंकि इनमें से कई नाम उनके करीबी लोगों के भी हैं।
कई रिपोर्ट ऐसी मिली हैं जिनसे पता चलता है कि कहीं सी बी आई तो कहीं ई डी सैंकड़ों की शेल कंपनियों पर छापे मार रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय में एक टास्क फोर्स भी इस पर काम कर रहा है। जगह यह भी खबर मिली कि दो दर्जन शेल कंपनियां फिर से ट्रेडिंग शुरू करने वाली हैं। जैसे जैसे इन सवालों पर स्पष्टता होगी, इस लेख को अपडेट करता रहूंगा।
(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एग्जीक्यूटिव हैं ये उनके निजी विचार हैं)