नेहरू ने सेकुलरवाद सुलाया, मोदी ने जगा दिया

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पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पुण्यतिथि पर पढ़िए गांव कनेक्शन के प्रधान संपादक डॉ. एसबी मिश्र का लेख। ये लेख अप्रैल 2017 में मूल रुप से प्रकाशित किया गया था।

हिन्दू मुस्लिम तनाव की जड़ें और अलग मुस्लिम पहचान वस्तुतः भारत विभाजन और जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद में निहित है जिसके अनुसार भारत में दो राष्ट्र हैं, एक हिंदू राष्ट्र और दूसरा मुस्लिम राष्ट्र। जवाहर लाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना ने मिलकर भारत की धरती को हिंदू मुस्लिम आबादी के अनुपात में बांट दिया था। अविभाजित भारत की कुल आबादी थी 36 करोड़ जिसमें 28 करोड़ हिंदू और 8 करोड़ मुसलमान थे। भारत को 12.6 लाख वर्गमील और पाकिस्तान को 3.6 लाख वर्गमील जमीन मिली थी।

आबादी और क्षेत्रफल के आंकड़ों से लगता है जिन्ना और अंग्रेजों ने पूरी मुस्लिम आबादी के लिए पाकिस्तान और पूरी हिंदू आबादी के लिए हिन्दुस्तान सोचा होगा। इसी आधार पर अंग्रेज सर्वेयर रेडक्लिफ ने दोनों देशों की सीमा रेखा बना दी। बंटवारे को आखिरी अंजाम तक पहुंचाने के लिए विनायक दामोदर सावरकर और डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जैसे लोगों ने आबादी की अदला-बदली की बात कही थी।

ऐसा हो पाता तो हमेशा के लिए समस्या हल हो जाती। भारत के लोग सेकुलर संविधान के अनुसार जीवन बिताते और पाकिस्तान के लोग शरिया कानून के हिसाब से जीवन बिताते। डॉक्टर अम्बेडकर ने सेकुलर संविधान बनाया और आशा थी कि भारत में बचे हुए हिन्दू और मुसलमान इस संविधान का पालन करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

जब मुहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के लिए अलग मुल्क की मांग कर रहे थे तो गांधी जी किसी कीमत पर बंटवारा नहीं चाहते थे। नेहरू, जिन्ना और माउन्टबेटन के बीच समझौता हुआ मजहबी बंटवारे का। इसके परिणामस्वरूप करीब एक लाख लोग मारे गए और दस से बारह लाख विस्थापित हुए।

महात्मा गांधी कहते रहे कि भारत का बंटवारा मेरी छाती पर होगा। यदि महात्मा गांधी की चलती और बंटवारा न होता तो शायद इतना खून खराबा न होता। यह इसलिए उल्लेखनीय है कि नेहरू सेकुलरवादी कहे जाते हैं और उन्होंने मजहबी बंटवारा किया लेकिन महात्मा गांधी रामराज्य में विश्वास करते थे और बंटवारे के सख्त खिलाफ थे।

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भारत का उच्चतम न्यायालय बार-बार सरकारों को याद दिलाता रहा लेकिन सेकुलर सरकारों ने लागू नहीं किया। आजाद भारत में मोदी ने पहली बार कानून आयोग को समान नागरिक संहिता लागू करने की सम्भावना तलाशने को कहा है। नेहरू चाहते तो 1956 में सेकुलर भारतीय कोड बिल ला सकते थे लेकिन उन्होंने सेकुलरवाद को सुला दिया और हिंदू कोड बिल बना लिया। अब मोदी शासन में सेकुलरवाद ने अंगड़ाई ली है। इस बदलाव का श्रेय मुख्यतः मुस्लिम महिलाओं को जाता है जिन्होंने सड़क से अदालत तक अन्याय के खिलाफ जंग छेड़ी।

जंग केवल तीन तलाक तक नहीं है, पिटारा खुल रहा है। यदि मुस्लिम महिलाओं ने अपनी जंग जारी रखी तो चार शादियां, हलाला, सम्पत्ति में हिस्सा, परिवार नियोजन, पर्दा, टीकाकरण जैसे सैकड़ों विषयों में हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं में भेद नहीं होगा। इससे किसी की इबादत में कोई खलल भी नहीं पड़ेगा। सेकुलर देश में पर्सनल लॉ हो ही कैसे सकता है। जब नेहरू ने मनुस्मृति को नामंजूर किया था तो शरिया कानून पर भी सोचना चाहिए था। भारत में सेकुलर व्यवस्था तो सनातन है।

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पता नहीं नेहरू को किस आधार पर सेकुलर कहा जाता है। जब 1957 में दूसरा आम चुनाव हुआ और केरल में नम्बूदरीपाद की अगुवाई में कम्युनिस्ट की सरकार बनी तो नेहरू ने मुस्लिम लीग का सहारा लेकर पत्तम थानू पिल्लई की अगुवाई में कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका। उसी मुस्लिम लीग का साथ जिसने देश का मजहबी बंटवारा कराया था। यह कैसी परिभाषा थी सेकुलरवाद की।

पता नहीं नेहरू को किस आधार पर सेकुलर कहा जाता है। जब 1957 में दूसरा आम चुनाव हुआ और केरल में नम्बूदरीपाद की अगुवाई में कम्युनिस्ट की सरकार बनी तो नेहरू ने मुस्लिम लीग का सहारा लेकर पत्तम थानू पिल्लई की अगुवाई में कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका। उसी मुस्लिम लीग का साथ जिसने देश का मजहबी बंटवारा कराया था। यह कैसी परिभाषा थी सेकुलरवाद की।

नेहरू के कारण इतने साल तक मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और हलाला की यातना झेलनी पड़ी। संविधान और उच्चतम न्यायालय समान नागरिक संहिता का समर्थन करते रहे, बंटवारे के बाद भी एक देश में दो विधान चलते रहे। समय इंतजार करता रहा मोदी हुकूमत का और अब एक बार फिर समय आया है जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद को सदा के लिए भुलाने का।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शासन व्यवस्था एक अच्छे सेकुलरवाद का उदाहरण पेश कर रही है जिसमें धर्म विशेष के लिए काम न करके सब का साथ सब का विकास, न किसी से भेदभाव और न किसी का तुष्टिकरण, यही तो है ईमानदार सेकुलरवाद। अब जो भारत बचा है उसमें सेकुलरवाद पर भाषण देने के बजाय और उसका बखान करने की जगह जीवन में सर्वधर्म समभाव को उतारा जाए, इसी से भारत के श्रेष्ठ सनातन मूल्यों की रक्षा होगी।

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