बरसात की आंख-मिचौली, हवाओं का झोंका, ओलों से और जंगली जानवरों का हमला झेलती हुई रबी की फसल कटने को है। अच्छी बात यह है कि रबी की फसल आजकल खलिहान में अधिक दिनों तक नहीं रहती और ट्रैक्टर या हारवेस्टर से जल्दी ही तैयार हो जाती है। फिर सरकार खरीदती है और सरकारी गोदामों में जाकर ये सड़ती है और शराब बनने को तैयार होती है। इन सब के साथ ही चलता रहता है चूहों का आक्रमण।
इस तरह किसान की पैदावार का एक बड़ा हिस्सा खेतों में और उससे भी अधिक फसल कटने के बाद घरों में बर्बाद हो जाती है। खेतों में खड़ी फसल को नीलगाय और छुट्टा जानवर नुकसान पहुंचा चुके अब चूहों की बारी है लेकिन चूहा तो गणेशजी की सवारी है अभियान चलाकर मार नहीं सकते, कोहराम मच जाएगा। नीलगायों को बधिया करने की बात चलती है लेकिन चूहों के साथ वह भी सम्भव नहीं। चूहों को खेतों में फिर घरों में भोजन उपलब्ध कराना भी सम्भव नहीं।
कहते हैं राजस्थान के कर्णी मन्दिर में 20,000 चूहे हैं जिन्हें कोई मार नहीं सकता है, उनकी पूजा होती है। वहां जाने वालों के पैरों पर आराम से टहलते रहते हैं उन्हें कोई डर नहीं। उनकी पूजा क्यों न हो उन्हें गणेशजी का वाहन जो माना जाता है।
ऐसा नहीं कि भारत में ही चूहों की समस्या है। न्यूयॉर्क, लंदन और पेरिस में भी चूहों की संख्या आदमियों की संख्या से कई गुना है।
हमारी समस्या यह है कि चूहों की संख्या गरीबों के घरों में अधिक होती है जहां भुखमरी और कुपोषण है। उनके घर कच्चे होते हैं और उनमें बिल बनाकर घुसना आसान होता है। कहते हैं देश में मूसहर जाति के कुछ लोग चूहों को खाते भले ही है लेकिन आमतौर से चूहों को योजना बनाकर मारा नहीं जाता। मुझे याद है सत्तर के दशक में बंदरों का निर्यात किस तरह बंद कराया गया था।
जीव श्रृंखला में चूहों की आबादी घटाने वाले जीव हैं सांप और बिल्ली जो घरों में तो चूहों का शिकार कर सकते हैं लेकिन खेतों में आसान नहीं। अब यदि किसान और उसके परिवार को भुखमरी से बचाना है तो बन्दर, नीलगाय और चूहों की आबादी के नियंत्रण पर अविलम्ब ध्यान देना होगा।
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