वृक्षारोपण का समय आ रहा है, गाँव गया था। जमीन क्षारीय है और तीन-चार फिट की गहराई पर कंकड़ की चादर है इसलिए गड्ढे बनाकर मिट्टी कंकड हटाने होंगे और उसकी जगह उपजाऊ मिट्टी भरनी होगी। सोचा तालाबों से मिट्टी मंगाकर भर दी जाए तो काम बन जाएगा। ट्रैक्टर वाले को बुलाया और रेट पूछा तो उसने कहा पुलिस मना करती है मिट्टी खोदने के लिए। लेकिन सरकार तो मनरेगा के अन्तर्गत तालाबों को खुदवाती है मैंने सोचा। फिर भी मिट्टी खुदाई रोकने के लिए पुलिस का अपना कुछ तर्क होगा। मुझे एक कहानी याद आई जो बहुत पहले मेरे सहयोगी प्रोफेसर गुप्ता ने नैनीताल में सुनाई थी।
कहते हैं एक कर्मचारी बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करता था। उसकी आए दिन शिकायतें आतीं और तबादले करने पड़ते। जब अधिकारी तंग आ गए तो उसकी पोस्टिंग समुद्र किनारे कर दी, यह सोचकर कि यहां कोई गुंजाइश नहीं है रिश्वत की। वह कर्मचारी भी थोड़ा चिन्तित था तभी उसे एक तरकीब सूझी। दूसरे दिन सवेरे जैसे ही मछुवारे नाव और जाल लेकर आए उसने कहा कहां जा रहे है, मछली पकड़ने? नहीं जा सकते क्योंकि वहां लहरें गिनी जा रहीं हैं, तुम उन्हें डिस्टर्ब कर दोगे। बेचारे मछुआरे, कर्मचारी की तरकीब काम कर गई।
हम आए दिन देखते हैं कि चौराहे पर ट्रक रुकती है, ड्राइवर की सीट के बगल में पुलिस का आदमी खड़ा होता है, कुछ बात करता है और ट्रक आगे बढ़ जाती है। ना तो उसके कागजों की जांच और न लदे हुए सामान की। आप ड्राइवरों से बात करें तो रोचक अनुभव सुनने को मिलते हैं। नो इंट्री में इंट्री और इंट्री में नो इंट्री यह लहरें गिनने जैसा ही तो है। तमाम ट्रकें गिट्टी, मौरंग और बालू से लदी हुई दिन-रात चलती हैं और सुनने में भी आता है कि अवैध खनन पर रोक लगी है। यहां समुद्र किनारे डंडा पटकता हुए एक सिपाही नहीं बल्कि पूरा तंत्र ही लहरें गिन रहा है।
आप ने अपनी टूटी दीवार की मरम्मत की शुरुआत की नहीं कि एलडीए के आदमी सूंघते हुए आ जाएंगे। सड़क किनारे पटरी दुकानदारों के पास हर शाम डंडा फटकाते हुए सिपाही दिखाई देंगे, शहर में सैकड़ों की संख्या में गाएं और भैसें घूमती रहती हैं, कूड़ा-कर्कट के ढेर सड़क किनारे लगे हैं और स्टेशनों पर लोग मुंह से गन्दी हवा निकालते रहते हैं यह सब पुलिस को दिखाई नहीं देता। अपनी टूटी फाटी गृहस्थी का सामान गाँव ले जा रहे हैं पुलिस को शिकार दिखता है।
रोज़मर्रा की जिन्दगी में अदालत का पेशकार पेशी के लिए नाम पुकारता है, अस्पताल में वार्ड ब्वाय पर्चा क्रम से मरीजों के नाम पुकारता है, लेखपाल किसानों के मुआवजे की चेकों की गड्डी लिए घूमता है, अधिकारी का चपरासी आप को अधिकारी से मिलाता है लेकिन इन सभी को हैसियत के हिसाब से सुविधा शुल्क चाहिए, नहीं तो लहरें गिनी जाएंगी। गाँवों में किसानों को लोहिया आवास, विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन और जमीन का पट्टा कराने में रिश्वत के बगैर काम नहीं चलता। गाँव में पतरावल यानी पानी पटवारी आता है नहर से सिंचाई क्षेत्र लिखने और बिल देने के लिए। बिल कम कराने में कम की गई राशि का आधा पतरावल नकद ले लेता है। अब तो सिंचाई माफ़ है।
काम कराने के लिए भ्रष्टाचारियों ने रेट निर्धारित किए हैं। लोहिया आवास के लिए 20 हजार की रिश्वत निर्धारित है और भूमिहीनों को पट्टा के लिए भी प्रति एकड़ एक लाख की रिश्वत। आप को मुआवजा या एरियर मिलना है तो 10 प्रतिशत पहले नकद बाबू को देना होता है। तमाम कानूनों के बावजूद पेंशन, ग्रेच्युटी और फंड का पैसा बिना रिश्वत के नहीं मिलता। यदि आप एक स्कूल खोलते हैं तो उसकी मान्यता लेने, अनुदान सूची में नाम डलवाने, परीक्षा केन्द्र बनवाने से लेकर प्रत्येक कदम पर रिश्वत देनी पड़ती है। रिश्वत न देने पर दसों साल इन्तजार करना होगा। सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का नियुक्ति पत्र, तबादला, प्रमोशन और एरियर प्राप्ति में रिश्वत के बिना काम नहीं चलता लेकिन आप उसे प्रमाणित नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है ‘‘न खाएंगे न खाने देंगे।” खाएंगे नहीं इस पर भरोसा किया जा सकता है लेकिन खाने नहीं देंगे इस पर सन्देह है। कौन बताए कि रिश्वत लेने वाले तो बालू से तेल निकाल लेते हैं।