शॉपिंग मॉल से कम नहीं होते पातालकोट के ‘मंडई’ मेले

Patalkot

कानफोड़ू पटाखों और शोर शराबे से बचने के लिए हर साल कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेता हूँ। इस साल पातालकोट के घने जंगलों में दीपोत्सव मनाने के लिए आ गया। ‘संवाद’ लिखते हुए पहाड़ी के किनारे एक ऊंचे पहाड़ी छोर पर अपने छोटे से गज़ेट पर उंगलियाँ चलाकर अपनी बात आप सब तक पहुँचा रहा हूँ।

पातालकोट एक विहंगम घाटी है जो करीब 3000 लोगों की 12 गाँवों की बस्ती को समेटे हुयी है। पांच दिनों तक चलने वाले दीपोत्सव का महत्व वनवासियों के बीच कुछ खास ही है। यहाँ न तो पटाखों का शोर न ही फेफ़ड़ों को निचोड़ता जहरीला धुंआ। जो है तो वो सिर्फ आपसी सदभाव, त्यौहार पर मिल बाँटकर साझा होती खुशियाँ, नाच-गाने और मंडई जैसे छोटे-छोटे मेले। दीपावली की रात रंगबिरंगी वेशभूषाओं में सजे वनवासी दीप जलाकर नाच गाना करते हैं और फिर अगले दिन गोवर्धन की पूजा पारंपरिक तौर तरीकों से करते हैं। गोवर्धन की पूजा संपन्न होने के साथ ही अगले 10 दिनों तक आस-पास के गाँवों में मंडई के आयोजन किए जाते हैं। हर दिन एक गाँव तय किया जाता है जहाँ हाट बाज़ार लगता है, झूले लगते हैं, पारंपरिक नाच-गाना होता है।

बीते दिन पातालकोट के लोटिया गाँव के करीब एक मंडई में मैं भी शामिल हुआ। हम शहरियों के शॉपिंग मॉल्स की तरह मंडई भी एक शॉपिंग मॉल ही होती है। चाहे कपड़ों की बात हो या मनिहारी का सामान, सब्जियाँ हो या खेल खिलौने शहरों के शॉपिंग मॉल्स में एक ही छत के नीचे सभी सामान मिल जाते हैं, मंडई भी किसी शॉपिंग मॉल से कम नहीं, यहाँ भी कपड़े, खेल खिलौने, आम जरूरतों के सामान से लेकर सब्जियाँ और मिठाईयाँ, सब कुछ मिलता है। आप अपनी पसंद से सब्जियों को छांटकर खरीद सकते हैं, भरपूर मोल भाव किया जा सकता है और तो और इस देशी मॉल में आपके पारिवारिक मनोरंजन के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है।

भड़कीले संगीत, शोर शराबे और कमरतोड़ शहरी ट्राफिक से दूर, खुले आसमान के नीचे, पारंपरिक वेशभूषाओं से सजे वनवासी नौजवान युवक युवतियाँ, उनका रहन सहन देखना आंखों को बड़ी राहत देता है। लोग 15-15 किमी दूर से पैदल चलकर मंडई तक आते हैं। मंडई सिर्फ मौज-मस्ती, नाच-गाना और खरीदी बिक्री की जगह नहीं होती, यह एक पूजा स्थल भी होता है। गोवर्धन पूजा के बाद आयोजन स्थल पर एक मंडा तैयार किया जाता है।

मंडा एक अस्थाई मंदिर होता है जो भगवान गोवर्धन को स्थापित करने के लिए तैयार किया जाता है। मंडई वाले दिन सुबह पहले भगवान की पूजा की जाती है और फिर दिन भर के कार्यक्रम के सफल होने के लिए पूजा स्थल पर दीप जलाए जाते हैं। इस सारे कार्यक्रम का आयोजन कोई भी बाहरी एजेंसी नहीं करती है बल्कि गाँव के लोग ही 15 दिनों से पहले ही इस तैयारी में जुट जाते हैं। यहाँ कोई स्कैनिंग, कोई बाउंसर या कोई छोटे छोटे कपड़ों के टेंट में बनी दुकानों पर थेप्ट डिवाइस नहीं होते हैं, यहाँ सिर्फ़ सादगी, ईमानदारी और भरोसा होता है।

व्यवहार और व्यापार की दृष्टि से सारा आयोजन बहुत ही खास होता है। कपड़ों को खरीदने से पहले पहनकर देखने के कोई ट्रायल रूम नहीं होता है। आसपास किसी के घर में जाकर लोग ट्रायल ले लेते हैं। ट्रायल रूम खुले आसमान के नीचे कपड़ों की बनी एक चौखटी दीवार भी होती है। लोग खूब खरीददारी करते हैं और फिर झूले झूलकर मंडई का पूरा आनंद लेते हैं। शाम घर लौटने से पहले मिठाई और नमकीन की खरीददारी भी की जाती है। दूर पहाड़ों पर एक कतार में कंधे पर सामानों को टांगे वनवासियों को घर लौटते देखना मन मोह लेता है। अब एक दो दिनों में वापस अहमदाबाद चल दूंगा। ट्राफिक, शोर-शराबा, शॉपिंग मॉल्स, सिक्यूरिटी गार्ड्स, वातानुकूलित बाज़ार फिर दिखेगा, बड़े शहरों की माया होगी, लेकिन पातालकोट वाला सुकून? बिल्कुल नहीं..

(लेखक गाँव कनेक्शन के कन्सल्टिंग एडिटर हैं।)

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