संजय कुमार श्रीवास्तव
लखनऊ। देश की राजधानी नई दिल्ली के संसद मार्ग पर 20 नवंबर और 21 नवंबर को देश के किसानों का एक हुजूम उमड़ा। इनमें कुछ सही में किसान थे, कुछ उनके हक के लिए लड़ने वाले जमीनी नेता थे, तो कुछ अपने लिए राजनीतिक प्लेटफार्म ढूंढ़ने वाले वाले देश के जाने माने बड़े चेहरे।
‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति’ के बैनर तले 19 राज्यों के दस हजार किलोमीटर की किसान मुक्ति यात्रा पूरी करने के बाद 20 नवंबर को दिल्ली में किसान मुक्ति संसद शुरू हुई, जिसमें लाखों किसानों ने हिस्सा लिया।
देशभर से जुटे 187 किसान संगठनों ने संपूर्ण कर्जमाफी और फसल के लाभकारी डेढ़ गुना मूल्य की मांग पर आम सहमति जताई, यह तय पाया गया कि अगर ये मांगें नहीं मानी गईं, तो वर्ष-2019 के चुनाव में नेता गाँवों में नहीं घुस पाएंगे।
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सवाल यह उठता है कि अगर किसान संगठनों की मांग को स्वीकार करते हुए देश के सभी किसानों को कर्ज़ मुक्त कर दिया जाए तो क्या किसान की समस्या खत्म हो जाएगी। बेहतर होगा कि कर्जमाफी की जगह उनकी समस्याओं पर काम किया जाए। जहां पर पानी की समस्या हो वहां किसानों को जागरूक करने के साथ सरकारी मदद से बारिश के पानी को स्टोर करने की व्यवस्था की जाए। ढेर सारा पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं, पुराने कुएं व तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए जहां कम खर्च में भी काम हो जाएगा। खेती की लागत को कम करने के लिए काम किया जाए। किसानों को अधिक लाभ के लिए फसल में पैदा हुए अनाज को उत्पाद बनाकर बेचा जाए।
अब अगर फसल की लाभकारी डेढ़ गुना मूल्य की बात करें, तो मान लीजिए आज अगर इस मांग को मान लिया जाए तो देश में आम जनता में हाहाकार मच जाएगा। क्योंकि जैसे आज गेहूं गाँव में 14-15 रुपए प्रति किलो बिकता है और आटा तकरीबन 25 रुपए में बिकता है।
ये आटे के दाम आटा चक्की के हैं, ब्रांडेड के दाम तो और अधिक। मांगें मान लेने पर गेहूं 22-23 रुपए में बिकेगा और आटा 35 रूपए में। आज जब आटे का दाम 25 रुपए हैं, तो देश में महंगाई महंगाई का हल्ला मच रहा है, जब आटा 35 रुपए में बिकेगा तब क्या होगा? यह एक अनाज का उदाहरण है। इसको अगर दूर तक सोचेंगे तो पता चलेगा कि इसका असर कहां तक पहुंचेगा।
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किसानों का बड़ा सा हिस्सा बिचौलिए और कालाबाजारी करने वाले खा जाते हैं, जिसे उन्हें दिलाए जाने की जरूरत पहले है। इससे किसान की आमदनी बढ़ेगी और कालाबाजारी पर अंकुश लगेगा।
हां, इस आंदोलन का जो सबसे अच्छा मुद्दा है महिला किसान का मुद्दा, अगर संगठन इस मांग को पूरा करने में कामयाब हो जाएंगे, तो पहचान के साथ ढेर सारी समस्याएं भी खत्म हो जाएंगी।
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भारतीय जनगणना-2011 के मुताबिक भारत में छह करोड़ से ज़्यादा महिलाएं खेती के व्यवसाय से जुड़ी हैं। महिलाओं को उनका हक देने के लिए सरकार भी कोशिश कर रही है। इसलिए पहली बार देश में 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस मनाया गया।
एक और बात इस किसान आंदोलन में कितने किसान नेता भुखमरी के शिकार हैं। सवाल यह उठेगा कि क्या किसान नेता का गरीब होना जरूरी है, नहीं, पर भूख का दर्द जिसने झेला होगा, वही किसानों का दर्द भी ज्यादा करीब से जानेगा।
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